Fatehpur News: फतेहपुर के इतिहासकार ने कर दिया दावा ! क्या है 300 साल पुराना सच, कैसे बना मकबरा और आबूनगर

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उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के फतेहपुर (Fatehpur) में एक मकबरे को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है. हिंदुत्ववादी संगठनों ने दावा किया है कि आबूनगर इलाके में स्थित अब्दुल समद का मकबरा असल में ठाकुर जी का मंदिर है. दावे में त्रिशूल और कमल जैसे हिंदू प्रतीकों का हवाला दिया गया है. विवाद के बाद इलाके में तनाव है और पुलिस ने कई लोगों पर केस दर्ज किया है और मकबरे के आस पास त्रिस्तरीय बैरीकेडिंग की गई है. इतिहासकार सतीश द्विवेदी ने इस विवाद का ऐतिहासिक दावा सामने रखा है.
Fatehpur Maqbara Inside Story: यूपी के फतेहपुर आबूनगर में स्थित अब्दुल समद का मकबरा अचानक सुर्खियों में आ गया है. हिंदुत्ववादी संगठनों का कहना है कि यह कोई साधारण मकबरा नहीं बल्कि सदियों पुराना ठाकुर जी का मंदिर है, जिसे तोड़कर यह इमारत बनाई गई.
सोमवार को इस दावे को लेकर माहौल गरमा गया, तोड़फोड़ और पथराव की घटनाओं के बाद पुलिस को सख्ती करनी पड़ी. अब सवाल उठ रहा है कि आखिर इस इमारत की असली कहानी क्या है और इसका इतिहास किन सच्चाइयों को उजागर करता है.
विवाद की शुरुआत और हिंसक झड़प
सोमवार को फतेहपुर के आबूनगर क्षेत्र में माहौल अचानक बिगड़ गया. हिंदुत्ववादी संगठनों के कार्यकर्ताओं ने अब्दुल समद के मकबरे पर दावा किया कि यह मूल रूप से ठाकुर जी का मंदिर था. उनका कहना था कि इमारत के अंदर मौजूद त्रिशूल और कमल जैसे प्रतीक इस बात का सबूत हैं. इस दावे को लेकर भीड़ जमा हुई और देखते ही देखते नारेबाजी, तोड़फोड़ और पथराव शुरू हो गया.
मकबरे का इतिहास–औरंगजेब के दौर की कहानी
मीडिया को दिए अपने इंटरव्यू में जिले के इतिहासकार सतीश द्विवेदी ने दावा किया है कि. यह मकबरा मुगलकालीन दौर का है और इसे औरंगजेब के शासन (1658-1707) में बनवाया गया था. औरंगजेब ने सत्ता हासिल करने के लिए अपने भाइयों से युद्ध लड़ा था.
खजुआ के युद्ध में उसने अपने भाई शुजा को परास्त किया और फतेहपुर को अपनी सैन्य छावनी के रूप में विकसित करना शुरू किया. इस छावनी की जिम्मेदारी बुंदेलखंड के पैलानी के फौजदार अब्दुल समद को दी गई.
क्यों महत्वपूर्ण था फतेहपुर
इतिहासकार बताते हैं कि फतेहपुर उस दौर में रणनीतिक दृष्टि से बेहद अहम था. यहां की अर्गल रियासत के हिंदू राजाओं ने शुजा का साथ दिया था और उसे शरण दी थी. ऐसे में औरंगजेब के लिए इस इलाके पर नियंत्रण बनाए रखना जरूरी था. अब्दुल समद को फतेहपुर में बसाने का मकसद यही था कि शुजा को फिर से मदद न मिल पाए और इलाके पर मुगलों का दबदबा कायम रहे.
अब्दुल समद की मौत और मकबरे का निर्माण
साल 1699 में अब्दुल समद का निधन हो गया. इसके बाद उनके बड़े बेटे अबू बकर ने पिता की याद में यह मकबरा बनवाया. बाद में अबू बकर की मौत हुई तो उसे भी इसी मकबरे में दफनाया गया.
सतीश द्विवेदी का कहना है कि आबूनगर इलाके का नाम भी अबू बकर के नाम पर पड़ा. 1850 के सरकारी नक्शों में इस इलाके में सिर्फ दो मोहल्ले दर्ज हैं – आबूनगर और खेलदार, जबकि बाकी क्षेत्र झील के रूप में दिखाया गया है.
त्रिशूल और कमल के निशानों का रहस्य
विवाद का मुख्य आधार मकबरे के अंदर मौजूद त्रिशूल, कमल और कलश जैसे प्रतीक हैं. हिंदुत्ववादी संगठनों का कहना है कि ये मंदिर के चिह्न हैं, जिससे साबित होता है कि मकबरा किसी मंदिर को तोड़कर बनाया गया. लेकिन इतिहासकार सतीश द्विवेदी इस दावे को खारिज करते हैं.
उनका कहना है कि उस दौर में निर्माण कार्य में हिंदू कारीगरों का अहम योगदान होता था. ऐसे में उनकी कला और परंपरा के अनुसार मकबरों और इमारतों में भी कमल और कलश जैसे प्रतीकों का इस्तेमाल आम बात थी.