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1857 का बूढ़ा बरगद : जो 133 क्रांतिकारियों की शहादत का गवाह बना

आजादी के दीवानों और ऐतिहासिक धरोहरो से घिरे इस कानपुर शहर का देश की आजादी में एक अहम रोल रहा है, ये वही शहर है जिसमें अंग्रेजी हुकूमत का आतंक रहा है, वहीं मेरठ से सुलगी आग कानपुर तक जा पहुंची वही इस क्रांति का आगाज 1857 को हुआ ,इस क्रांति के अवशेष आज भी देखे जा सकते है, तो वहीं कुछ ऐसे भी जख्म दिए है जो शायद कभी न भर पाए जी हां आज हम बात करने जा रहे हैं कानपुर शहर के बीचो-बीच बने नानाराव पार्क में मौजूद बरगद का पेड़ जिसे अब बूढा बरगद के नाम से जानते है, ये पेड़ गवाह है, अंग्रेजो द्वारा की गई

1857 का बूढ़ा बरगद : जो 133 क्रांतिकारियों की शहादत का गवाह बना
1857 क्रांति का गवाह ये कानपुर का बूढ़ा बरगद
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हाईलाइट्स

  • कानपुर में इस बूढ़े बरगद का इतिहास 1857 क्रांति से है जुड़ा
  • 133 क्रांतिकारियों को दी गई थी इस वृक्ष पर फांसी
  • इतिहास के पन्नों में कैद है ये बूढ़ा बरगद

History of this old banyan is related to 1857 revolution in kanpur : ये बात उन दिनों की है जब हमारे देश को पूरी तरह से अपना गुलाम बना चुकी अंग्रेजी हुकूमत इतना अत्याचार करती थी कि जिसे चाहे जान से मार दे,अंग्रेजो के इन्ही अत्याचारों से परेशान होकर इससे छुटकारा पाने के लिए देश के कुछ जांबाज क्रांतिकारियों ने भी अपने हाथों में हथियार उठा लिए और अंग्रेजो को देश से बाहर निकालने की ठान ली इस बीच कई बार इन क्रांतिकारियों और अंग्रेजों के बीच खूनी संघर्ष भी देखने को मिला। इसी खूनी संघर्ष का जीता जागता मिसाल है यह "बूढ़ा बरगद" जो आज भी उस खूनी दिन का गवाह है हालांकि अब यहां शिलापट बनी हुई है.

क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को मुंह तोड़ दिया जवाब

दरअसल इस कहानी की शुरुआत होती है, मई 1857 से जब कुछ अंग्रेज अधिकारी अपने परिवारों के साथ दर्जनों नाव से इलाहाबाद जा रहे थे कि तभी एक अंग्रेज अधिकारी को कुछ गलतफहमी हुई और उसने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी, इस गोलीकांड में कई क्रांतिकारी शिकार हो गए जिसके बाद गुस्साए क्रांतिकारियों ने सभी अंग्रेजो को मौत के घाट उतार दिया लेकिन अंग्रेजो के बीबी बच्चों को सही सलामत नानाराव पार्क में बने "बीबीघर" मे सुरक्षित पहुँचवा दिया था.

बौखलाए अंग्रेजों ने 133 क्रांतिकारियो को इस पेड़ पर दी थी फांसी

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जानकारों के मुताबिक नानाराव पार्क के अंदर ही "बीबी घर" भी था, जिसमे अंग्रेजो के अधिकारी आकर ठहरा करते थे,ऐसा बताया जाता है कि इसमें किसी भी भारतीय को जाने की अनुमति नही होती थी. ऐसा बताया जाता था कि इस कुएं में कई लोगों को मार दिया गया था हालांकि इसके साक्ष्य नहीं है.

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वही उधर दूसरी तरफ इस घटना की खबर इंग्लैंड तक पहुँची जिससे बौखलाए अंग्रेजो ने भारत मे धावा बोल दिया और उनके बीच जो भी आया उसे अंग्रेज मारते रहे यही नही सैकड़ो गांवों में आग तक लगा दी और अंत मे अंग्रेजो द्वारा बदले की भावना से अंग्रेजो ने 4 जून 1857 को 133 क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर इसी नानाराव पार्क में मौजूद बरगद की टहनियों में लटकाकर सभी को फांसी दे दी थी. इस घटना को इतने साल बीत जाने के बाद भी आज भी ये बरगद का पेड़ उस समय की क्रूरता को दर्शाता है हालांकि अब यहां वो असली पेड़ नहीं है लेकिन शहीद स्थल की शिलापट जरूर है जिसपर बूढ़ा बरगद ने उस खूनी दिन की क्रूरता को दर्शाया है.

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