कौन हैं 19 साल के महेश रेखे जिन्होंने 200 साल बाद पूरा किया दुर्लभ अखंड दण्डकर्म पारायणम् ! मोदी-योगी ने की तारीफ
महाराष्ट्र के 19 वर्षीय महेश रेखे ने शुक्ल यजुर्वेद माध्यदिन शाखा का अत्यंत दुर्लभ अखंड दण्डकर्म पारायणम् 200 वर्षों बाद सफलतापूर्वक पूरा कर इतिहास रच दिया. उनकी इस अद्भुत साधना की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रशंसा की है.
Who Is Mahesh Rekhe: 19 वर्षीय देवव्रत महेश रेखे ने ऐसी वैदिक उपलब्धि हासिल की है, जिसकी प्रतीक्षा दो सदियों से थी. महाराष्ट्र के अहिल्या नगर निवासी महेश ने शुक्ल यजुर्वेद माध्यदिन शाखा का अखंड दण्डकर्म पारायणम् मात्र 50 दिनों में पूरा कर भारतीय संस्कृति की दुर्लभ परंपरा को पुनर्जीवित कर दिया. उनकी इस साधना की प्रधानमंत्री मोदी और योगी आदित्यनाथ ने विशेष रूप से सराहना की है.
पीएम मोदी ने महेश की तपस्या को बताया प्रेरणा

पीएम मोदी ने बताया कि दण्डकर्म पारायणम् के 2000 मंत्रों को 50 दिनों तक अखंड रूप से शुद्धता के साथ पूरा करना गुरु परंपरा का सर्वोच्च रूप है. उन्होंने कहा कि काशी की पवित्र धरती पर हुआ यह अनुष्ठान आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देगा. पीएम ने महेश के परिवार, गुरुजनों और संबंधित संस्थाओं को भी प्रणाम किया.
सीएम योगी आदित्यनाथ ने बताया भारतीय ज्ञान परंपरा का पुनर्जीवन
उन्होंने इसे भारतीय ज्ञान परंपरा के पुनर्जीवन का अभूतपूर्व संकेत बताया. योगी की प्रतिक्रिया से यह स्पष्ट होता है कि महेश की उपलब्धि केवल महाराष्ट्र या वाराणसी तक सीमित नहीं बल्कि राष्ट्रव्यापी चर्चा का विषय बन चुकी है.
कौन हैं महेश रेखे और कैसी रही उनकी वैदिक यात्रा
देवव्रत महेश रेखे वाराणसी के सांगवाद विश्वविद्यालय के छात्र हैं और कम उम्र से ही वैदिक अध्ययन में गहरी रुचि रखते हैं. दण्डकर्म पारायणम् की कठिन परीक्षा को पास करने के लिए वह रोजाना सुबह 8 बजे से दोपहर 12 बजे तक चार घंटे लगातार अभ्यास करते थे.
इस परीक्षा में मंत्रों को कंठस्थ कर विशिष्ट शैली में उल्टा और सीधा दोनों तरह से उच्चारित करना होता है, जो अत्यंत कठिन माना जाता है. परिवार और गुरुजनों के सहयोग से महेश ने इस चुनौतीपूर्ण साधना को न केवल स्वीकार किया, बल्कि सफलतापूर्वक पूरा भी किया.
200 साल बाद फिर जीवंत हुई दण्डकर्म पारायणम्
दण्डकर्म पारायणम् अब तक दुनिया में मात्र तीन बार ही पूरा हुआ है. पिछला बड़ा पारायणम् करीब 200 वर्ष पहले महाराष्ट्र के नासिक में वेदमूर्ति नारायण शास्त्री ने किया था. उसके बाद यह परंपरा लगभग विलुप्त सी हो गई थी.
लेकिन महेश रेखे ने 2 अक्टूबर से 30 नवंबर तक वल्लभराम शालिग्राम सांगवेद विश्वविद्यालय, वाराणसी में इस अखंड पाठ को पूर्ण कर इसे पुनर्जीवित कर दिया. उनकी इस अद्वितीय उपलब्धि के सम्मान में उन्हें सोने का कंगन और 1,01,116 रुपये की राशि प्रदान की गई है.
क्यों दुनिया में सबसे कठिन मानी जाती है दण्डकर्म पारायणम् परीक्षा
दण्डकर्म पारायणम् वैदिक साधना की सबसे कठिन विधियों में से एक है. इसमें 2000 मंत्रों का अखंड और शुद्ध उच्चारण करना होता है. विशेष रूप से दो पदों का पाठ उल्टा और सीधा एक साथ करना इसकी सबसे मुश्किल प्रक्रिया मानी जाती है.
किसी भी प्रकार का व्यवधान इस तपस्या को अधूरा कर देता है, इसलिए इसे अखंड रूप में करना अनिवार्य है. यह ज्ञान, स्मरण शक्ति, ध्वनि शुद्धता और तप—इन सभी का चरम रूप माना जाता है. महेश द्वारा इसे सफलतापूर्वक पूरा करना यह दर्शाता है कि युवा पीढ़ी आज भी प्राचीन वैदिक परंपराओं को नई ऊर्जा दे सकती है.
