Ganesh Shankar Vidyarthi:वह पत्रकार जो दंगे के दौरान मार दिया गया
- By युगान्तर प्रवाह संवाददाता
- Published 24 Mar 2022 10:13 AM
- Updated 23 Nov 2023 10:28 AM
समाज सुधारक, ईमानदार पत्रकार औऱ अपनी कलम से अंग्रेजी शासन की नींव हिला देने वाले पत्रकार पुरोधा गणेश शंकर विद्यार्थी की 25 मार्च को पुण्यतिथि है.आइए जानते हैं उनके जीवन के बारे में. Ganesh Shankar Vidyarthi Death Anniversary
Ganesh Shanker Vidyarthi:स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व पत्रकार पुरोधा गणेश शंकर विद्यार्थी की 25 मार्च को पुण्यतिथि होती है.दंगो के दौरान कानपुर में 25 मार्च 1931 में उनकी हत्या कर दी गई थी.विद्यार्थी अपनी लेखनी से अंग्रेजी हुकूमत की चूलें हिला देते थे.
गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म 26 अक्टूबर 1890 को फतेहपुर ज़िले के हथगाव क़स्बे में हुआ था.विद्यार्थी मूल रूप से फतेहपुर के ही रहने वाले थे.हालांकि उनके जन्मस्थान को लेकर मतभेद है कुछ लोग उनका जन्मस्थान उनके ननिहाल इलाहाबाद को बताते हैं.पिता जयनारायण पेशे से शिक्षक थे.
बताया जाता है कि 16 साल की उम्र में ही गणेश ने अपनी पहली किताब महात्मा गांधी से इंस्पायर होकर लिख डाली थी. किताब का नाम था हमारी आत्मोसर्गता. 1911 में ही उनका एक लेख भी हंस पत्रिका में छप चुका था.लेख का शीर्षक भी आत्मोत्सर्ग था.
प्रताप अखबार की शुरुआत विद्यार्थी जी ने 9 नवंबर, 1913 में की थी. विद्यार्थी जी के जेल जाने के बाद प्रताप का संपादन माखनलाल चतुर्वेदी और बालकृष्ण शर्मा नवीन जैसे बड़े साहित्यकार करते रहे.‘झंडा ऊंचा रहे हमारा’ गीत जो श्याम लाल गुप्त पार्षद ने लिखा था.उसे भी 13 अप्रैल 1924 से जलियांवाला की बरसी पर विद्यार्थी ने गाया जाना शुरू करवाया था.
दंगा रोकते वक़्त खुद मार दिए गए..
1931 में सारे कानपुर में दंगे हो रहे थे. मजहब पर लड़ने वालों के खिलाफ जिंदगी भर गणेश शंकर विद्यार्थी लड़ते रहे थे,वही मार-काट उनके आस-पास हो रही थी.लोग मजहब के नाम पर एक-दूसरे को मार रहे थे.ऐसे मौके पर गणेश शंकर विद्यार्थी से रहा न गया और वो निकल पड़े दंगे रोकने.कई जगह पर तो वो कामयाब रहे पर कुछ देर में ही वो दंगाइयों की एक टुकड़ी में फंस गए. Ganesh shankar Vidyarthi Biography
ये दंगाई उन्हें पहचानते नहीं थे. इसके बाद विद्यार्थी जी की बहुत खोज हुई, पर वो मिले नहीं. आखिर में उनकी लाश एक अस्पताल की लाशों के ढेर में पड़ी हुई मिली. लाश इतनी फूल गई थी कि उसको लोग पहचान भी नहीं पा रहे थे. 29 मार्च को उनको अंतिम विदाई दी गई.
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