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हरतालिका तीज व्रत कथा: शिव-पार्वती के दिव्य मिलन की पौराणिक कथा l Hartalika Teej Vrat Katha Lyrics

हरतालिका तीज व्रत कथा: शिव-पार्वती के दिव्य मिलन की पौराणिक कथा l Hartalika Teej Vrat Katha Lyrics
हरतालिका तीज की पौराणिक कथा जिसे शिव ने पार्वती को सुनाया था: Image Credit Original Source

Hartalika Teej Vrat Katha

हरतालिका तीज का व्रत अखंड सौभाग्य और मनोवांछित फल प्रदान करने वाला माना जाता है. इस व्रत की पौराणिक कथा स्वयं भगवान शिव ने माता पार्वती को सुनाई थी, जिसमें उनके कठोर तप, विष्णु विवाह का प्रसंग और शिव-पार्वती के दिव्य मिलन का वर्णन मिलता है.

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Hartalika Teej Vrat Katha Lyrics In Hindi: हरतालिका तीज का व्रत भारतीय संस्कृति में अत्यंत पवित्र और फलदायी माना गया है. इस व्रत की कथा स्वयं भगवान शिव ने माता पार्वती को सुनाई थी, जिसमें उन्होंने उनके पूर्व जन्म की कठोर तपस्या और दिव्य संकल्प का स्मरण कराया था.

शिवजी ने कहा – "हे गौरा, पिछले जन्म में तुमने मुझे पाने के लिए बाल्यावस्था से ही कठोर तप किया था. तपस्या के दौरान तुमने अन्न-जल का त्याग कर केवल हवा और सूखे पत्तों से जीवनयापन किया. जलाने वाली गर्मी, कंपकंपाती ठंड और मूसलाधार वर्षा में भी तुम अपने संकल्प से नहीं डगमगाईं. तुम्हें इस अवस्था में देखकर तुम्हारे पिता अत्यंत व्याकुल हुए. तभी नारद मुनि वहां आए और उन्होंने कहा कि भगवान विष्णु तुम्हारे साथ विवाह करना चाहते हैं. यह सुनकर तुम्हारे पिता सहमत हो गए, लेकिन जब तुम्हें इसका समाचार मिला तो तुम दुखी होकर व्याकुल हो उठीं.

तुम्हारी एक सखी ने तुम्हारे दुख का कारण पूछा तो तुमने कहा कि मैंने हृदय से महादेव को अपना पति स्वीकार किया है, लेकिन मेरे पिता ने मेरा विवाह विष्णुजी से तय कर दिया है. यह धर्मसंकट मेरे जीवन का अंत कर देगा. तब तुम्हारी सहेली ने तुम्हें धैर्य दिलाया और कहा कि मृत्यु का विकल्प चुनना उचित नहीं है. भारतीय नारी का जीवन तभी सार्थक है जब वह हृदय से जिस पुरुष को पति मान ले, उसी के साथ जीवन बिताए. उसी सहेली ने तुम्हें वन में ले जाकर एक गुफा में साधना करने को प्रेरित किया, जहां तुम्हारे पिता तुम्हें ढूंढ नहीं पाए.

तुम वहां नदी के तट पर रेत का शिवलिंग बनाकर मेरी आराधना में लीन हो गईं. तुम्हारी तपस्या से मेरा आसन हिल गया और मैं तत्काल तुम्हारे सामने प्रकट हुआ. जब मैंने तुम्हें वर मांगने को कहा तो तुमने कहा – 'मैंने आपको सच्चे मन से पति के रूप में वरण किया है, कृपया मुझे अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार करें.' मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न होकर 'तथास्तु' कह कैलाश लौट गया.

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उसी समय तुम्हारे पिता वहां पहुंचे और तुम्हारी कथा सुनकर उन्होंने तुम्हें आश्वासन दिया कि विवाह केवल भगवान शिव से ही होगा. अंततः हमारा विवाह संपन्न हुआ और तभी से इस व्रत की महिमा संसार में स्थापित हो गई. तुम्हारी सहेली ने तुम्हें इस संकट से उबारने के लिए तुम्हारा 'हरण' किया था, इसी कारण इसका नाम हरतालिका व्रत पड़ा."

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इस व्रत की मान्यता है कि जो भी स्त्री इसे निष्ठा और श्रद्धा से करती है, उसे अखंड सौभाग्य और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. विवाहित स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु और सुहाग की रक्षा के लिए तथा अविवाहित युवतियां योग्य वर की प्राप्ति के लिए इस व्रत का पालन करती हैं. इस दिन प्रातःकाल स्नान कर स्त्रियां संपूर्ण श्रृंगार करती हैं, केले के पत्तों से मंडप बनाकर गौरी-शंकर की प्रतिमा स्थापित करती हैं और सुहाग सामग्री अर्पित करती हैं.

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रात्रि में भजन-कीर्तन और जागरण करते हुए तीन बार आरती की जाती है तथा शिव-पार्वती विवाह की कथा सुनकर व्रत की महिमा का स्मरण किया जाता है. व्रती को इस दिन शयन का निषेध होता है और प्रातःकाल सुहागिन स्त्रियों को श्रृंगार सामग्री, वस्त्र, फल, मिठाई और यथाशक्ति आभूषण दान किए जाते हैं. अंत में शिवलिंग का जल में विसर्जन कर खीरे का सेवन करते हुए यह व्रत संपन्न किया जाता है.

हरतालिका तीज की यह पावन कथा हर नारी के जीवन को सौभाग्य और सुखमय दांपत्य का वरदान प्रदान करती है.

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