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History Of Kanpur Nagar Nigam : जानिए कानपुर नगर निगम के इतिहास के बारे में

History Of Kanpur Nagar Nigam : जानिए कानपुर नगर निगम के इतिहास के बारे में
कानपुर नगर निगम का इतिहास

उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव की तारीखों का एलान होते ही सभी दल के प्रत्याशी तैयारी में जुटे हुए हैं, 11 मई को दूसरे चरण की वोटिंग है जिसमे कानपुर शहर भी शामिल है, ऐसे में 13 मई को इस नगर निगम को फिर से एक नया महापौर मिल जाएगा. इससे पहले हम आपको कानपुर नगर निगम के इतिहास की कुछ झलक बताएंगे.


हाईलाइट्स

  • कानपुर नगर निगम पहले थी नगर महापालिका
  • 1995 में जनता ने कानपुर को दिया महापौर
  • पूर्व पीएम और पूर्व राष्ट्रपति तक कर चुके है शिरकत

Know the history of kanpur nagar nigam : यूपी नगर निकाय चुनाव 2023 का बिगुल बजने के बाद जहां नामांकन का दौर अब खत्म होने को है तो अब समय आ रहा है वोटिंग का इससे पहले कानपुर नगर निगम की कुछ भूली बिसरी यादों को ताजा करेंगे और बताएंगे इसका गठन कब हुआ,वर्ष 1960 में ये नगर निगम नहीं था,तब यहां नगर महापालिका का गठन हुआ था और जो पहली सदन हुई थी वो कोपरगंज स्थित म्युनिसिपलटी भवन में हुई.

आज इसकी काया पलट हो चुकी है जो नगर निगम में तब्दील हो गया ,जिसमे पहले नगर प्रमुख चुने जाते थे लेकिन अब महापौर चुने जाते है.

 

हर वार्डों में होते थे दो सभासद,1991 में नगर निगम का हुआ गठन

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बताते चलें कि 1960 में शहर में 36 वार्ड ही थे ,जनता की समस्याओं को सुनने के लिए हर वार्डो से 2-2 सभासद को चुना जाता था,यानी 72 सभासद और 8 विशिष्ट सभासद होते थे कुल 80 सभासद ये सभी मिलकर नगर प्रमुख चुनते थे. ऐसा बताते है कि यहां इंदिरा गांधी भी 1964 में आ चुकी है और पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी मेयर प्रमिला पांडे के कार्यकाल में यहां आ चुके है.

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नगर निगम का गठन 1991 में हुआ धीरे-धीरे विस्तार होते-होते शहर को 6 जोनों में बाँट दिया जिसमें 110 वार्ड बने, 1995 में शहर को पहला महापौर मिला और तबसे नगर निगम ने शहर को कई मेयर दिए है.

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1995 से हुई महापौर चुनाव की शुरुआत

वर्ष 1995 से जनता से महापौर चुनाव की शुरूआत हुई थी तब पहली दफा कानपुर को सरला सिंह के रूप में महापौर दिया ,सरला सिंह बीजेपी से थीं

फिर 2000 में कांग्रेस के अनिल कुमार शर्मा भाजपा की सरला सिंह को हराकर महापौर बने , 2006 में फिर एक बार भाजपा का दबदबा रहा जहां रविन्द्र पाटनी अबकी बार मेयर नियुक्त हुए जिन्होंने कांग्रेस के बद्रीनारायण तिवारी को हराया, फिर 2012 में भाजपा के पूर्व सांसद जगतवीर सिंह द्रोण को मौका मिला तो उन्होंने कांग्रेस के पवन गुप्ता को हराकर महापौर बने और फिर 2017 में महिला सीट आरक्षित हो गई जहां भाजपा ने पार्षद रह चुकी प्रमिला पांडे को मैदान में उतारा जहां उन्होंने कांग्रेस की वंदना मिश्रा को हराया और महापौर बनी वहीं फिर एक बार भाजपा ने प्रमिला पांडे पर दांव खेला है. ये कहा जा सकता है अबतक नगर निगम में बीजेपी का दबदबा बना हुआ है.

फिलहाल आने वाली 13 मई को नए महापौर की तस्वीर साफ हो जाएगी. हालांकि अबतक के आंकड़ो को देखकर तो ये लगता है कि भाजपा और कांग्रेस में ही टक्कर रही है लेकिन इस बार सपा ने भी ब्राह्मण कार्ड खेला है तो त्रिकोणीय टक्कर की पूरी उम्मीद है.

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