Kanpur Holi Ganga Mela: कानपुर की 'भौकाली' गंगा मेला वाली होली ! देखें तस्वीरें
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यूं तो देश भर में होली का त्यौहार संपन्न हो चुका है लेकिन औद्योगिक नगरी कानपुर (Kanpur) में आज ऐतिहासिक गंगा मेला (Holi Ganga Mela) है आज के दिन यहां पर होली का समापन किया गया. जहां डीजे की धुन पर मगन होकर होलियारे हटिया से शहर की तमाम तंग गलियों से गुजरते हुए शहर के बिरहाना रोड (Birhana Road) पर जमकर होली खेलने (Play Holi) पहुँचे यह वही हटिया गंगा मेला है जिसमें शामिल होने के लिए देश के कोने-कोने से लोग आते हैं जिसमें शहरवासी ही नहीं बल्कि प्रशासनिक लोग भी इस गंगा मेले का लुत्फ उठाते हैं.

ऐतिहासिक हटिया पार्क से उठा भैसा ठेला
कानपुर शहर के हटिया इलाके में रज्जन बाबू पार्क में हटिया गंगा मेला की कमेटी द्वारा राजनीतिक और प्रशासनिक लोगों के साथ मिलकर देश का तिरंगा झंडा फहराया गया. इसके बाद सभी लोगों ने एक दूसरे के साथ अबीर और गुलाल की होली खेली इसके बाद 83 सालों से चली आ रही परंपरा जिसमें भैसे ठेले पर सवार होकर होरियरे मस्ती में मगन होकर डीजे की धुन पर नाचते-गाते हुए शहर की तमाम तंग गलियों से होकर शहर के बिरहाना रोड इलाके में पहुंचे.

जहां पर हज़ारों की संख्या में मौजूद लोग डीजे की धुन पर नाचते गाते हुए गंगा मेला में शरीक हुए. ऐसे में हर साल की तरह इस बार भी चौराहे के बीचो-बीच मटकी फोड़ का आयोजन भी किया गया फिर क्या बच्चे, क्या बड़े और बुजुर्गों ने सभी लोग इस ऐतिहासिक गंगा मेला का हिस्सा बनकर खूब मस्ती कर रहे थे.

83 सालों से चली आ रही है ये परम्परा
दरअसल साल 1942 में जब अंग्रेजों ने भारतीयों को होली खेलने को लेकर पाबंदी लगाते हुए 47 लोगों को गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया था इसके विरोध में क्रांतिकारियों ने एक सप्ताह तक जमकर होली खेली थी उनके इस प्रदर्शन से हार मानते हुए अंग्रेजों ने 7 दिनों के बाद सभी 47 लोगों को रिहा कर दिया था हालांकि इस बात को गुजरे 83 साल पूरे हो चुके हैं.


डीजे की धुन पर खेली गई कपड़ा फाड़ होली
डीजे की धुन पर नाचते और गाते लोग सब कुछ भूल कर एक दूसरे को खूब रंग लगाते दिखाई दिए. यही नहीं इलाके के रहने वाले लोग अपने घरों से पानी की बौछार करते हुए इस त्यौहार में अपनी मौजूदगी जाहिर करते हैं तो वहीं प्रशासन की ओर से भी कई तरह के इंतजाम किए जाते हैं जिनमें बड़े-बड़े पानी के टैंकरो से इन होरियारों पर जमकर पानी की बौछारें उड़ाई जाती हैं.

अंत में यह होलियारे होली में इतने मग्न हो जाते हैं कि एक दूसरे के कपड़े ही फाड़ने लगते हैं कपड़े फाड़ने की जब परंपरा आज से नहीं बल्कि सदियों से चली आ रही है यही कारण है कि चारों तरफ जहां भी नजर जाए वहां पर लोगों के फटे हुए कपड़े बिजली के तारों पर टंगे हुए दिखाई देते हैं जैसे कि इन कपड़ो को धोबियों द्वारा धोकर सुखाया गया हो. कानपुर की होली में गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल भी देखने को मिलती है.
