नई दिल्ली:कौन है फ़्रेडरिक इरीना ब्रूनिंग जिन्हें गो-सेवा के क्षेत्र में स्वामी ब्रह्मानंद पुरुस्कार के लिए चुना गया।

गो-सेवा के लिए जीवन समर्पित करने वाली फ़्रेडरिक को उनके योगदान के लिए स्वामी ब्रह्मानंद पुरुस्कार दिया जाएगा।कैसे गाय के संवर्धन और संरक्षण के लिए उन्होंने जर्मनी का सुख त्याग कर मथुरा में जा बसी..पढ़ें फ़्रेडरिक ब्रूनिंग से "सुखदेवी दासी"बनने की कहानी जिन्हें फतेहपुर के अमित राजपूत के सहयोग से पुरुस्कार के लिए चुना गया।

नई दिल्ली:कौन है फ़्रेडरिक इरीना ब्रूनिंग जिन्हें गो-सेवा के क्षेत्र में स्वामी ब्रह्मानंद पुरुस्कार के लिए चुना गया।
फोटो-युगान्तर प्रवाह

नई दिल्ली:स्वामी ब्रह्मानंद पुरस्कार इस साल से शिक्षा और गो-सेवा के क्षेत्र में आरम्भ हो रहा है। बुधवार को गो-सेवा के लिए जर्मनी की फ़्रेडरिक इरीना ब्रूनिंग को वर्ष 2019 का स्वामी ब्रह्मानंद पुरस्कार दिये जाने की घोषणा हुयी है।

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यह पुरस्कार इस साल से भारत के पहले गेरुआ वस्त्रधारी सांसद और अभूतपूर्व सन्यासी स्वामी ब्रह्मानंद के नाम पर उनके 125वें जयंती-वर्ष से आरम्भ हो रहा है जिसका प्रयोजक ‘लक्ष्य’ नाम का एक ग़ैर-सरकारी संगठन है।
स्वामी ब्रह्मानंद पुरस्कार अब से प्रत्येक वर्ष गो-सेवा और शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट काम करने वाले भारतीय और ग़ैर-भारतीय नागरिकों को दिया जाएगा। वर्ष 2019 के स्वामी ब्रह्मानंद पुरस्कार के लिए जर्मनी की फ़्रेडरिक का नाम दिल्ली के लेखक अमित राजपूत के प्रस्ताव पर चुना गया है। अवॉर्डी को 10,000 रुपये, पदक, स्टेचू, सनद और अंगवस्त्र प्रदान किया जायेगा।

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कौन हैं फ़्रेडरिक इरीना ब्रूनिंग जिन्हें ब्रह्मानंद दिया जाएगा..?

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फ़्रेडरिक इरीना ब्रूनिंग का जन्म 02 मार्च, 1958 को जर्मनी के बर्लिन शहर में हुआ था और अब वो 61 वर्ष की हैं। साल 1978 में 20 वर्ष की उम्र में पर्यटन के उद्देश्य से भारत आयी हुयी थीं, जिसके बाद से ये हमेशा-हमेशा के लिए भारत में रच-बस गयीं और ब्रज को अपनी साधना का केन्द्र बनाया। बीते 41 सालों से यहाँ रहकर फ़्रेडरिक भारतीय अस्मिता को आत्मसात कर रही हैं और पिछले 25 सालों से अनवरत गायों की देखभाल और उनकी सेवा के प्रति पूरी तरह से समर्पित हैं।

इन्होंने उत्तर प्रदेश के मथुरा में कोन्हई गाँव के पास एक ‘राधा सुरभि गोशाला’ बनाई है, जहाँ ये लगातार लगभग डेढ़ हज़ार गायों की सेवा करती हैं। जिन गायों की सेवा में फ़्रेडरिक लगी हैं, वे सभी ग़ैर-उपादेय यानी कि सामान्यतः लोग जिन्हें ग़ैर-ज़रूरतमंद समझते हैं मसलन जो दूध नहीं देतीं उन गायों का पालन-पोषण करती हैं। इनमें ज़्यादातर बूढ़ी, बीमार, रोगी, घायल और कमज़ोर गायें शामिल रहती हैं। अपने सम्पूर्ण जीवनवृत्त में अब तक इन्होंने लाखों गायों की सेवा कर चुकी हैं।

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इन गायों की देखभाल के लिए फ़्रेडरिक को लगभग 25-30 लाख रुपये मासिक का खर्चा आता है, जिसे ये प्रमुख रूप से बर्लिन में स्थित अपनी पुश्तैनी संपत्ति से वहन करती हैं। शेष उन्हें लोगों का सहयोग भी प्राप्त होता है। गो-सेवा के प्रति फ़्रेडरिक की दीवानगी ऐसी है कि इन्होंने इसके लिए अपनी तरुणाई समेत पूरा जीवन इसमें खपा दिया, यहाँ तक कि इन्होंने विवाह भी नहीं किया बावजूद इसके कि वह अपनी माँ-बाप की इकलौती संतान हैं।

इनके ऐसे प्रेरणादायी कार्यों के लिए लोग इन्हें ‘बछड़ों की माँ’ कहते हैं और ये ब्रज समेत पूरे भारतवर्ष में ‘सुदेवी दासी’ या ‘सुदेवी माता’ के नाम से पुकारी जाती हैं। गो-सेवा के क्षेत्र में इनके इन्हीं उत्कृष्ट कार्यों के लिए 23 नवम्बर को इनकी गोशाला जाकर वर्ष 2019 जाकर स्वामी ब्रह्मानंद पुरस्कार दिया जाएगा।

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