Hal Shashthi Kab Hai 2023 : जानिए हरछठ या Lalahi Chhath के व्रत का क्या है महत्व ! बलराम जी के हल से जुड़ा हुआ है नाम

HarChat 2023: हरछठ पर्व भाद्र पद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को मनाये जाने की परम्परा है.इस बार हरछठ पर्व जिसे हलषष्ठी भी कहते हैं,5 सितंबर को मनाया जाएगा. उत्तर प्रदेश और बिहार में इस पर्व का विशेष महत्व है.इस पर्व को ललई और ललही छठ नामों से भी जाना जाता हैं.यह पर्व श्रीकृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता बलराम को समर्पित है.क्योंकि उन्हीं के शस्त्र हल के नाम पर इस पर्व का नाम पड़ा है.नवविवाहिताएँ व महिलाएं अपनी संतान व पुत्रों की लंबी आयु के लिए यह व्रत करती है.

Hal Shashthi Kab Hai 2023 : जानिए हरछठ या Lalahi Chhath के व्रत का क्या है महत्व ! बलराम जी के हल से जुड़ा हुआ है नाम
हरछठ और हलषष्ठी या ललही छठ पर्व के व्रत का महत्व, फोटो साभार सोशल मीडिया

हाईलाइट्स

  • भाद्रपद माह कृष्ण पक्ष की षष्ठी को हरछठ पर्व मनाया जाता है,इसे हलषष्ठी व ललही पर्व भी कहा जाता है
  • बलराम जी के शस्त्र रूपी हल के नाम पर पड़ा हलछठ, कई कथाएं भी हैं प्रचलित
  • महिलाएं अपने बच्चों की दीर्घायु के लिए व्रत रखती है,खेतों में जोता हुआ अनाज नहीं किया जाता है प्रयोग

HarChat 2023 Lalahi Chhath 2023 : धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हमारे सनातन धर्म में हर एक पर्वों का विशेष महत्व है.रक्षाबंधन व श्रावण पूर्णिमा के बाद षष्ठी को हरछठ पर्व मनाया जाता है. इसे ललही छठ, बलराम जयंती के रूप में भी जाना जाता है. ऐसा कहा जाता है इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता बलराम जी का जन्म हुआ था.

श्रीकृष्ण गौ पालक थे, बलराम जी को हलधर कहा जाता है.बलराम जी का शस्त्र हल था. माताएं ,बहनें व नवविवाहितायें हरछठ का व्रत करती हैं. चलिए आपको बताते हैं कि हरछठ पर्व आखिर क्यों मनाया जाता है,और इसके पीछे क्या कथा प्रचलित है.और इस व्रत के करने से क्या लाभ प्राप्त होता है..

हरछठ पर्व के कई नाम ललही छठ भी कहा जाता है

हरछठ पर्व भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की षष्ठी को मनाए जाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है.इस पर्व को हलछठ,हलषष्ठी,ललई और ललही छठ के नाम से भी जाना जाता है.पूर्वी जिलों में ललई छठ के रूप में मनाया जाता है.हर वर्ष की श्रावण पूर्णिमा के छठवें दिन हरछठ पर्व मनाया जाता है.बलराम जी का शस्त्र हल और मूसल है.इन्हें हलधर भी कहा जाता है.और इसी नाम से यह हरछठ ,हलषष्ठी पर्व पड़ गया.इस दिन खेतों में प्रयोग किये जाने वाले उपकरणों की पूजा भी होती है.

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5 सितंबर को हरछठ, महिलाएं बच्चों की दीर्घायु के लिए रखती हैं व्रत

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पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि 4 सितंबर 2023 को शाम 04 बजकर 41 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 5 सितंबर 2023 को दोपहर 03 बजकर 46 मिनट पर इसका समापन होगा.इसका मतलब 5 सितंबर को हरछठ मनाया जाएगा.महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र के लिए यह व्रत करती हैं.ऐसा करने से उनके सारे संकट दूर हो जाते हैं.और घर में सुख-समृद्धि आती है.

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व्रती महिलाएं इन बातों का ध्यान रख करें हलषष्ठी पूजन

इस पर्व के दिन कुछ चीज़ों का जरूर ध्यान दें,गाय के दूध का प्रयोग न करें,व्रती महिलाएं सुबह स्नान कर साफ-सुथरे कपड़े पहनकर पूजन की तैयारी करें. महिलाएं एक गड्ढा बनाकर उसे गोबर से लीप कर तालाब का रूप दें. इस तालाब में झरबेरी और पलाश की एक शाखा बांधकर उसमें गाढ़ दिया जाता है. भगवान गणेश ,शिव जी, माता पार्वती,कार्तिकेय,सूर्य ,चन्द्र जी की पूजा कर छठ माता की पूजा की जाती है.महिलाएं हरछठ की व्रतकथा श्रवण करती हैं.

सतनजा यानी 7 तरह के अनाज पूजन में रखे जाते हैं

पूजा के समय 7 तरह का अनाज चढ़ाया जाता है,जिसे सतनजा कहते हैं. वह 7 अनाज जैसे चना,गेहूं, जौ, अरहर, मक्का, मूंग और धान चढ़ाएं. इसके बाद हरी कजरियां, धूल के साथ भुने हुए चने चढ़ाएं.पसई के चावल,भैंस के दूध और गोबर का विशेष महत्व है,इस व्रत में हल से जोत कर उगाए हुए अन्न को नहीं खाया जाता है. महुआ की दातुन और महुआ खाया जाता है.पूजा के बाद भैंस के दूध से बने मक्खन से हवन किया जाता है. रात्रि में चंद्रमा के दर्शन के बाद खोला जाता हैं.

हरछठ से जुड़ी कई कथाएं हैं प्रचलित

महाभारत काल में अश्वत्थामा के प्रहार से उत्तरा का गर्भ नष्ट हो गया था.जब युधिष्ठिर में श्रीकृष्ण से उत्तरा के गर्भ की रक्षा करने के लिए कहा ,तो उन्होंने हलषष्ठी व्रत का जिक्र किया.ये कथा पहले नारद जी श्रीकृष्ण जी की माता देवकी को सुनाई थी.देवकी माता ने इस व्रत को सबसे पहले किया. जिसके प्रभाव से संतान की रक्षा हुई थी. अब भगवान श्री कृष्ण से युधिष्ठिर ने इस कथा को सुना तो उन्होंने इस व्रत को उत्तरा द्वारा करवाया, व्रत के प्रभाव से उत्तरा का अश्वत्थामा द्वारा नष्ट हुआ गर्भ दोबारा जीवित हो गया और बाद में बालक का जन्म हुआ, वह बालक राजा परीक्षित नाम से प्रसिद्ध हुआ.

ग्वालिन से जुड़ी कथा भी है प्रचलित

एक कथा ग्वालिन को लेकर भी है.ग्वालिन को अचानक प्रसव पीड़ा हुई.वह गांव में दूध ,दही बेचने निकली थी,पीड़ा अचानक बढ़ गई,जिसके बाद उसने झरबेरी के ओट का सहारा लेकर एक बच्चे को जन्म दिया.उस दिन हरछठ पर्व था. बच्चे को छोड़कर वह दूध बेंचने निकल पड़ी.जहाँ उसने झूठ बोलकर यह दूध भैंस का बताते हुए बेंच डाला, उसी दरमियां झरबेरी के पेड़ के पास ग्वालिन का बच्चा जो अकेला था वही पर पास में एक किसान अपना खेत हल से जोत रहा था. हल का एक कोना बच्चे को लगा जिसमें उसकी मृत्यु हो गई.

ग्वालिन ने ग्रामीणों से मांगी क्षमा

किसान को बहुत दुख हुआ उसने बच्चे का उपचार किया और चला गया.ग्वालिन जब आयी और बच्चे को मृत देख बेसुध हो गई और समझ गई की यह सब मेरे पाप व झूठ बोलने का नतीजा है. उसने तत्काल गांव जाकर अपनी सच्चाई बताई की वह दूध भैंस वाला नहीं बल्कि गाय का था और क्षमा मांगने लगी.ग्रामीण महिलाओं ने उसे क्षमा कर दिया.वापस जाकर देखा तो उसका शिशु वहां जीवित मिला.तबसे हलछठ या हरछठ पर्व की यह कथा काफी लोकप्रिय हो गई.

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