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Fatehpur Maqbara News: 18 साल से सुलग रहा है मकबरा-मंदिर विवाद ! हाईकोर्ट से लेकर प्रशासन तक खींची जंग, जानिए इनसाइड स्टोरी?

Fatehpur Maqbara News: 18 साल से सुलग रहा है मकबरा-मंदिर विवाद ! हाईकोर्ट से लेकर प्रशासन तक खींची जंग, जानिए इनसाइड स्टोरी?
फतेहपुर मकबरा मंदिर प्रकरण को लेकर विधानसभा में हंगामा: Image Yugantar Pravah

Fatehpur News In Hindi

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के फतेहपुर (Fatehpur) आबूनगर रेडय्या में 18 साल पुराना मकबरा-मंदिर विवाद फिर उग्र हो गया है. राजस्व रिकॉर्ड, हाईकोर्ट के आदेश और रिपोर्टेड अतिक्रमण के बीच सोमवार के बवाल में मजारों की तोड़फोड़ और पथराव के बाद पुलिस ने 160 लोगों पर मुकदमा दर्ज किया है. नामजदों में स्थानीय नेता शामिल हैं. सियासी गलियारों में यह मुद्दा गरमाया हुआ है और प्रशासन की चूक पर सवाल उठ रहे हैं.

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Fatehpur Maqbara News: यूपी के फतेहपुर की पुरानी जमीन पर दस्तावेजी लड़ाई और जमीनी अतिक्रमण का 18 साल पुराना संग्राम अब खुले संघर्ष में बदल गया है. मकबरा मंगी (गाटा 753) और ठाकुरजी विराजमान मंदिर (गाटा 1159) को लेकर कोर्ट-निर्णय और खतौनी बदलाव के बावजूद जमीन पर कब्जे के आरोप, नारियल फोड़ना और मजारें क्षतिग्रस्त होने की घटनाओं ने माहौल गरमा दिया. पुलिस ने 10 नामजद और लगभग 150 अज्ञात के खिलाफ FIR दर्ज की और गिरफ्तारी के लिए दबिश तेज कर दी है.

विवाद की जड़ें: 2007 का मुकदमा, 2010 का टाइटल डिसाइड और 2012 का खतौनी बदलाव

मकबरा-मंदिर विवाद की जड़ें दौर-ए-इतिहास में नहीं, बल्कि आधिकारिक रिकॉर्ड में गहरी पड़ी हैं. आबूनगर के मुतवल्ली मोहम्मद अनीश ने 2007 में यह मुकदमा दायर किया था, जिसका टाइटल डिसाइड 4 जून 2010 को आया. इस आदेश के आधार पर अप्रैल 2012 में एसडीएम कोर्ट के वाद संख्या 30/2010-12 के हवाले से राजस्व रिकॉर्ड में बदलाव किया गया और गाटा संख्या 753 में मकबरा मंगी का नाम खतौनी में अंकित कर दिया गया.

बावजूद इसके स्थानीय तौर पर कई लोग जमीन के मालिकाना अधिकार को लेकर असहमत रहे. मुतवल्ली का दावा रहा कि मकबरा वर्ष 1611 का निर्मित है और इसका धार्मिक-ऐतिहासिक महत्व है. वहीं आरोप है कि 1970 के दशक में शकुंतला मान सिंह ने गलत तरीके से जमीन अपने नाम करवा दी और बाद में असोथर के रामनरेश को बेच दी, जिन्होंने उस जमीन के 34 प्लॉट बेच दिए.

हाईकोर्ट की दखलंदाजी के बाद भी राजस्व रिकॉर्ड और जमीन पर होने वाली खरीद-विक्री के खिलाफ आरबीओ एक्ट के तहत प्रस्तावित कार्रवाई आज तक पूरी नहीं हुई. यही लंबी अदालती-प्रशासनिक प्रक्रिया विवाद की जड़ बनकर रह गई.

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डाक बंगले चौराहे पर हनुमान चालीसा, मकबरे में नारियल फोड़ना और मजारों की तोड़फोड़

11 अगस्त को इस प्रकरण ने तब तूल पकड़ा जब बीजेपी जिलाध्यक्ष मुखलाल पाल के नेतृत्व में मठ-मन्दिर संघर्ष समिति और कई हिंदू संगठनों ने डाक बंगले चौराहे पर सामूहिक हनुमान चालीसा पाठ किया गया. इस जुलूस में पूर्व विधायक विक्रम सिंह, भिटौरा ब्लॉक प्रमुख अमित तिवारी, और हिंदू महासभा के प्रांत उपाध्यक्ष मनोज त्रिवेदी, विहिप के नेता वीरेंद्र पांडेय, बजरंगदल के सह संयोजक धर्मेंद्र सिंह जनसेवक सहित सैकड़ों की संख्या में बीजेपी और हिंदू संगठनों के कार्यकर्ता मौजूद रहे.

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इनमें से एक टुकड़ी ने अचानक डाक बंगले के पास लगी बैरीकेडिंग तोड़ते हुए मकबरे की तरह कूच कर गई. और घटना स्थल पर पहुंच कर मकबरे के भीतर नारियल फोड़ा गया और आरती की गई. मकबरे की मजारों को क्षतिग्रस्त करते हुए भगवा झंडा फहराया गया.

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इस कार्रवाई ने मुस्लिम पक्ष में आक्रोश भड़का दिया और दोनों पक्षों के बीच नारेबाजी के साथ पथराव भी हुआ.जानकारी के मुताबिक मुस्लिम समुदाय ने पहले पथराव किया. मौके पर मौजूद पुलिस व पीएसी ने त्वरित हस्तक्षेप कर भीड़ को हटाया और हालात शांत कराए. ख़ास बात यह है कि रिपोर्ट्स में किसी के गंभीर रूप से घायल होने की सूचना नहीं है, पर क्षति और साम्प्रदायिक तनाव की गूँज तेज है.

FIR और कानूनी प्रक्रिया: 160 लोगों पर मुकदमा, 10 नामजद

घटना के बाद अबूनगर चौकी प्रभारी एसआई विनीत कुमार उपाध्याय की तहरीर पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया. आधिकारिक रिपोर्ट के मुताबिक कुल 160 लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हुई है, जिनमें 10 नामजद और लगभग 150 अज्ञात शामिल हैं. नामजद अभियुक्तों में शामिल हैं — अजय सिंह उर्फ रिंकू लोहारी (जिला पंचायत सदस्य), अभिषेक शुक्ला, धर्मेंद्र सिंह (जनसेवक), आशीष त्रिवेदी, पप्पू सिंह चौहान, प्रसून तिवारी, ऋतिक पाल, विनय तिवारी, सभासद पुष्पराज पटेल और देवनाथ धाकड़े. मुकदमों में लोक संपत्ति क्षति निवारण अधिनियम की धाराएं और कई आपराधिक धाराएं शामिल बताई जा रही हैं.

पुलिस ने बताया है कि मोबाइल फुटेज खंगाले जा रहे हैं और नामजद व अज्ञात आरोपियों की पहचान कर गिरफ्तारी के लिए टीमें गठित कर दी गई हैं. इसका मतलब यह है कि केस अब न केवल दायरे में दर्ज हुआ है, बल्कि पहचान व साक्ष्य-आधारित गिरफ्तारी की तैयारी भी तेज हो रही है.

प्रशासनिक प्रतिक्रिया और सुरक्षा चूक पर उठते सवाल

देर से और कभी- कभी निर्णायक दिखने वाले प्रशासनिक रेस्पॉन्स ने भी आलोचना बटोरी है. घटना से पहले प्रशासन ने विवादित स्थल के 100 मीटर दायरे में बैरिकेडिंग कर दी थी और पुलिस-पीएसी के जवान तैनात किए गए थे, पर सोमवार को भीड़ इतने बड़े पैमाने पर पहुंची कि सुरक्षा इंतजाम उपेक्षित नजर आए.

घटना के बाद प्रयागराज रेंज के पुलिस महानिरीक्षक डॉ. संजीव गुप्ता ने मौके का स्थलीय निरीक्षण किया और जिलाधिकारी रविंद्र सिंह व पुलिस अधीक्षक अनूप कुमार सिंह समेत कई अधिकारियों को शांति बनाये रखने के निर्देश दिए. प्रशासन ने अतिरिक्त फोर्स तैनात कर लिया और हालात पर काबू पाने की कवायद तेज कर दी इसके साथ ही छः जनपदों के एसपी और पुलिस बल भी बुलाया गया है. स्थानीय लोगों और विपक्षी दलों ने सुरक्षा में चूक और सूचित न करने पर सवाल उठाए.

कई नागरिकों का आरोप है कि यदि 2012 के खतौनी बदलाव और हाईकोर्ट के आदेशों के बाद प्रशासन समय पर ठोस कदम उठाता तो यह हिंसा न फैलती. प्रशासन ने फिलहाल किसी भी दोषी को बख्शे जाने का संकेत न देने की बात कही है और जाँच-पड़ताल व गिरफ्तारी की प्रक्रिया जारी रखी है.

सियासी असर: सपा का निष्कासन, पप्पू का इस्तीफा और देशभर में उठती राजनीतिक आवाजें 

यह विवाद अब स्थानीय सीमाओं से निकलकर राजनीतिक गलियारों तक पहुँच चुका है. समाजवादी पार्टी के सपा जिलाध्यक्ष सुरेंद्र सिंह यादव ने नामजद आरोपी और स्थानीय नेता पप्पू सिंह चौहान को पार्टी से निष्कासित कर दिया. पप्पू सिंह चौहान ने तुरंत पलटवार किया और कहा कि वे खुद पार्टी छोड़ रहे हैं, क्योंकि उनकी राय में "सपा हिंदुओं की विरोधी है", और उन्होंने अपना त्यागपत्र दे देने की बात कही.

इस प्रकार की घटनाओं ने राजनीतिक ध्रुवीकरण को और हवा दी है. बीजेपी व अन्य हिन्दू संगठनों ने मामले को धर्म व सांस्कृतिक अधिकारों के मुद्दे के तौर पर उठाया, जबकि सपा व अन्य विपक्षी गुट इसे प्रशासनिक चूक व अतिक्रमण के मसले के रूप में पेश कर रहे हैं.

सपा जिलाध्यक्ष सुरेंद्र यादव ने इसे जमीन हड़पने का कुचक्र बताया है. सोशल मीडिया और राजनीतिक मंचों पर यह मुद्दा तेजी से चर्चा में है और उत्तर प्रदेश के चुनावी परिदृश्य में यह नया मोड़ पैदा कर सकता है.

राष्ट्रीय ओलमा काउंसिल के सचिव मोहम्मद नसीम ने घटना की निन्दा करते हुए कहा कि मकबरा सदियों पुराना है और यह गलत है कि हर मजार के नीचे मंदिर खोजा जाए. राजनीतिक दल इस भावनात्मक टकराव को अपने-अपने एजेंडे के मुताबिक इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे मामले की संवेदनशीलता और बढ़ गई है.

सियासी बवाल के बीच भड़का बयान

नवाब अब्दुल समद मकबरा बनाम मंदिर विवाद के बाद राजनीतिक बयानबाजी थमने का नाम नहीं ले रही है. समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव द्वारा बीजेपी पर हमला करने के बाद अब कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने भी विवादित टिप्पणी कर दी है.

सहारनपुर से सांसद मसूद ने कहा कि अगर यहां हिंदुओं की जगह मुसलमान होते तो उनके सीने में गोली मार दी जाती. उन्होंने यह भी कहा कि देश मोहब्बत से चलता है, नफरत से नहीं, इसलिए नफरत को खत्म कर कानून के हिसाब से कार्रवाई होनी चाहिए.

विधानसभा में फतेहपुर विवाद पर गरजे सपा विधायक

यूपी विधानसभा में फतेहपुर के नवाब अब्दुल समद मकबरा तोड़े जाने के मुद्दे पर समाजवादी पार्टी के विधायकों ने जमकर हंगामा किया. सपा विधायकों ने सरकार पर धार्मिक स्थलों को निशाना बनाने का आरोप लगाया और मामले की न्यायिक जांच की मांग की. सपा नेताओं का कहना था कि यह कार्रवाई पूरी तरह से पक्षपातपूर्ण है और इससे सांप्रदायिक तनाव फैलाने की कोशिश की जा रही है.

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