
फतेहपुर में डीएपी खाद की किल्लत: समितियों में खाली गोदाम, प्राइवेट दुकानों पर 1800 में हो रही खुलेआम बिक्री
उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले में डीएपी खाद की भारी किल्लत ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है. जहां सरकारी समितियों पर खाद नहीं मिल रही, वहीं निजी दुकानों में यही डीएपी 1800 रुपए में बेची जा रही है. सोशल मीडिया पर कई वीडियो वायरल होने के बावजूद प्रशासन की कार्रवाई नदारद है.
Farehpur DAP News: फतेहपुर जिले में रबी सीजन की बुआई में लगे किसानों के सामने डीएपी खाद की किल्लत सबसे बड़ी चुनौती बन गई है. समितियों में गोदाम खाली हैं, जबकि निजी दुकानदार खुलेआम मनमाने दामों पर खाद बेच रहे हैं. सरकारी रेट 1350 रुपए प्रति बोरी तय है, लेकिन बाजार में यही खाद 1800 रुपए में बिक रही है. बावजूद इसके प्रशासन केवल “पर्याप्त स्टॉक” का दावा कर रहा है.
किसानों को नहीं मिल रही डीएपी, समितियों में हाहाकार

निजी दुकानों पर 1800 रुपए में डीएपी की बिक्री
जहां सरकारी समितियां “खाली” हैं, वहीं जिले की निजी खाद दुकानों में डीएपी खाद धड़ल्ले से 1800 रुपए प्रति बोरी में बेची जा रही है. सरकारी रेट 1350 रुपए तय होने के बावजूद कोई नियंत्रण नहीं है. किसानों का कहना है कि मजबूरी में उन्हें यही महंगी खाद खरीदनी पड़ रही है, वरना बुआई पूरी तरह रुक जाएगी. कई दुकानदार खुलेआम यह दलील दे रहे हैं कि उन्हें भी “ऊंचे दामों पर माल मिल रहा है”.
सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो, फिर भी प्रशासन खामोश

प्रशासन के दावे और जमीनी सच्चाई में फर्क
जिला प्रशासन का दावा है कि फतेहपुर में डीएपी की पर्याप्त आपूर्ति की जा रही है. अधिकारियों का कहना है कि जिन समितियों में स्टॉक नहीं है वहां जल्द ही नया स्टॉक मिलेगा. लेकिन ग्रामीण इलाकों में स्थिति इसके उलट है. कई ब्लॉकों में कई दिनों समितियों में कोई खेप नहीं पहुंची. किसान सवाल उठा रहे हैं कि जब ट्रक लोड होकर आ रहे हैं तो समितियों तक खाद क्यों नहीं पहुंच रही.
किसानों की फसल पर संकट, टूटता जा रहा है भरोसा
डीएपी की कमी से किसानों की गेहूं और चना की बुआई प्रभावित हो रही है. जिन किसानों ने ऊंचे दामों पर खाद खरीदी है, वे आर्थिक रूप से टूट रहे हैं. बाकी किसान इंतजार में हैं कि सरकार कोई ठोस कदम उठाए. किसानों का कहना है कि हर साल यही हाल होता है, लेकिन इस बार महंगाई और कालाबाजारी ने हालात और बिगाड़ दिए हैं. प्रशासनिक चुप्पी ने किसानों के भरोसे को हिला दिया है. वहीं कई किसान मजबूरी में प्राइवेट महंगी खाद खरीदने को मजबूर हैं.
