Fatehpur Akhari Murder Case: तलवार की धार पर लिखा था ‘अखरी’ ! बैसवारा चौराहा बना नफ़रत का निशान, और फिर चली गोलियां
Fatehpur News In Hindi
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के फतेहपुर (Fatehpur) में तिहरे हत्याकांड की जड़ें बहुत गहरी हैं. आरोपी मुन्नू सिंह के घर के नजदीक लगे बैसवारा चौराहा का बोर्ड भी चिंगारी को हवा देने की वजह रहा जिसमें तलवार की धार से अखरी और परिहार के सामने बैस लिखा था.

Fatehpur Akhari Murder Case: यूपी के फतेहपुर जिले के हथगाम थाना क्षेत्र के अखरी गांव में हुए नरसंहार की जड़ें सिर्फ चुनावी रंजिश नहीं, बल्कि वर्षों पुरानी जातीय तल्खी और राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई में गहरी धंसी हैं. मंगलवार को हुए ट्रिपल मर्डर की चिंगारी उसी दिन नहीं भड़की यह आग तो सालों से सुलग रही थी. और उसका एक शोला बना था गांव के एक चौराहे पर लगा वो बोर्ड...जिस पर तलवार की धार पर ‘अखरी’ लिखा था और बोर्ड पर बैसवारा चौराहा.
2021 में लगी राजनीतिक चिंगारी, जो ज्वाला बन गई
ग्रामीणों के अनुसार, वर्ष 2021 में अखरी गांव में हुए प्रधानी के चुनाव में किसान नेता विनोद सिंह उर्फ पप्पू की मां रामदुलारी ने जीत हासिल की थी. उसी चुनाव में मुन्नू सिंह की बहू की हार को उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा पर हमला मान लिया था. इसके बाद पप्पू सिंह ने मां की जीत के बाद मुन्नू सिंह के घर के नजदीक एक चौराहे पर बोर्ड लगवा दिया, जिस पर लिखा था:
"क्षत्रिय धर्मे युगे-युगे — बैसवारा चौराहा, अखरी आगमन पर आपका हार्दिक स्वागत है"
‘अखरी’ शब्द तलवार के निशान पर उकेरा गया था. यह केवल बोर्ड नहीं, बल्कि पिघले हुए लावे की तरह मुन्नू सिंह के दिल में उतर गया.
टशन से जन्मी नफ़रत की नींव
अखरी गांव में कुल लगभग 2200 की आबादी है, जिनमें 20 परिवार बैस ठाकुरों के हैं और केवल एक घर परिहार ठाकुर मुन्नू सिंह का है. सामाजिक समीकरणों के हिसाब से मुन्नू खुद को अलग और श्रेष्ठ मानता था. लेकिन जैसे-जैसे पप्पू सिंह की राजनीतिक पकड़ बढ़ती गई, बैस ठाकुरों का आत्मविश्वास भी बढ़ा. गांव में यह बात आम थी कि पप्पू सिंह कहते थे, "अब बैसों की चलेगी, परिहारों की नहीं"
यही आत्मविश्वास मुन्नू सिंह को चुभने लगा. उसे यह स्वीकार नहीं था कि उसका प्रतिद्वंद्वी न केवल राजनीतिक रूप से उसे पछाड़ रहा है, बल्कि जातीय पहचान की तलवार भी उसके दरवाजे पर लहरा रहा है.
चिंगारी की वह दीवार जिस पर नफ़रत लिखा गया
विवाद के एक केंद्र में बैसवारा चौराहा भी रहा जो रामदुलारी के प्रधान बनने के तुरंत बाद गांव के एक अहम चौराहे पर लगाया गया था. यह बोर्ड सिर्फ रास्ता नहीं दिखाता था, यह गांव के बदलते शक्ति संतुलन का प्रतीक बन गया था. इस परिहार-बैस संघर्ष में तलवार पर लिखे ‘अखरी’ शब्द, मानो आने वाले बर्बर रक्तपात की पूर्व सूचना बन गए थे.
वर्चस्व की राजनीति बनी मौत की वजह
पप्पू सिंह को यकीन था कि गांव में बैस ठाकुरों की बहुलता ही अब सत्ता की चाबी है. वहीं मुन्नू सिंह अपने एकमात्र परिहार ठाकुर परिवार की हैसियत को बरकरार रखना चाहता था. राजनीति और जातीय प्रतिष्ठा की इस जंग ने धीरे-धीरे एक खूनी रास्ता बना लिया जो बीते मंगलवार को पप्पू सिंह, उनके बेटे अभय और भाई अनूप की दिनदहाड़े गोलियों से हत्या में तब्दील हो गया.