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Kangda Jwala Devi Shaktipith: जानिए कांगड़ा में माँ 'ज्वाला देवी' शक्तिपीठ का पौराणिक महत्व ! मन्दिर में जलती रहती है अलौकिक दिव्य ज्योत

आदिशक्ति माता के 51 शक्तिपीठों के दर्शन का विशेष महत्व है. इन्हीं में से एक सिद्ध शक्तिपीठ हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में भी है, यह शक्तिपीठ ज्वाला देवी के नाम से विख्यात है. यहां माता सती की जिह्वा गिरी थी. यहां तबसे मन्दिर में बिना घी,तेल और बाती के ज्वाला जलती आ रही है, इस ज्वाला देवी मंदिर में 9 ज्वालाएं जलती है. आजतक वैज्ञानिक भी हैरान है कि इस तरह से ज्योत कैसे जल रही है. नवरात्रि के दिनों में इस मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी है.इन ज्योत के दर्शन से इच्छा पूर्ण होती है.

Kangda Jwala Devi Shaktipith: जानिए कांगड़ा में माँ 'ज्वाला देवी' शक्तिपीठ का पौराणिक महत्व ! मन्दिर में जलती रहती है अलौकिक दिव्य ज्योत
कांगड़ा में ज्वाला देवी शक्तिपीठ, फोटो साभार सोशल मीडिया
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हाईलाइट्स

  • हिमाचल-कांगड़ा घाटी में ज्वाला देवी शक्तिपीठ का अनूठा रहस्य, नवरात्रि में करें दिव्य ज्योति के दर्शन
  • ज्वाला देवी मंदिर का अद्भुत रहस्य, 51 शक्तिपीठ में से एक
  • दिव्य 9 ज्योतियों के करें दर्शन , आजतक ज्वाला जलती रहती है

Visit Maa Jwala Devi Shaktipeeth in Kangra : शारदीय नवरात्रि के दिनों में मां दुर्गा की विधि-विधान से देवी मंदिरों में पूजन की जा रही है, माता की आराधना फलदायी है, हर दुखो का नाश करने वाली माता सब पर अपनी कृपा करती हैं. हिमाचल के कांगड़ा में मां का यह धाम अद्भुत और चमत्कारी है, चलिए आपको माता के इस सिद्ध शक्तिपीठ के पौराणिक महत्व और विशेषता के बारे में आपको बताएंगे.

51 शक्तिपीठों में से एक ज्वाला देवी शक्तिपीठ

हिमाचल प्रदेश जिसे देवभूमि कहा जाता है,यहां की सुदंर प्रकृति, मनोरम छठा हर किसी का मन मोह लेती है, यहां कांगड़ा में प्रसिद्ध देवी का शक्तिपीठ है जिन्हें ज्वाला देवी के नाम से जाना जाता है. यह शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है. यहां माता सती की जिह्वा गिरी थी,तबसे यह स्थान शक्तिपीठ बन गया. खास बात यह है कि मन्दिर में कोई मूर्ति नहीं है, यहां अनन्त बिना घी,तेल व बाती के ज्वाला जलती रहती है.परिसर में 9 ज्वालाएं जलती रहती है, भक्तों के इन ज्योत को देखने मात्र से ही दर्शन पूरे होते हैं. ऐसा कहा जाता है कि देवी माता मंदिर में आग की पवित्र लपटों में रहती हैं.

अद्भुत और दिव्य ज्योतियाँ माता का है स्वरूप

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यहां की अद्भुत और दिव्य ज्योतियाँ माता का ही स्वरूप हैं, भक्त इन दिव्य और अलौकिक ज्योतो के दर्शन कर अपने आपको सौभाग्यशाली मानते हैं. यह ऐसी ज्योत हैं जो पानी से भी नहीं बुझ सकती, बिना घी, तेल और बाती के प्राचीन काल से जलती चली आ रही है. तभी से इनका नाम ज्वाला देवी पड़ गया. माता सती के जब अंग कई स्थानों पर गिरे थे, उनमें से माता की जीभ यहां गिरी थी, जीभ में अग्नि का वास बताया गया है. गर्भ गृह में पवित्र ज्योतियाँ प्राचीन समय से जल रही है, न तो इनमें घी और तेल डाला जाता और न ही बाती का प्रयोग किया जाता. 

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9 ज्योतियों के दर्शन करने से होती है मनोकामना पूर्ण

ज्वाला देवी मंदिर में नवरात्रि के समय भक्तों की अपार भीड़ उमड़ती है. पर्यटन स्थल होने के चलते यहां देश-विदेश से भक्तों का आना-जाना लगा रहता है. इन 9 ज्योतियों के दर्शन मात्र से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. माता भक्तो के सभी दुःखों को दूर करती हैं. इसके साथ ही रोगों का नाश होता है घर मे सुख शांति बनी रहती है.

9 रुपों का प्रतिनिधित्व

ज्वाला देवी दुर्गा के नौ रूपों  महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्य वासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका और अंजनी देवी का प्रतिनिधित्व करती हैं.

अकबर भी हुआ नतमस्तक

ज्वाला देवी मंदिर को लेकर यह भी कहा जाता है कि राजा अकबर ने एक माता के भक्त की परीक्षा ली थी, जिसे देख अकबर भी हैरान हो गया. देवी ज्वाला जी के अनन्य भक्‍त ध्यानू जो माँ की आराधना में हमेशा लगा रहता था, अकबर ने उसकी आस्था की परीक्षा लेना चाही. जल रही ज्योतो पर कहा कि यह सब पाखंड है और ध्यानू से शर्त रख दी कि वो ध्यानू के घोड़े का सिर धड़ से अलग करेगा तो क्या ध्यानू की आराध्य मां इसे पुनः लगा सकती है.

उसने घोड़े का सिर अलग कर दिया गया,ध्यानू लगा माँ की आराधना करने और फिर माँ के चमत्कार से  घोड़े का सिर अपने आप जुड़ गया. फिर ध्यानू ने भी अपना सिर अलग कर दिया वह भी मां की कृपा से जुड़ गया. अकबर ने इन ज्योतियों पर पानी डालकर बुझाने का प्रयास किया, लेकिन ज्योत बराबर जलती रही. थक हारकर अकबर नतमस्तक हुआ, और दिल्ली से ज्वाला जी तक पैदल यात्रा करते हुए सोने का छत्र मां के चरणों में अर्पित किया. 

लेकिन अकबर को घमण्ड था कि यह छत्र मेरे सिवाय कोई भी माता को अर्पित नहीं कर सकता. माँ ने उसके द्वारा अर्पित किए गए सोने के छत्र को स्वीकार नहीं किया, और कुछ ही देर बाद वह किसी अज्ञात धातु का बन गया. वैज्ञानिक भी आजतक इस धातू का पता नहीं लगा पाए हैं.

इन 9 दिव्य ज्योतियों का वर्णन

मन्दिर परिसर दरवाजे के सामने जलती हुई मुख्य लौ महाकाली का रूप कहा जाता है. यह ज्योति ब्रह्म ज्योति है और भक्ति और मुक्ति की शक्ति है. मुख्य ज्योति के आगे महामाया अन्नपूर्णा की लौ है जो भक्तों को अन्न प्रदान करती हैं. दूसरी तरफ देवी चंडी की ज्वाला है, जो दुश्मनों की नाश करती है. समस्त दुखों का संहार करने वाली ज्वाला हिंगलाजा भवानी हैं.

पांचवीं ज्योति मां विध्यवासिनी के रूप में विद्यमान है जो सभी दुखों से छुटकारा दिलाती हैं.

महालक्ष्मी की ज्योति, धन और समृद्धि जो ज्योति कुंड में स्थित है.ज्ञान की सर्वश्रेष्ठ देवी, देवी सरस्वती भी कुंड में मौजूद हैं. बच्चों की सबसे बड़ी देवी अंबिका भी यहां मौजूद है.सुख और दीर्घ आयु देने वाली देवी अंजना भी इसी कुंड में हैं.

ऐसे पहुंचे कांगड़ा

कांगड़ा से लगभग 14 किमी. की दूरी पर गग्गल एयरपोर्ट है. यहां से दिल्ली से धर्मशाला के लिए फ्लाइट ले सकते हैं और एयरपोर्ट से तमाम कैब चलती हैं. आवागमन के लिए आप कैब या बस किराए पर ले सकते हैं. रेल मार्ग द्वारा ज्वाला देवी मंदिर जाने के लिए निकटतम ब्रॉड गेज रेलहेड पठानकोट है. ये 123 किमी. की दूरी पर स्थित है. निकटतम नैरो गेज रेलहेड ज्वालाजी रोड, रानीताल है. यह मंदिर से 20 किमी. की दूरी पर स्थित है. यहां से टैक्सियां और बसें आसानी से उपलब्ध हैं.

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