Fatehpur News: फतेहपुर मस्जिद ध्वस्तीकरण पर हाईकोर्ट की रोक ! इस तारीख को होगी अगली सुनवाई, सरकार से मांगा जवाब
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उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के फतेहपुर (Fatehpur) में बनी मस्जिद के ध्वस्तीकरण पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है. मस्जिद कमेटी की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यूपी सरकार से दो हफ्ते में जवाब मांगा है. अगली सुनवाई 23 मई को होगी.

Fatehpur Masjid News: इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad Highcourt) ने शुक्रवार को फतेहपुर जिले की एक मस्जिद के ध्वस्तीकरण आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है. बताया जा रहा है कि यह आदेश न्यायमूर्ति मनीष कुमार निगम की एकलपीठ ने वक्फ सुन्नी मदीना मस्जिद कमेटी के अध्यक्ष हैदर अली की याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया.
याचिका में ध्वस्तीकरण प्रक्रिया को गैरकानूनी और मनमाना बताया गया था. कोर्ट ने इस मामले को विचारणीय मानते हुए उत्तर प्रदेश सरकार से दो सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा है. इस प्रकरण की अगली सुनवाई 23 मई को होगी.
मस्जिद कमेटी की याचिका पर हाईकोर्ट की राहत
फतेहपुर (Fatehpur) के मलवां (Malwan) में कोटिया रोड पर बनी मदीना मस्जिद को लेकर पिछले कुछ महीनों से विवाद गहराता जा रहा था. मस्जिद कमेटी के अध्यक्ष हैदर अली ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर यह दावा किया कि तहसील प्रशासन ने बिना कानूनी प्रक्रिया का पालन किए मस्जिद के ध्वस्तीकरण का आदेश जारी कर दिया.
याचिकाकर्ता की दलील थी कि उन्हें न तो उचित नोटिस दिया गया, न ही आपत्ति दर्ज कराने का पर्याप्त अवसर. कोर्ट ने इस दलील को गंभीरता से लेते हुए मस्जिद के ध्वस्तीकरण पर अंतरिम रोक लगा दी और यूपी सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है. कोर्ट के आदेश से फिलहाल मस्जिद कमेटी को बड़ी राहत मिली है.
केवल 26 दिन में पूरी कर दी गई धारा 67 की कार्यवाही
याचिका में यह भी आरोप लगाया गया कि तहसील प्रशासन ने उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता की धारा 67 के तहत जिस प्रक्रिया को अपनाया, वह पूरी तरह मनमानी थी. मस्जिद कमेटी के अधिवक्ता के अनुसार, 26 दिन के भीतर पूरी कार्यवाही निपटा दी गई, जबकि नियमों के मुताबिक याचिकाकर्ता को साक्ष्य पेश करने, गवाह बुलाने और सुनवाई का पर्याप्त समय मिलना चाहिए था.
मस्जिद के पक्षकारों का कहना है कि उन्होंने अपनी आपत्तियां भी दर्ज कराईं, लेकिन प्रशासन ने उन पर विचार तक नहीं किया और सीधे ध्वस्तीकरण का आदेश जारी कर दिया.
1976 से मस्जिद मौजूद, अब तालाब की जमीन बताकर हटाने की कार्रवाई
मस्जिद कमेटी का दावा है कि वर्ष 1976 में ग्राम सभा मलवां ने तीन बिस्वा जमीन वक्फ बोर्ड को मस्जिद निर्माण के लिए आवंटित की थी. उसी जमीन पर मदीना मस्जिद का निर्माण हुआ, जहां सालों से नियमित रूप से नमाज अदा की जाती रही है.
लेकिन हालिया राजस्व दस्तावेजों में इस भूमि को "तालाब की जमीन" बताया गया है, जिसके आधार पर प्रशासन ने कार्रवाई शुरू कर दी. कमेटी का कहना है कि यह एक धार्मिक स्थल है जिसे वक्फ संपत्ति के रूप में मान्यता प्राप्त है और इसे बिना पर्याप्त कानूनी प्रक्रिया के हटाया जाना पूरी तरह गलत है.
अन्य कब्जेदारों पर कोई कार्रवाई नहीं, मस्जिद को बनाया निशाना
याचिका में यह भी बताया गया कि जिस जमीन पर मस्जिद है, उसके आस-पास के हिस्सों में 6-7 अन्य लोग भी वर्षों से कब्जा जमाए हुए हैं. प्रशासन ने वर्ष 2021 में उन लोगों को हटाने का आदेश दिया था, लेकिन अब तक उस आदेश पर कोई अमल नहीं हुआ है.
इसके विपरीत, मस्जिद को हटाने की प्रक्रिया बेहद तेज़ी से पूरी कर ली गई. मस्जिद कमेटी ने इसे पक्षपातपूर्ण रवैया बताया और कहा कि यह एक धार्मिक स्थल को टारगेट करने की कोशिश है. यही कारण है कि अदालत ने इस विवाद को 'विचारणीय मुद्दा' माना है.
डीएम की अपील खारिज करने के बाद पहुंचा मामला हाईकोर्ट
प्रशासनिक स्तर पर जब तहसीलदार ने मस्जिद को तालाब की जमीन बताते हुए ध्वस्तीकरण का आदेश जारी किया, तब मस्जिद कमेटी ने उसके खिलाफ जिलाधिकारी फतेहपुर के समक्ष अपील दाखिल की थी. लेकिन जिलाधिकारी ने भी तहसीलदार के आदेश को सही ठहराते हुए अपील को खारिज कर दिया.
इसके बाद ही मस्जिद कमेटी हाईकोर्ट पहुंची, जहां से फिलहाल राहत मिली है. अब सभी की निगाहें 23 मई की अगली सुनवाई पर टिकी हैं, जहां सरकार का पक्ष और अदालत का अगला रुख तय करेगा कि मस्जिद बचेगी या नहीं.