
Khereshwar Temple : सावन स्पेशल- अद्भुद है इस शिव मंदिर का रहस्य महाभारत काल का योद्धा आज भी करता है पूजा
Khereshwar Temple : कानपुर में एक ऐसा रहस्यमयी शिव मंदिर है, जो इतिहास के पन्नों में कई रहस्य समेटे हुए हैं.कहा जाता है महाभारत काल का एक योद्धा इस मंदिर में भोर प्रहर आकर शिवजी की आराधना और पूजा करता है. सुबह जब मंदिर के पट खुलते हैं तो शिवलिंग के ऊपर जल और पुष्प चढ़े मिलते हैं.

हाईलाइट्स
- कानपुर के शिवराजपुर में है प्राचीन खेररेश्वर मन्दिर,यहां प्रथम पूजन करते है महाभारत कालीन योद्धा
- मन्दिर के रहस्य से हर कोई हैरान, सुबह पट खुलने पर शिवलिंग पर चढ़े मिलते हैं पुष्प और जल
- सावन के दिनों में भक्तों का लगा रहता है तांता, द्वापर युग का है यह शिवलिंग
mysterious Shiva temple of Shivrajpur visit Khereshwar : देशभर में कई ऐसे चमत्कारिक और रहस्यमयी शिव मंदिर हैं. जिनकी अलग आस्था है. ऐसे ही कई, दिव्य ,चमत्कारिक और रहस्यमयी मंदिरों में से एक मंदिर कानपुर के शिवराजपुर में भी है. जिसे सभी खेरेश्वर के नाम से जानते हैं. यह मन्दिर द्वापर युग और महाभारत काल से जुड़ा हुआ है..चलिए सावन के पहले सोमवार के उपलक्ष्य पर युगांतर प्रवाह की टीम आपको कानपुर के शिवराजपुर स्थित खेरेश्वर मन्दिर से जुड़े पौराणिक महत्व और रहस्य के बारे में बताएगी.
सावन के प्रथम सोमवार में भोलेनाथ के विशेष दर्शन
सावन का महापर्व चल रहा है ऐसे में सावन के प्रथम सोमवार को देर रात से ही शिवालयों में भक्तों का तांता लगा हुआ है. हर कोई महादेव के जयकारों के साथ बाबा के दर्शन के लिए पहुंच रहा है. कानपुर शहर से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित शिवराजपुर क्षेत्र में खेरेश्वर मन्दिर की अलग मान्यता है. कहा जाता है यहां शिवलिंग में जलाभिषेक और पुष्प अर्पित करने से भोलेनाथ भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं.
महाभारत काल का योद्धा करता है सबसे पहले शिव पूजन
खेरेश्वर मंदिर की मान्यता यह है कि यह द्वापर युग के महाभारत काल के समय का शिवलिंग बताया जाता है.यहां गुरु द्रोणाचार्य भी पूजा करते थे.यह शिवलिंग को किसी ने स्थापित नहीं किया है बल्कि स्वयंभू है.
यह शिवलिंग करीब 5 हज़ार वर्ष पुराना बताया जाता है. इस मंदिर की मान्यता को कई लोगों ने महसूस भी किया है. यहां महाभारत काल का एक योद्धा भगवान शिव की पूजा करने के लिए भोर में आता है और चला जाता है. महाभारत काल का ये योद्धा और कोई नहीं बल्कि गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र अश्वत्थामा है.तबसे वह अजर-अमर है.
अश्वत्थामा को भगवान श्री कृष्ण ने दिया था श्राप
पिता गुरु द्रोणाचार्य से अश्वत्थामा अभेद बाड़ो की शिक्षा भी मिली थी. ऐसा बताया जाता है कि महाभारत काल के दौरान अश्वत्थामा को पांडव पुत्रों की हत्या करने के चलते उसे श्री कृष्ण ने श्राप दिया था.. किवदंती है कि महाभारत के उपरांत भगवान श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा से कहा था कि इस धरती पर तुम पीड़ा के साथ तब-तक रहोगे जब-तक भोलेनाथ तुम्हारी रक्षा करने खुद न आएं .अब भोलेनाथ ही तुम्हारी रक्षा कर सकते हैं.तब से यहां पर माना जाता है कि भोर प्रहर अश्वत्थामा खेरेश्वर मंदिर पहुंचकर शिव जी का प्रथम पूजन करते हैं.
सुबह पट खुलते ही शिवलिंग पर चढ़े मिलते हैं पुष्प और जल
शाम को आरती के बाद मंदिर परिसर से शिवलिंग के ऊपर से सभी पुष्प व साफ सफाई करते हुए अन्य सामग्रियों को हटा दिया जाता है.उसके बाद पट को बंद कर दिया जाता है .जब सुबह पट खोले जाते हैं, तब यहां का नजारा देख कर आज भी लोग हैरान हैं. मानो किसी ने यहां आकर पूजा की हो, शिवलिंग पर पुष्प चढ़ा मिलता हैं तो जल अभिषेक भी दिखाई पड़ता है. जिससे यह प्रतीत है कि प्रथम पूजा और कोई नहीं बल्कि अश्वत्थामा ही आकर करते हैं.
गंगा स्नान कर भक्त शिवलिंग पर चढ़ाते हैं जल
हालांकि यहां के कुछ लोगों ने अश्वत्थामा को देखने की बात कही है..फिलहाल ये मात्र किवदंतियां हैं.यह मन्दिर शिवराजपुर से अंदर करीब 3 किलोमीटर छतरपुर गांव के खेरे के समीप ही है. यह मंदिर गंगा नदी किनारे सरैया घाट पर बस हुआ है.यहां सावन मास में भक्तों की भीड़ उमड़ती है .प्रथम सोमवार का विशेष महत्व है.गंगा स्नान कर भक्त जल लेकर खेरेश्वर मन्दिर पहुंचकर शिव जी का जलाभिषेक करते हैं. सच्चे मन से जो भक्त पूजन करता है उसकी बाबा मनोकामना अवश्य पूरी करते हैं.
