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Anandeshwar Temple : महाभारत काल से जुड़ा है इस शिव मंदिर का इतिहास, कर्ण करते थे पूजा

कानपुर में एक ऐसा शिव मंदिर जिसका इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है, ऐसा कहा जाता है कि दानवीर कर्ण खुद यहां पूजा करने आया करते थे तो चलिए आपको ले चलते है बाबा आनंदेश्वर मंदिर जहां भक्तों का तांता लगा रहता है.

Anandeshwar Temple : महाभारत काल से जुड़ा है इस शिव मंदिर का इतिहास, कर्ण करते थे पूजा
कानपुर में है प्रसिद्ध बाबा आनंदेश्वर का मंदिर
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हाईलाइट्स

  • कानपुर के इस शिव मंदिर में उमड़ती है भक्तों की भीड़
  • महाभारत काल से जुड़ा हुआ है इतिहास
  • परमट स्थित बाबा आनंदेश्वर का है मंदिर

This Shiva temple is associated with Mahabharata period : कानपुर जिले में सेंट्रल स्टेशन से करीब 4 किलोमीटर की दूरी पर परमट स्थित बाबा आनंदेश्वर मंदिर है, यहां ऐसी मान्यता है कि शिवलिंग पर बेल पत्र और एक लोटा गंगा जल चढ़ाने से भक्तों की मनोकामना पूरी होती हैं. शहर के बीचों बीच गंगा किनारे बने इस शिव मंदिर में हर दिन हज़ारों की संख्या में भक्त आते है और सावन और शिवरात्रि में तो देश प्रदेश से भक्तों का तांता लगा रहता है.

इस मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है ,ऐसा बताया जाता है कि यहां दानवीर कर्ण अक्सर पूजा करने आते थे और गायब हो जाते थे कोई भी उन्हें पूजा करते हुए देख नही सका सिवाय एक गाय के , उस गाय ने जब देखा तो एक दिन वह भी उस जगह पहुंची जहां कर्ण पूजा करते थे और अपना सारा दूध वहीं छोड़ कर चली आया करती थी, गाय के मालिक को जब ये पता लगा तो पता करना चाहा उसने देखा तो उसकी गाय एक जगह अपना सारा दूध छोड़ रही थी जब ग्रामीणों ने मिलकर उस जगह को खुदवाया तो उसमें से एक शिवलिंग निकला जिसके बाद सभी ने विधिविधान से पूजन करके शिवलिंग को वही स्थापित कर दिया.

 

भक्तों का लगता है तांता

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ऐसा भी आया है कि आनंदेश्वर मंदिर में आनंदेश्वर नाम इसलिए पड़ा क्योंकि जो गाय अक्सर दूध गिरा जाया करती थी उसका नाम आनन्दी था तभी से इस मंदिर का नाम आनंदेश्वर हो गया और ये गंगा किनारे स्थित प्रसिद्ध बाबा आनंदेश्वर मंदिर शहर ही नही बल्कि देश,विदेश से भक्त यहां बाबा के दर्शन के लिए आते हैं. आये दिन यहाँ भक्त भंडारे का आयोजन करवाते है तो वही गंगा किनारे लोग बोट और नाव का भी आनन्द उठाने आते हैं.

गंगा किनारे स्थित है बाबा आनंदेश्वर मंदिर

शहर के बीचो-बीच बना बाबा आनंदेश्वर का मंदिर अपने आप में एक प्रसिद्ध स्थान के साथ ही अलग छठा बिखेरता है, मंदिर किनारे अठखेलियां खेलती गंगा की लहरें अलग ही मन को सुकून देती है, सजी हुई नावे लोगों के आकर्षण का केंद्र भी बनी रहती है जहां लोग नाव से सैर सपाटा के लिए भी निकलते हैं मंदिर परिसर के अंदर प्रसाद सामग्री की दुकानें और पूजा संबंधित मूर्तियों की भी दुकानें मौजूद है मंदिर में तड़के सुबह 4 बजे मंगला आरती के बाद भक्तों को दर्शन करने के लिए पट खोल दिए जाते हैं, बीच में कुछ देर भोग के लिए पट दोपहर के समय बंद होते है ,जहां दोबारा खुलने पर र-हर महादेव के जयकारों के साथ बाबा का उद्घोष होता है और भक्त बाबा के दर्शन के लिए पहुंचते हैं और बाबा पर बेल पत्र और दूध व जलाभिषेक कर घर की सुख समृद्धि की कामना करते हैं.

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