फतेहपुर:वोटिंग के बाद क्या कहता है लोकसभा क्षेत्र का मौजूदा समीकरण...किसके सिर पर सजेगा ताज.!
बीते 6 मई को पांचवे चरण के अंतर्गत हुए मतदान के बाद ज़िले की तस्वीर लगभग अब साफ़ हो चली है..युगान्तर प्रवाह द्वारा वोटिंग के बाद जुटाए गए आंकड़ों के आधार पर फतेहपुर लोकसभा क्षेत्र का अगला सांसद कौन होगा..पढ़े इस एक्सक्लुसिव रिपोर्ट में...
फतेहपुर: कभी देश की वीवीआईपी सीटों में शुमार रही फतेहपुर लोकसभा सीट अपने आप में देश की सियासत के कई पन्नो को समेटे हुए है। फतेहपुर लोकसभा से चुनाव जीत सांसद बने वीपी सिंह देश के प्रधानमंत्री भी बने हैं।इसके अलावा देश के पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के बेटे हरिकृष्ण शास्त्री भी इस लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीत देश की संसद में फतेहपुर का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।अब आप ख़ुद समझ सकते हैं कि फतेहपुर लोकसभा सीट कई दशकों तक देश की सियासत में अगली पंक्ति में रही है।लेक़िन धीरे धीरे यह लोकसभा क्षेत्र स्थानीय जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के चलते आज दिल्ली की सियासत में हाशिये पर है।
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लोकसभा 2019 में जनता किसे दिल्ली भेज चुकी है.!
वैसे तो पूरे देश में सभी लोकसभा सीटों पर हुए चुनावों के नतीज़े एक साथ 23 मई को आएंगे लेक़िन हम आपको फतेहपुर लोकसभा सीट पर वोटिंग के बाद जुटाए गए आंकड़ो का विश्लेषण करने के बाद ज़िले की लोकसभा सीट पर किसने बाज़ी मार ली है यह बताने जा रहे हैं। ग़ौरतलब है कि फतेहपुर लोकसभा सीट पर प्रत्याशी घोषित होने के बाद से ही मुख्य मुकाबला भाजपा,गठबंधन और कांग्रेस के बीच ही देखने को मिल रहा था।लेक़िन जैसे जैसे चुनावी प्रक्रिया आगे बढ़ी वैसे वैसे कांग्रेस उम्मीदवार इस लड़ाई में कमजोर होते दिखे और वोटिंग से पहले अंतिम दिनों में तो राकेश पूरी तरह से चुनाव से बाहर हो गए जिसका फ़ायदा गठबंधन के उम्मीदवार सुखदेव प्रसाद वर्मा को मिल गया और भाजपा व साध्वी से नाराज़ एक बड़ा तबका सुखदेव को न चाहते हुए भी वोट कर गया।
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जातीय आंकड़ो की बात करें तो फतेहपुर लोकसभा क्षेत्र में क़रीब 2 लाख कुर्मी मतदाता है जिसमें क़रीब 90 से 95% मूलतःअपनी जाति के उम्मीदवार के पक्ष में ही वोट हमेसा से करते रहे हैं।यह वोट बैंक कभी भी किसी एक पार्टी का होकर नहीं रहा है।हा इतना जरूर हुआ है कि मोदी लहर मे इस वर्ग का कुछ हिस्सा 2014 के चुनाव में साध्वी के साथ खड़ा नज़र आ रहा था।लेक़िन इस बार के चुनाव में दो प्रमुख दलों से सजातीय उम्मीदवार होने के अलावा दो स्थानीय विधायक भी सत्ता पक्ष के इसी वर्ग के होने के चलते कुर्मियों के सामने कन्फ्यूज़न कि स्थिति थी।लेक़िन वोट पड़ने के बाद आंकड़े यह कह रहे हैं कि इस वर्ग में कुल पड़े वोट का क़रीब 75% हिस्सा अंत मे गठबंधन उम्मीदवार के पक्ष में वोट कर आया है।शेष बचे 25% में साध्वी और कांग्रेस उम्मीदवार को वोट आधे आधे वोट मिले हैं।
अब बात करें ज़िले में ब्राह्मण मतदाताओं की तो इनकी भी संख्या क़रीब सवा दो लाख है।और यह वर्ग अटल युग से लोकसभा के चुनावों में भाजपा का मजबूत वोट बैंक रहा है।लेक़िन मौजूदा चुनाव में साध्वी से ब्राह्मणों की नाराज़गी साथी ही खागा विधानसभा क्षेत्र में ब्राह्मणों के एक बड़े वर्ग में कांग्रेस की सेंधमारी से साध्वी को बड़ा नुकसान हुआ है।और यहाँ भी इसका फ़ायदा सुखेदव को मिलता हुआ दिखाई पड़ रहा है। साध्वी के साथ ज़िले में क़रीब एक लाख मतदाताओं वाला वर्ग 'निषाद' उनके साथ पहले की तरह इस बार भी पूरी तरह साथ नज़र आया है।
अब बात करें क्षत्रीय मतदाताओं की तो इनकी संख्या भी ब्राह्मणों के बराबर क़रीब सवा दो लाख है और यह वर्ग भी बीच के कुछ सालों को छोड़ दे तो भाजपा का कोर वोट बैंक रहा है और अभी भी है।लेक़िन इस बार के चुनाव में राजपूत वोट बैंक में भी तगड़ा बिखराव हुआ है।वोटिंग के बाद जुटाए गए आंकड़ो की बाते करें तो सदर,हुसेनगंज और शाह अयाह विधानसभा क्षेत्र के क्षत्रिय मतदाताओं का बिखराव होने से साध्वी की राह अब कठिन हो चली है।
अब बात करें सपा बसपा गठबंधन के कोर वोट बैंक जाटव और यादवों की तो इन दोनों वर्गों में किसी भी तरह की सेंधमारी करने में भाजपा व कांग्रेस सफ़ल नहीं हो पाई है।और दोनों ही वर्गों ने गठबंधन उम्मीदवार के पक्ष में अपना वोट दिया है।इसके अलावा ओबीसी वर्ग में गैर यादव और गैर पटेल(कुर्मी) तथा एससी वर्ग में गैर जाटव दलितों का एक हिस्सा मोदी के नाम पर साध्वी के साथ खड़ा नज़र आया है। ओबीसी वर्ग की कुछ ऐसी भी जातियां रहीं हैं जिन्होंने भाजपा के लिए जमकर वोटिंग की हैं।इन जातियों मौर्य और लोधी बिरादरी प्रमुख रूप से शामिल हैं। लेक़िन एससी वर्ग ने इस बार 2014 की तरह भाजपा में ज्यादा रुचि नहीं दिखाई है।जिसका खामियाजा साध्वी को भुगतना पड़ सकता है।
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सबसे अंत मे अब बात करते हैं मुस्लिम मतदाताओं की जो इस सीट पर निर्णायक साबित हो सकता है।फतेहपुर लोकसभा सीट पर क़रीब ढाई लाख वोटों की जमा पूँजी रखने वाला यह वर्ग भी इस बार ख़ासा कन्फ्यूज़ दिखा।राकेश सचान के कांग्रेस से टिकट पाने के बाद मुसलमानो का एक बड़ा तबका सचान के साथ नज़र आने लगा और सपा बसपा गठबंधन को पसंद करने वाला मुसलमान सुखदेव की तरफ़ झुक गया।वोटिंग के बाद आंकड़े यह बता रहे हैं मुस्लिम मतदाता लोकसभा क्षेत्र के कई हिस्सों में सचान और सुखदेव में डिवाइड हो गया है और यदि यह रिपोर्ट सही निकलती है तो यहाँ साध्वी को इसका पूरा फ़ायदा मिल सकता है।
लेक़िन यहाँ यह भी गौर करने वाली बात है कि फतेहपुर लोकसभा क्षेत्र मे इस बार 2014 में हुए चुनाव के मुकाबले क़रीब 3 प्रतिशत मतदान कम हुआ है।और ऐसा माना जाता है कि जहां-जहां वोटिंग का प्रतिशत कम रहता है वहां भाजपा के लिए मुश्किलें बढ़ जाती हैं।
युगान्तर प्रवाह द्वारा पूरे लोकसभा क्षेत्र के सभी विधानसभाओ के अलग अलग क्षेत्रों में रहने वाले वाले लोगों से बातचीत करने के बाद जुटाए गए आंकड़ो के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गई है। इस आधार पर सुखदेव प्रसाद वर्मा और साध्वी निरंजन ज्योति के बीच हुई कड़ी टक्कर में बाजी गठबंधन उम्मीदवार पूर्व विधायक सुखदेव प्रसाद वर्मा मार सकते हैं। हालांकि कांग्रेस उम्मीदवार राकेश सचान भले ही इस बार के चुनाव में लड़ाई में नज़र न आ रहे हो लेक़िन उनको मिलने वाला वोट काफ़ी हद तक साध्वी व सुखदेव की जीत या हार की दिशा तय करेगा।जिसके लिए हमें 23 मई तक का इंतजार करना पड़ेगा।