Jivitputrika Jitiya Vrat katha:जीवित्पुत्रिका जितिया व्रत कथा औऱ व्रत से जुड़ी जानकारी
जीवत्पुत्रिका जितिया व्रत पुत्रो की लंबी आयु के लिए माताएं रखती हैं.व्रत से जुड़ी कथा औऱ इसके महत्व को जानते हैं. Jivitputrika jitiya vrat katha 2021
Jivitputrika jitiya vrat katha:देश के कई हिस्सों में मुख्यरूप से बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कई हिस्सों में इसे मनाया जाता है।अश्वनी मास के अष्ठमी औऱ नवमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत जिसे जिउतिया और जितिया (jitiya vrat 2021) भी कहते हैं मनाया जाता है।इसको माताएं अपने पुत्रों की लंबी आयु के लिए करती हैं।यह व्रत तीन दिनों तक चलता है।इस साल 28 सितंबर से शुरू हुआ व्रत 30 सितंबर तक चलेगा।यह व्रत निर्जला रखा जाता है। jivitputrika vrat katha
जितिया व्रत की कथा Jitiya Vrat Katha jivitputrika vrat katha
बहुत समय पहले की बात है कि गंधर्वों के एक राजकुमार हुआ करते थे, नाम था जीमूतवाहन। बहुत ही पवित्र आत्मा, दयालु व हमेशा परोपकार में लगे रहने वाले जीमूतवाहन को राजपाठ से बिल्कुल भी लगाव न था लेकिन पिता कब तक संभालते। वानप्रस्थ लेने के पश्चात वे सबकुछ जीमूतवाहन को सौंपकर चले गए।Jitiya vrat katha
लेकिन जीमूतवाहन ने तुरंत अपनी तमाम जिम्मेदारियां अपने भाइयों को सौंपते हुए स्वयं वन में रहकर पिता की सेवा करने का मन बना लिया। अब एक दिन वन में भ्रमण करते-करते जीमूतवाहन काफी दूर निकल आया।उसने देखा कि एक वृद्धा काफी विलाप कर रही है।Jiutiya jitiya vrat katha
जीमूतवाहन से कहां दूसरों का दुख देखा जाता, उसने सारी बात पता लगाई तो पता चला कि वह एक नागवंशी स्त्री है और पक्षीराज गरुड़ को बलि देने के लिये आज उसके इकलौते पुत्र की बारी है। जीमूतवाहन ने उसे धीरज बंधाया और कहा कि उसके पुत्र की जगह पर वह स्वयं पक्षीराज का भोजन बनेगा। अब जिस वस्त्र में उस स्त्री का बालक लिपटा था उसमें जीमूतवाहन लिपट गया। jitiya vrat katha
जैसे ही समय हुआ पक्षीराज गरुड़ उसे ले उड़ा।जब उड़ते उड़ते काफी दूर आ चुके तो पक्षीराज को हैरानी हुई कि आज मेरा यह भोजन चीख चिल्ला क्यों नहीं रहा है। इसे जरा भी मृत्यु का भय नहीं है। अपने ठिकाने पर पंहुचने के पश्चात उसने देखा तो उसमें बच्चे के स्थान पर जीमूतवाहन था। जीमूतवाहन ने सारा किस्सा कह सुनाया। पक्षीराज जीमूतवाहन की दयालुता व साहस से प्रसन्न हुए व उसे जीवन दान देते हुए भविष्य में कभी बलि न लेने का वचन दिया। jivputrika jitiya vrat katha in hindi