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Bhaye Pragat Kripala Din Dayala Likhit Me: रामनवमी में पढ़ें श्री राम जन्म की स्तुति 'भए प्रगट कृपाला दीनदयाला' लिखित में

Bhaye Pragat Kripala Din Dayala Likhit Me: रामनवमी में पढ़ें श्री राम जन्म की स्तुति 'भए प्रगट कृपाला दीनदयाला' लिखित में
श्री राम जन्म स्तुति : भए प्रगट कृपाला दीन दयाला

Shee Ram Janm Stuti : लोगों की आस्था का पर्व राम नवमी को हर वर्ष चैत्र मास की शुक्ल पक्ष नवमी को मनाया जाता है. तुलसीदास रचित रामचरित मानस के बालकांड में भगवान श्री रामचंद्र के जन्म की स्तुति का वर्णन किया गया है जो "भय प्रगट कृपाला दीनदयाला" के नाम से वर्णित है. पढ़ें श्री राम जन्म स्तुति लिखित में.


हाईलाइट्स

  • भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी...
  • भगवान तुलसीदास कृत रामचरित मानस के बालकांड में है श्री राम जन्म स्तुति 192
  • चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है श्री राम जन्मोत्सव

Bhaye Pragat Kripala Din Dayala Likhit Me: भगवान तुलसी दास ने लोगों की आस्था के केंद्र भगवान श्री रामचंद्र जी के जन्म का सुंदर वर्णन अपने महाकाव्य रामचरित मानस में बहुत ही सुन्दर तरीके से किया है जो की अवधी भाषा में लिखा गया है. रामचरित मानस में श्री राम के जन्म से पुरुषोत्तम बनने के जीवन वृतांत को जीतने सटीक तरीके से लिखा है वो और कहीं नहीं मिलता. आइए इस राम नवमी में तुलसी दास कृत राम जन्म स्तुति को पढ़ें और जीवन को सफल बनाएं.

भए प्रगट कृपाला दीनदयाला,

कौसल्या हितकारी ।

हरषित महतारी, मुनि मन हारी,

अद्भुत रूप बिचारी ॥

लोचन अभिरामा, तनु घनस्यामा,

निज आयुध भुजचारी ।

भूषन बनमाला, नयन बिसाला,

सोभासिंधु खरारी ॥

कह दुइ कर जोरी, अस्तुति तोरी,

केहि बिधि करूं अनंता ।

माया गुन ग्यानातीत अमाना,

वेद पुरान भनंता ॥

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करुना सुख सागर, सब गुन आगर,

जेहि गावहिं श्रुति संता ।

सो मम हित लागी, जन अनुरागी,

भयउ प्रगट श्रीकंता ॥

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ब्रह्मांड निकाया, निर्मित माया,

रोम रोम प्रति बेद कहै ।

मम उर सो बासी, यह उपहासी,

सुनत धीर मति थिर न रहै ॥

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उपजा जब ग्याना, प्रभु मुसुकाना,

चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै ।

कहि कथा सुहाई, मातु बुझाई,

जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ॥

माता पुनि बोली, सो मति डोली,

तजहु तात यह रूपा ।

कीजै सिसुलीला, अति प्रियसीला,

यह सुख परम अनूपा ॥

सुनि बचन सुजाना, रोदन ठाना,

होइ बालक सुरभूपा ।

यह चरित जे गावहिं, हरिपद पावहिं,

ते न परहिं भवकूपा ॥

दोहा:

बिप्र धेनु सुर संत हित,

लीन्ह मनुज अवतार ।

निज इच्छा निर्मित तनु,

माया गुन गो पार ॥

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