Shardiya Navratri Kalratri Devi: जानिए माँ के सप्तम स्वरूप देवी 'कालरात्रि' के पूजन का महत्व ! पूजन से शारीरिक-मानसिक कष्टों का होता है निवारण
Navratri 7th Day: शारदीय नवरात्रि के 7वें दिन माता के इस भयावह और उग्र स्वरूप देवी कालरात्रि के दर्शन-पूजन का विधान है. माँ का स्वरूप उग्र और वर्ण काला है, काले रंग वाली, बाल बिखरे और नाक से आग की लपटों के रूप में सांसें निकालने वाली देवी का भयावह स्वरूप भयभीत करने वाला है, माता के पूजन करना बेहद फलदायी है. इससे शत्रुओं पर अजय, शारिरिक-मानसिक कष्ट दूर होते हैं. माता को भोग में गुड़ का भोग लगाएं,नारियल अर्पित करें जिससे माता प्रसन्न होती हैं.
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हाईलाइट्स
- शारदीय नवरात्रि के सप्तम तिथि को देवी कालरात्रि के पूजन का महत्व
- माता कालरात्रि का है भयावह और उग्र स्वरूप , पूजन बेहद फलदायी
- सभी प्रकार के संकटो से करती हैं माँ रक्षा, गुड का भोग लगाएं
Maa Kalratri On 7th of Navratri : शारदीय नवरात्र के हर दिन माता के अलग-अलग स्वरूपों की विधि विधान से पूजन का विशेष महत्व है. नवरात्रि की सप्तमी तिथि में देवी के सप्तम स्वरूप देवी कालरात्रि के पूजन का विशेष महत्व है. आज आपको देवी कालरात्रि के इस स्वरूप के पौराणिक महत्व के बारे में और किस वजह से माता ने यह भयावह रूप धारण किया इसके पीछे की कथा भी आपको बताएंगे.
सप्तम स्वरूप देवी कालरात्रि की करें उपासना
देश भर में शारदीय नवरात्र में माता के मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी है. हर दिन माता के अलग-अलग स्वरूपों की विधि विधान से पूजा की जा रही है. आज नवरात्रि की सप्तमी तिथि है. मां दुर्गा के सप्तम स्वरूप देवी कालरात्रि की पूजा और आराधना की जाती है. मां की पूजा-अर्चन से आने वाली बाधाएं और संकट दूर होते हैं और इसके साथ ही शारीरिक, मानसिक कष्टों का निवारण होता है.
देवी कालरात्रि का है भयावह स्वरूप, भैरवी नाम से पूजित
देवी कालरात्रि का सप्तम स्वरूप अत्यंत भयावह है व उग्र है. जिसे देखकर हर कोई भयभीत भी हो सकता है. माता का वर्ण काला है, काले रंग वाली इसके साथ ही सिर के बाल उनके बिखरे हुए हैं और नाक से आग की लपटों के रूप में सांस निकालने वाली देवी कालरात्रि है. इसके साथ तीन नेत्र ब्रह्मांड की तरह गोल है. गले में आग की लपटों जैसी माला सफेद सुशोभित है,चार भुजाओं में दाहिनी और ऊपर के हाथ में हसिया या चंद्रहास खड्ग धारण करती है. नीचे वाले हाथ में कटार रहता है एक हाथ अभय मुद्रा में वह एक वर मुद्रा में रहता है.माता का वाहन गर्दभ है माता को भैरवी नाम से भी पूजा जाता है.
अकाल मृत्यु से करती हैं मां रक्षा
जो भक्त देवी कालरात्रि की विधि विधान से पूजा करते हैं मां उन भक्तों पर प्रसन्न रहती है. माता के पूजन से शत्रुओं पर अजय मिलती है, नकारात्मक विचार और आने वाली बाधाएं दूर हो जाती है. इसके साथ ही शारीरिक और मानसिक परेशानियों का निवारण होता है, कालरात्रि के पूजन से काल भी भयभीत हो जाता है, इसके साथ ही अकाल मृत्यु से भी रक्षा करती है.
रक्तबीज का किया संहार
देवी कालरात्रि का वर्णन रक्तबीज और चंड-मुंड के वध पर मिलता है. पौराणिक महत्व के अनुसार जब माँ ने भयावह चंडी रूप धरा ,जब चंडिका सभी दैत्यों की सेना का संहार कर रही थी तभी देखा कि रक्तबीज पर वार करते ही उसका जो रक्त भूमि पर गिरता है, उससे और भी रक्त बीज पैदा हो जाते हैं. माता ने फिर अपनी सातवीं शक्ति कालरात्रि का आह्वान किया. फिर माता खड्ग और खप्पर के साथ रौद्र रूप में प्रकट हुईं और उन्होंने रक्तबीजों को मारकर गिरे रक्त को जमीन में गिरने के बजाय खप्पर में भर-भरके उनका रक्त पिया. देवी को उनके विकराल स्वरूप के कारण ही कालरात्रि कहा गया है.
ऐसे करें पूजन, बीज मंत्र का करें जप
सुबह स्नान के बाद व्रत और मां कालरात्रि के पूजन करें. माँ को जल, फूल, अक्षत्, धूप, दीप, गंध, फल, कुमकुम, सिंदूर आदि अर्पित करें. पूजन करते वक्त मां कालरात्रि के मंत्र का उच्चारण करते रहें. उसके बाद मां को गुड़ का भोग लगाएं. फिर दुर्गा चालीसा, मां कालरात्रि की कथा का पाठ करें. फिर पूजा का समापन मां कालरात्रि की आरती से करें. पूजा के बाद क्षमा प्रार्थना करें. बीज मंत्र ॐ क्लीं एं श्रीं कालिकायै नमः का जप करें.