
Kanpur Zoo Tigress Trusha: 14 शावकों को जन्म देने वाली बाघिन त्रुशा की दहाड़ हुई मौन ! कानपुर चिड़ियाघर में लंबे समय से थी बीमार
Kanpur News: कानपुर के चिड़ियाघर में अब बाघिन त्रुशा की दहाड़ नहीं सुनाई देगी. मुंह के कैंसर की बीमारी के चलते बाघिन ने चिड़ियाघर अस्पताल में दम तोड़ दिया. 2010 में त्रुशा को फर्रुखाबाद के जंगलों से कानपुर लाया गया था. त्रुशा ने अब तक 14 शावको को जन्म दिया था. बाघों की जनसंख्या बढ़ाए जाने के मामले में कानपुर के चिड़ियाघर का नाम त्रुशा की वजह से ही जाना जाता था.

हाईलाइट्स
- बाघिन त्रुशा की लंबी बीमारी के चलते हुई मौत, कानपुर चिड़ियाघर में त्रुशा की दहाड़ सुनने आते थे लोग
- मुंह के कैंसर था बाघिन त्रुशा को, 14 शावकों को दे चुकी थी जन्म
- देश भर में बाघों की जनसंख्या बढ़ाने में कानपुर चिड़ियाघर का नाम त्रुशा की वजह से जाना जाता था
Tigress Trusha died due to prolonged illnes : कानपुर चिड़ियाघर में दहाड़ने वाली आवाज दर्शकों को नहीं सुनाई देगी. लंबी बीमारी के चलते बाघिन त्रुशा ने दम तोड़ दिया. त्रुशा बाघिन की वजह से चिड़ियाघर में चहल-पहल बनी रहती थी. बाघिन की मौत पर चिड़ियाघर प्रबन्धन ने भी दुख व्यक्त किया है. त्रुशा ने अपना जीवन बाघ की उम्र से ढाई वर्ष ज्यादा जिया. देश भर से बाघिन त्रुशा को देखने के लिए लोग कानपुर आते थे.

कानपुर चिड़ियाघर से बाघिन त्रुशा की दहाड़ अब नहीं सुनाई देगी. त्रुशा पिछले दिसंबर से बीमार चल रही थी. बाघिन को मुंह का कैंसर था. जिसकी वजह से वह ठीक से खाना नहीं खा पाती थी. मंगलवार को उसकी तबियत बिगड़ गयी. चिड़ियाघर अस्पताल में ही उसने दम तोड़ दिया. त्रुशा बाघिन की मौत के बाद चिड़ियाघर प्रबन्धन ने भी गहरा दुख जताया है.
बाघों की उम्र से ढाई साल ज्यादा जी बाघिन त्रुशा
अमूमन बाघ की उम्र 16 से 17 साल मानी गयी है, लेकिन त्रुषा ने तय उम्र से ढाई साल ज्यादा जीवन जिया, दिसंबर में वह बीमार हो गई थी, उसके बाद लगातार वह बीमार बनी रही और अंत में वह कैंसर को मात न दे पाई. 19.5 वर्ष की उम्र में उसकी मौत हो गई. तृषा का अंतिम संस्कार आज चिड़ियाघर के अंदर ही प्रोटोकॉल के अनुसार किया गया. इसमें विशेष बात यह रही की त्रुषा का अंतिम संस्कार उसी के केयर टेकर से करवाया गया.
त्रुशा 14 शावकों को दे चुकी थी जन्म
रेंज ऑफिसर नावेद इकराम ने बताया कि त्रुषा की कमी पूरे चिड़ियाघर को बहुत खलेगी, उन्होंने बताया कि त्रुषा और बाघों से बिल्कुल अलग थी, क्योंकि वह अपने बच्चों को अलग तरीके से पालती थी. देश भर में बाघों की संख्या बढ़ाने में कानपुर ज़ू का नाम त्रुशा की वजह से जाना जाता था. उसने 14 शावकों को जन्म दिया था. 2010 में बाघ अभय और बाघिन त्रुशा को फर्रुखाबाद से लाया गया था. मेटिंग कराने के बाद 10 शावकों को जन्म दिया. फिर पीलीभीत के जंगल से आदमखोर बाघ प्रशांत को पकड़कर यहां लाया गया. और त्रुशा से मेटिंग कराई गई जिससे 4 शावक जन्मे. इन शावकों को अलग-अलग ज़ू में भेज दिया गया था.