Uttar Pradesh: यूपी में अब कैबिनेट मंत्री की नहीं सुनते अधिकारी ! योगी को पत्र लिख नंदी ने खोली पोल, सरकारी फाइलें हुईं गुमशुदा
Nand Gopal Gupta News
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के औद्योगिक विकास मंत्री नंद गोपाल गुप्ता नंदी (Nand Gopal Gupta) ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर नौकरशाही पर गंभीर आरोप लगाए हैं. मंत्री ने दावा किया कि अफसर उनके निर्देशों को नजरअंदाज कर रहे हैं, फाइलें गायब कर दी गई हैं और कुछ अधिकारियों ने नियम ताक पर रखकर अपने चहेतों को लाभ पहुंचाया है.

Nand Gopal Gupta News: यूपी की सत्ता में एक बार फिर ब्यूरोक्रेसी बनाम मंत्री विवाद खुलकर सामने आ गया है. औद्योगिक विकास मंत्री नंद गोपाल नंदी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) को पत्र लिखकर जो आरोप लगाए हैं, वह केवल ‘फाइलों की गुमशुदगी’ की कहानी नहीं बल्कि सिस्टम की नब्ज को बेनकाब करने वाले हैं. अफसरों की मनमानी, फाइलों की तिजोरी में बंद सच्चाई और सत्ता के भीतर की साजिशें अब सीएम के दरवाज़े तक पहुंच चुकी हैं.
अफसरशाही पर नंदी का बड़ा हमला: 'सुनते ही नहीं मेरी बात'
नंद गोपाल नंदी (Nand Gopal Gupta) का सीधा आरोप है कि अफसरशाही मंत्रियों को 'सूचना के अधिकार' से भी वंचित कर रही है. उनके मुताबिक, अधिकारियों ने उनके निर्देशों को न केवल अनदेखा किया बल्कि कई बार तो पत्रावलियों को ही गायब कर दिया.
यह वही अफसर हैं जो खुद के फायदे के लिए नियमों को मोड़कर, अपने चहेतों के पक्ष में फैसले लेते हैं. मंत्री का कहना है कि उन्होंने दो साल से फाइलें मंगाई हैं, लेकिन जवाब तक नहीं मिला. यही नहीं, जब उन्होंने 7 अक्तूबर 2024 को सीएम ऑफिस को शिकायत भेजी, तब जाकर 29 अक्तूबर को निर्देश जारी हुए. बावजूद इसके, आज तक फाइलों का कहीं अता-पता नहीं.
नियमों की कब्रगाह बनी विभागीय प्रणाली
मंत्री का कहना है कि कुछ मामलों में एक जैसी परिस्थितियों के बावजूद किसी को लाभ दे दिया गया और किसी की फाइल खारिज कर दी गई. उन्होंने यह भी कहा कि अफसर अपने फायदे के हिसाब से ‘फाइल-नीति’ चला रहे हैं. ऐसी व्यवस्था में ‘नीतिगत भ्रष्टाचार’ ने संस्थागत रूप ले लिया है.
तीन साल से 'लापता' है फाइल, विभाग बना रहस्यलोक
मंत्री नंदी ने अपने पत्र में बताया कि विभागीय कार्यविभाजन को लेकर तीन साल पहले आदेश जारी किए गए थे. पर अफसरों ने उसका पालन तो छोड़िए, उस फाइल को ही ‘गायब’ कर दिया.
जैसे मानो वह कोई राजकीय रहस्य हो जिसे देखने की अनुमति सिर्फ गुप्तचर एजेंसी को है. जब मंत्री ने फाइल खोजने को कहा तो जवाब मिला 'वरिष्ठ अधिकारी मना कर रहे हैं'. अब सवाल उठता है कि क्या मंत्री से ऊपर है ब्यूरोक्रेसी?
हाईकोर्ट की फटकार के बाद एक अफसर की छुट्टी
नंदी के आरोपों में एक मामला ऐसा भी है, जो सीधे अदालत तक पहुंच गया. इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी के बाद एक वरिष्ठ अधिकारी को हटाया गया. लेकिन सवाल यह है कि ऐसे कितने अधिकारी अभी भी पदों पर जमे हुए हैं.
जो नियमों को ‘प्राइवेट लिमिटेड’ समझकर चला रहे हैं. मंत्री के अनुसार, अफसर अपनी पसंद के लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए नीतियों को इस तरह मरोड़ते हैं जैसे कानून की किताब उनकी डायरी हो.
जब मंत्री की नहीं सुनी जाती, तो आम जनता की कौन सुनेगा?
इस पूरे घटनाक्रम में जो सबसे बड़ा और चिंताजनक सवाल उभरता है, वह यह है कि जब एक कैबिनेट मंत्री की बात अफसर नहीं मानते, तो आम जनता की स्थिति क्या होगी? जिन लोगों ने नेताओं को चुनकर भेजा, वे अगर अपने जनप्रतिनिधियों के ज़रिए भी न्याय नहीं पा सकते, तो लोकतंत्र का क्या मतलब रह जाता है?
मंत्री की फाइलें छह-छह महीने तक रोकी जाती हैं, आदेशों की अनदेखी की जाती है और अफसरशाही बेलगाम होकर अपने मन से शासन चलाती है. ऐसे में आम नागरिक की शिकायतें तो शायद सरकारी फाइलों में दाखिल होने से पहले ही दम तोड़ देती होंगी.
मुख्यमंत्री के दरवाजे तक पहुंची ‘फाइल' की आवाज
मंत्री ने अपने पत्र में न केवल अफसरों की कारगुजारियों को उजागर किया बल्कि यह भी साफ कर दिया कि सिस्टम की सड़ांध अब बर्दाश्त के बाहर है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच के निर्देश दे दिए हैं और पूरी रिपोर्ट तलब की है.
उधर सूत्रों की मानें तो अब सचिवालय के गलियारों में बेचैनी है और अफसर स्तर से जवाब तैयार किए जा रहे हैं. सवाल ये है कि अगर कैबिनेट मंत्री की बात नहीं मानी जाती तो आम जनता की फरियाद किस खाते में दर्ज होगी?