Fatehpur News: जब छह साल की भूख मासूमियत को निगल गई…और वर्दी ने थाली नहीं, ममता परोस दी
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उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के फतेहपुर (Fatehpur) में भूख से तड़पते दो मासूम बच्चों ने बंद दुकान से बिस्कुट चुरा लिए. थाने लाए गए तो आंखों में पछतावा नहीं, भूख थी. इस घटना ने इंसानियत को ऐसा झकझोरा की पुलिस वालों की आंखें भी डबडबा गईं.

Fatehpur News: भूख कोई उम्र नहीं देखती, न मासूमियत पहचानती है. वह चुपके से दिल में उतरती है और जब हद से गुजरती है तो इंसान को हर हद पार करने पर मजबूर कर देती है. किशनपुर कस्बे के मंडी चौराहा पर गुरुवार को जो हुआ, वो कोई चोरी की वारदात नहीं थी. वो एक खामोश चीख थी, जिसने न केवल दुकान मालिक को चौंकाया बल्कि एक पुलिस थाने की फिजा तक को नम कर दिया.
भूखे पेट और नंगे पांव…थाने की सीढ़ियों पर कांपते थे मासूम
मंडी चौराहा की उस बंद दुकान के सामने खड़े दो छोटे बच्चे जिनकी आंखों में कोई शरारत नहीं, बस इंतज़ार था. उनके पास न चप्पल थी, न जेब में सिक्का. बस, एक सपना था कि कुछ खाने को मिल जाए. जब दुकान मालिक ने उन्हें चिप्स नमकीन के साथ रंगे हाथों पकड़ा तो वो कांपे नहीं, क्योंकि उनके डर की जगह अब भूख ने ले ली थी.
थाने लाए गए उन दो मासूमों में से एक सिर्फ छह साल का था. आंखें इतनी गहरी जैसे भूख ने उनमें उम्र भर का अंधेरा भर दिया हो. जब थानेदार ने पूछा—“क्यों चुराया बेटा?”—तो जवाब में शब्द नहीं, आंसू थे. एक मासूम ने सिर झुकाकर कहा, “पापा शराब पीते हैं...मम्मी खेत में हैं… घर में कुछ भी नहीं था साहब, बहुत भूख लगी थी"
थानेदार की आंखें पहली बार भर आईं—वर्दी से छलके आंसू
थाना प्रभारी दिवाकर सिंह उस पल खुद से लड़ रहे थे. सामने दो बच्चे थे, जो चोर नहीं थे, भूख के शिकार थे. पहली बार उन्होंने महसूस किया कि वर्दी की जेब में रखी कलम से अगर कुछ लिखा जाना चाहिए, तो वो इन बच्चों की किस्मत है.
वो चुपचाप उठे, बिना एक शब्द बोले उन्होंने अपना टिफिन खोला, और थाने की मेज़ पर रख दिया. टिफिन में सिर्फ दो रोटियां थीं, थोड़ी दाल और आलू की सब्ज़ी. मगर उस दिन वो थाली नहीं थी, वो ममता थी—जिसे बच्चों ने कांपते हाथों से उठाया और बिना कुछ कहे खा लिया.
बच्चों को खाते देख थाना प्रभारी की आंखें भीग गईं. उन्होंने मुंह फेर लिया, लेकिन कांपती आवाज़ बता रही थी कि आज थाने में सिर्फ खाना नहीं बांटा गया—आज इंसानियत परोसी गई थी.
वो केस नहीं था, वो सवाल था…और पुलिस ने जवाब ममता से दिया
दुकानदार शुरू में गुस्से में था, लेकिन जब उसने बच्चों की हालत देखी, तो उसका दिल भी पसीज गया. थाना प्रभारी ने उससे कहा, “ये बच्चे चोर नहीं हैं... इन्हें बस रोटी चाहिए थी” दुकानदार ने बिना कोई आपत्ति किए शिकायत वापस ले ली.
बच्चों की मां थाने आईं तो आंखों में शर्म नहीं, लाचारी थी. पांच बच्चों की मां ने बताया कि किसी का स्कूल में नाम नहीं लिखा, किसी का आधार नहीं बना. “साहब, पेट पालना मुश्किल है, पढ़ाई तो सपना है" उस मां की जुबान से निकली ये लाइन जैसे पूरे सिस्टम के मुंह पर तमाचा थी.
थाने में इंसानियत दर्ज हुई, और वो दिन सबक बन गया
उस दिन न कोई अपराधी था, न अपराध. पर एक एफआईआर फिर भी दर्ज हुई—भूख के ख़िलाफ़. इंसानियत ने गवाही दी और वर्दी ने वो कर दिखाया जो शायद संविधान की किताबों में नहीं लिखा.
थाना प्रभारी दिवाकर सिंह ने कहा कि “मैंने कई केस देखे हैं, लेकिन आज पहली बार खुद को हारता महसूस किया. उन्होंने कहा कि मैं उन बच्चों के लिए जितना बेहतर हो सकेगा जरूर करूंगा" उस दिन रोटी ने कानून से बड़ी जीत हासिल की और वर्दी ने अपना सबसे खूबसूरत रंग दिखाया