Gorakhpur Jharkhandi Mahadev Temple : जानिए इस शिव मंदिर को क्यों कहा जाता है झारखंडी महादेव,क्या है इस मंदिर का अनोखा रहस्य
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर-देवरिया हाइवे से करीब 6 किलोमीटर दूर रहस्यमयी शिव मंदिर है.प्राचीन काल में यहां घना जंगल हुआ करता था.झाड़-झाँकड़ के बीच स्वयंभू शिवलिंग होने के कारण नाम पड़ा झारखंडी महादेव शिव मंदिर..यह मन्दिर आस्था का केंद्र है.यहां विशाल पीपल का पेड़ शेषनाग आकृति में है.ऐसी मान्यता है कि शिवलिंग पर जल से अभिषेक करने से मनोकामना पूर्ण होती है.
हाईलाइट्स
- गोरखपुर में है प्राचीन शिव मंदिर झारखंडी महादेव ,अनोखा है रहस्य
- सावन के दिनों में दूर-दूर से दर्शन करने आते है भक्त,जल से अभिषेक करने से मन्नत होती है पूर्ण
- मन्दिर के ऊपर नहीं है छत,विशाल पीपल पेड़ पर शेषनाग जैसी आकृति आकर्षण का है केंद्र
Unique secret of Jharkhandi Mahadev temple : सावन के दिनों में हर-हर महादेव के जयकारों के साथ भक्त और कांवड़िये नदियों का पवित्र जल लेकर भोले के दर्शन को निकल पड़े हैं.गोरखपुर का एक ऐसा मन्दिर जहां स्वयंभू शिवलिंग तो है.लेकिन मन्दिर में छत नहीं है.ऐसा कहा जाता है कि विशाल पीपल का पेड़ ही छत के रुप में कार्य करता है.जो अपने आप में अनोखा भी है.चलिए आज आपको झारखंडी महादेव शिव मन्दिर की मान्यता,पौराणिक महत्व के बारे में बताएंगे..
करिए झारखंडी महादेव के दर्शन अद्धभुत है मान्यता
देश के कोने-कोने में कई रहस्यमयी और चमत्कारी शिव मंदिरों के बारे में आपने सुना होगा.ऐसा ही एक शिवमंदिर गोरखपुर में भी है. इस रहस्यमयी शिव मन्दिर की भी अद्भुत मान्यता है.आज तक लोग इस मन्दिर को देखकर इसलिए हैरान हो जाते हैं, क्योंकि जहां शिवलिंग है वहां ऊपर छत नहीं है.यहां विशाल पीपल का पेड़ ही छत की ढाल के रुप में तना रहता है.नीचे बाबा और चारों ओर पीपल की छाया. अद्भभुत है यहां की महिमा.दूर दराज से भक्त सावन के दिनों में जल से शिवलिंग का अभिषेक करते हैं.जिससे भोलेबाबा प्रसन्न होते हैं.यहां मेला भी लगता है.
लकड़हारे की कुल्हाड़ी से झाड़ियों के अंदर स्वयंभू शिवलिंग पर प्रहार करते वक्त निकला रक्त
यहां के पुजारी के अनुसार प्राचीन काल में यहां पर घनघोर जंगल हुआ करता था. कुछ लकड़हारे यहां से वनों की लकड़ियां काट कर ले जाते थे.एक लकड़हारा जब लकड़ी काट रहा था, तभी उसकी कुल्हाड़ी पत्तों से ढके एक पत्थर से जा लगी. कुछ ही देर बाद उस पत्थर से रक्त बहने लगा.यह देख लकड़हारा घबरा गया और तत्काल इसकी सूचना जमीदार को दी. तब जमीदार के स्वप्न में भोलेनाथ आए. उन्होंने कहा कि इस जगह पर एक शिवलिंग है.
झाड़-पत्ते के बीच शिवलिंग होने से नाम पड़ा झारखंडी
जमीदार ने तत्काल ही लोगों की मदद से पत्तों को हटाकर शिवलिंग निकालने का प्रयास किया.लेकिन जितना शिवलिंग को बाहर निकालने का प्रयास किया जाता, उतनी ही शिवलिंग नीचे धंस जाता. जिसके बाद दूध से और जल से अभिषेक करने के बाद वह शिवलिंग बाहर आया. आस-पास मौजूद झाड़ झाँकड़ को हटाकर वहां पर विधि विधान से पूजा की गई.झाड़-झाँकड़ होने की वजह से इस मंदिर का नाम झारखंडी महादेव शिव मंदिर पड़ गया.
शेषनाग जैसी पीपल वृक्ष की आकृति
मंदिर के पास एक विशाल पीपल का पेड़ है, जो अपने आप में अनोखा है.इस पीपल के वृक्ष की खास बात यह है,कि इसकी आकृति शेषनाग की तरह दिखाई देती है. बताया जाता है, यह पांच पेड़ों से मिलकर उगा हुआ है.जिसकी वजह से शेषनाग जैसी आकृति बन गई है.भक्त इसे दूर-दूर से दर्शन करने के लिए और देखने के लिए भी आते हैं.
मन्दिर के ऊपर छत नहीं पीपल पेड़ की छाया सदा रहती है बनी
इस शिवमंदिर का रहस्य बड़ा ही अनोखा है.आज तक इस मंदिर के ऊपर छत नहीं बन सकी है.निर्माण कराने का प्रयास भी किया, लेकिन कोई ना कोई कारण की वजह से वह कार्य अधूरा ही रहा. ऐसा माना जाता है कि शायद भोलेनाथ छत नहीं चाहते हैं. तब से शिवलिंग को खुले में छोड़ दिया गया उनके ऊपर विशाल पीपल का पेड़ छाया के रूप में खड़ा रहता है.