
Fatehpur News: फतेहपुर में बच्चों का नहीं किया दाखिला तो रद्द होगी मान्यता ! क्यों सख्त हुआ प्रशासन
उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में जिला प्रशासन ने आरटीई के तहत गरीब बच्चों को प्रवेश से वंचित करने वाले प्राइवेट स्कूलों पर सख्ती बढ़ा दी है. नई व्यवस्था में डीएम की अध्यक्षता वाली ज़िला स्तरीय समिति निगरानी करेगी. दाखिला न करने पर स्कूलों की मान्यता रद्द होगी. दिसंबर से आरटीई के लिए आवेदन शुरू होंगे.
Fatehpur News: यूपी के फतेहपुर जिले में आरटीई के तहत गरीब बच्चों के नामांकन में हीलाहवाली करने वाले निजी स्कूलों पर अब बड़ी कार्रवाई तय है. जिला प्रशासन ने इस बार कड़ा रुख अपनाते हुए स्पष्ट कर दिया है कि यदि चयनित बच्चों को प्रवेश नहीं दिया गया तो संबंधित स्कूलों की मान्यता रद्द कर दी जाएगी. आवेदन प्रक्रिया दिसंबर से शुरू होने जा रही है और पूरी निगरानी जिला स्तर पर की जाएगी.
डीएम की अध्यक्षता में बनेगी नई समिति, होगी पैनी नजर

पहले प्राइवेट स्कूलों द्वारा गरीब परिवारों से आने वाले बच्चों को दाखिले से टालने या दस्तावेजों में कमी बताकर मना कर देने की कई शिकायतें सामने आती थीं. लेकिन अधिकारियों और स्कूल प्रबंधन के बीच मिलीभगत के आरोपों के चलते कार्रवाई कभी ठोस रूप में सामने नहीं आई. अब समिति यह भी सुनिश्चित करेगी कि चयनित बच्चों का पूरा डेटा समय से उपलब्ध रहे ताकि कोई भी बच्चा अधिकार से वंचित न हो.
आधार कार्ड हुआ अनिवार्य. प्रवेश की आयु सीमा भी तय
आरटीई की आवेदन प्रक्रिया पूरी तरह ऑनलाइन होगी. आवेदन के लिए माता-पिता और बच्चों का आधार कार्ड जरूरी किया गया है. नई गाइडलाइन के अनुसार पूर्व प्राथमिक कक्षाओं में तीन से छह वर्ष और पहली कक्षा में छह वर्ष की आयु पूर्ण होने पर ही प्रवेश मिलेगा. इससे आयु में गड़बड़ी या विशेष अनुशंसा के नाम पर मनमानी को खत्म करने की कोशिश की जाएगी.
ऑनलाइन प्रणाली का उद्देश्य पारदर्शिता बढ़ाना, आवेदन प्रक्रिया को सरल बनाना और अभिभावकों को बार-बार स्कूल या दफ्तरों के चक्कर लगाने से बचाना है. इसके अलावा अधिकारी यह भी देखेंगे कि किसी भी स्कूल में सीटें खाली होने के बावजूद दाखिले से इनकार न हो सके.
1265 में से केवल 889 बच्चे हुए चयनित, दाखिले का डेटा गायब
पिछले सत्र 2025-26 में आरटीई के तहत 1265 बच्चों ने नि:शुल्क शिक्षा के लिए आवेदन किया था. जांच पड़ताल के बाद सिर्फ 889 बच्चों का चयन हो सका जबकि बाकी के आवेदन दस्तावेजों की कमी के चलते निरस्त कर दिए गए.
सबसे बड़ी विसंगति यह है कि अब तक यह स्पष्ट नहीं है कि इनमें से कितने बच्चों का वास्तव में निजी स्कूलों में दाखिला हुआ. न तो ब्लॉक स्तर पर बीईओ के पास यह डेटा है और न ही बीएसए कार्यालय में. यह लापरवाही प्रशासनिक व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा करती है. इसी वजह से नई समिति को इस बार डेटा मॉनिटरिंग भी सख्ती से करने की जिम्मेदारी दी गई है.
मनमानी पर लगाम, नामांकन से इनकार पर सीधे जाएगी मान्यता
आरटीई कानून गरीब, वंचित और पिछड़े वर्ग के बच्चों को शिक्षा का अधिकार दिलाने के लिए बनाया गया था. लेकिन प्राइवेट स्कूल लंबे समय से इसका पालन करने में लापरवाही बरतते रहे हैं. अधिकतर स्कूल या तो सीटें भर जाने का बहाना बनाते हैं या अनावश्यक दस्तावेज मांगकर अभिभावकों को परेशान करते हैं.
विभागीय अधिकारियों की चुप्पी ने स्थिति को और खराब किया. अब प्रशासन ने यह साफ कर दिया है कि नामांकन में आनाकानी करने वाले स्कूलों की मान्यता सीधे खत्म कर दी जाएगी. यह कदम उन स्कूलों के लिए बड़ा झटका है जो वर्षों से नियमों की अनदेखी करते आ रहे थे.
वंचित तबके के बच्चों को मिलेगा शिक्षा का अधिकार
आरटीई के तहत जो बच्चे प्रवेश के पात्र हैं उनमें अनुसूचित जाति, जनजाति, सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग शामिल हैं. साथ ही अनाथ, निराश्रित, कैंसर पीड़ित अभिभावकों के बच्चे और दिव्यांगजन परिवार के बच्चे भी इसका लाभ उठाते हैं.
अब प्रशासन की निगरानी बढ़ने के बाद उम्मीद की जा रही है कि ऐसे बच्चों को निजी स्कूलों में बेहतर सुविधाओं के साथ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलेगी. सरकार और जिला प्रशासन का फोकस यह सुनिश्चित करना है कि शिक्षा का यह अधिकार किसी भी योग्य बच्चे तक बिना भेदभाव पहुंचे.
