UPPCL News Today: ऊर्जा मंत्री के बयान से भड़के बिजली कर्मी ! महापंचायत में आकर बताएं निजीकरण के फायदे
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उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में बिजली के निजीकरण के विरोध में ऊर्जा विभाग के कर्मचारियों का आंदोलन तेज हो गया है. 22 जून को लखनऊ (Lucknow) में विशाल महापंचायत का आयोजन किया जाएगा जिसमें ऊर्जा मंत्री और पॉवर कारपोरेशन के प्रबंधन को भी आमंत्रित किया जाएगा.

UPPCL News Today: उत्तर प्रदेश में बिजली के निजीकरण को लेकर कर्मचारियों का आक्रोश बढ़ता जा रहा है. ऊर्जा मंत्री अरविंद कुमार शर्मा के निजीकरण के पक्ष में दिये गये हालिया बयान ने इस विरोध को और भड़का दिया है. विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने अब 22 जून को लखनऊ में महापंचायत बुलाने का ऐलान किया है, जिसमें मंत्री और पॉवर कॉरपोरेशन को आमंत्रित किया जाएगा.
ऊर्जा मंत्री के निजीकरण के फायदे से कर्मियों में गुस्सा
ऊर्जा मंत्री अरविंद कुमार शर्मा द्वारा ग्रेटर नोएडा और आगरा के निजीकरण मॉडल की प्रशंसा करते हुए दिए गए बयान ने बिजली कर्मचारियों को आक्रोशित कर दिया है. मंत्री ने कहा कि इन शहरों में निजी हाथों में बिजली व्यवस्था देने से काफी सुधार हुआ है.
इस पर फतेहपुर (Fatehpur) के संयोजक विजय कटारिया ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि मंत्री को चाहिए कि वे लखनऊ (Lucknow) की महापंचायत में आकर बिजली कर्मियों, किसानों और उपभोक्ताओं को निजीकरण के लाभ समझाएं. संघर्ष समिति का कहना है कि मंत्री खुद सरकारी तंत्र की सफलता का श्रेय लेते हैं लेकिन समर्थन निजी कंपनियों का करते हैं, जो पूरी व्यवस्था को कमजोर कर रहा है.
टोरेंट पॉवर पर गंभीर आरोप, 2200 करोड़ का बकाया नहीं चुकाया
संघर्ष समिति ने आगरा की बिजली व्यवस्था के निजीकरण मॉडल को लेकर टोरेंट पॉवर कंपनी पर गंभीर आरोप लगाए हैं. समिति के अनुसार, अप्रैल 2010 में जब आगरा की बिजली व्यवस्था कंपनी को सौंपी गई थी, तब उपभोक्ताओं पर पावर कॉरपोरेशन का 2200 करोड़ रुपये बकाया था.
यह राशि कंपनी को वसूल कर कॉरपोरेशन को देनी थी, जिसके बदले उसे 10% प्रोत्साहन राशि मिलती. लेकिन बीते 15 वर्षों में टोरेंट पॉवर ने एक भी पैसा नहीं लौटाया. इतना ही नहीं, पावर कॉरपोरेशन कंपनी को 5.55 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीद कर 4.36 रुपये में बेच रही है, जिससे सालाना 274 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है. 15 वर्षों में यह घाटा 2500 करोड़ रुपये से ज्यादा हो चुका है.
ग्रेटर नोएडा में नोएडा पॉवर कंपनी पर भी उठे सवाल
संघर्ष समिति ने ग्रेटर नोएडा की स्थिति का भी हवाला दिया है, जहां 1993 से नोएडा पॉवर कंपनी लिमिटेड बिजली आपूर्ति कर रही है. समिति का कहना है कि कंपनी के रवैये से किसान और आम उपभोक्ता बेहद परेशान हैं.
यहां तक कि उत्तर प्रदेश सरकार खुद इस निजी कंपनी का लाइसेंस समाप्त कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा लड़ रही है. ऐसे में ऊर्जा मंत्री द्वारा ग्रेटर नोएडा मॉडल की तारीफ करना सवालों के घेरे में आ गया है. समिति ने सवाल किया कि अगर निजीकरण इतना सफल है तो सरकार ही उसके खिलाफ कोर्ट में क्यों लड़ रही है?
आरडीएसएस योजना के बाद निजीकरण पर सवाल
संघर्ष समिति ने आरडीएसएस योजना के तहत 44 हजार करोड़ रुपये खर्च कर प्रदेश की बिजली व्यवस्था को सुदृढ़ करने के बाद निजीकरण की मंशा पर भी सवाल खड़े किए हैं.
समिति ने कहा कि जब सरकारी धन से व्यवस्था सुधार ली गई है तो उसे अब निजी हाथों को सौंपना कहां तक तर्कसंगत है? समिति ने यह भी आरोप लगाया कि बिजली कर्मी इस भीषण गर्मी में ग्रामीण और किसान क्षेत्रों में रिकॉर्ड बिजली आपूर्ति कर रहे हैं, लेकिन उसका श्रेय लेकर सरकार निजी कंपनियों को आगे बढ़ाने में लगी है.
198वें दिन भी जारी रहा प्रांतव्यापी विरोध प्रदर्शन
बिजली निजीकरण को लेकर विद्युत कर्मियों का प्रदर्शन 198वें दिन भी जारी रहा. संघर्ष समिति ने कहा है कि अब यह विरोध केवल कर्मचारियों तक सीमित नहीं रहेगा.
आगामी 22 जून को लखनऊ (Lucknow) में होने वाली बिजली महापंचायत में किसानों, आम उपभोक्ताओं और विभिन्न सामाजिक संगठनों के राष्ट्रीय नेता भी शामिल होंगे. समिति का दावा है कि यह आंदोलन अब जनआंदोलन में बदल चुका है और सरकार को इसका जवाब देना ही होगा.