भगवान जगन्नाथ की तरह निकलती है श्री बांकेबिहारी की रथ यात्रा: 72 घंटे अनवरत भक्ति का संगम बनता है फतेहपुर, जानिए ऐतिहासिक परंपरा

Fatehpur News In Hindi
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के फतेहपुर (Fatehpur) जिले के डिघरुवा गांव में हर साल भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष एकादशी से शुरू होकर त्रयोदशी तक चलने वाली श्री बांकेबिहारी की रथ यात्रा का आयोजन होता है. 72 घंटे निरंतर चलने वाली इस यात्रा में भगवान रथ पर सवार होकर गांव के हर घर तक पहुंचते हैं. इसमें स्नान, भोग, मेला और अनूठी परंपराएं शामिल होती हैं.
Shri Banke Bihari Rath Yatra: यूपी के फतेहपुर जिले के अमौली ब्लॉक के डिघरुवा गांव में विराजमान श्री बांकेबिहारी की ऐतिहासिक रथ यात्रा तीन दिन तक भक्तों की आस्था और उत्साह का अद्भुत संगम बन जाती है. मंगलवार को शुरू हुई यह यात्रा गुरुवार को समापन तक पूरे गांव को भक्ति रस में डुबो देती है. इस दौरान हर गली और हर घर में भगवान का स्वागत होता है. महिलाएं मंगलगीत गाती हैं, भक्त रथ खींचते हैं और गांव में मेले का आयोजन भी होता है जहां आसपास के लोग बड़ी संख्या में पहुंचते हैं.
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तीन दिन 72 घंटे अनवरत पूजा और भक्ति का उत्सव
यह रथ यात्रा पूरे 72 घंटे निरंतर चलती है. दिन-रात रथ आगे बढ़ता रहता है और गांववासी बारी-बारी से भगवान को अपने घर लाते हैं. महिलाएं पूरी रात मंगलगीत गाकर भगवान के स्वागत की तैयारी करती हैं. जिन घरों में रथ पहुंचता है, वहां परिवारजन विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर भोग अर्पित करते हैं. इस मौके पर बाहर रहने वाले प्रवासी ग्रामीण भी अपने गांव लौटते हैं. यहां तक कि शादीशुदा बेटियां भी मायके आकर रथ खींचने और भगवान के दर्शन का पुण्य अर्जित करती हैं.
परंपरा: भक्तों के हाथों खिंचता है श्रीबांके बिहारी का रथ
रथ यात्रा के साथ लगता है भव्य मेला
रथ यात्रा के साथ-साथ डिघरुवा गांव में मेले का आयोजन भी होता है. तीन दिन तक चलने वाले इस मेले में आसपास के गांवों और कस्बों से लोग बड़ी संख्या में पहुंचते हैं. बच्चों के लिए झूले, खिलौनों और मिठाइयों की दुकानें लगती हैं, वहीं महिलाएं श्रृंगार और घरेलू सामान खरीदती हैं. मेले का यह आयोजन रथ यात्रा को और भी भव्य बना देता है. यह केवल धार्मिक आयोजन ही नहीं बल्कि सामाजिक मेलजोल और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूती देने का अवसर बन जाता है.
छाती से बांधकर सरोवर में स्नान कराने की अद्भुत परंपरा
गुरुवार को यात्रा का समापन गांव के किनारे स्थित सरोवर में भगवान बांकेबिहारी के स्नान से होता है. पुजारी मुन्ना तिवारी भगवान को अपनी छाती से बांधकर स्नान कराते हैं. मान्यता है कि प्राचीन काल में मूर्ति सरोवर में गिर गई थी, जिसके बाद गांव में भारी त्रासदियां हुईं. तभी से यह परंपरा शुरू हुई कि स्नान के दौरान पुजारी भगवान को अपनी छाती से बांधकर ही सरोवर में उतारेंगे. स्नान के बाद भगवान को फूल, इत्र और नए वस्त्र पहनाकर मंदिर में पुनः विराजमान कराया जाता है.
आस्था से सराबोर भक्तों की भीड़
दिल्ली से आई मीरा देवी कहती हैं कि रथ यात्रा के दर्शन से मन को शांति मिलती है और हम हर साल यहां आते हैं. लखनऊ की मुन्नी देवी बताती हैं कि यह मेला अनूठा है और इसमें शामिल होकर आशीर्वाद मिलता है. प्रयागराज से आए रामानंद महाराज गंगा घाट का कहना है कि पहले गांव छोटा था तो यात्रा जल्दी पूरी हो जाती थी, लेकिन अब बड़ी आबादी के कारण अधिक समय लगता है. बावजूद इसके गांव की एकजुटता और भक्ति भाव वही बना हुआ है.
जन-जन की आस्था का प्रतीक बनी रथ यात्रा
डिघरुवा गांव की यह रथ यात्रा केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि गांव की पहचान और गौरव है. भगवान जगन्नाथ की तरह रथ पर सवार होकर निकलने वाली यह यात्रा सामाजिक समरसता, पारिवारिक जुड़ाव और भक्ति का अद्भुत संगम बन चुकी है. 72 घंटे तक निरंतर पूजा, भजन और मंगलगान से गूंजता गांव इस बात का प्रतीक है कि आस्था जब जनमानस से जुड़ती है, तो पूरी दुनिया उसमें डूब जाती है.