Siddhnath Temple Kanpur: सावन स्पेशल-जानिए गंगा किनारे स्थित प्राचीन बाबा सिद्धनाथ मन्दिर का पौराणिक महत्व ! आखिर क्यों 100 यज्ञ नहीं हो सके थे पूरे
- By युगान्तर प्रवाह संवाददाता
- Published 08 Jul 2023 10:56 AM
- Updated 27 Sep 2023 07:31 AM
Second Kashi Siddhnath Temple : एक काशी वाराणसी में है जिसे सभी बाबा विश्वनाथ की नगरी कहते हैं,और एक काशी कानपुर में भी है,हालांकि इसे द्वितीय काशी कहा जाता है.कानपुर के गंगा तट पर स्थित बाबा सिद्धनाथ का प्रसिद्ध शिव मंदिर है.यहां आस्था की डुबकी लगाने के बाद भक्त बाबा को बेल पत्र व गंगा जल से अभिषेक करते हैं. आइए आज हम बात करेंगे कानपुर के इस प्रसिद्ध शिव मन्दिर के पौराणिक इतिहास के बारे में..
हाइलाइट्स
कानपुर के जाजमऊ स्थित गंगा तट पर है बाबा सिद्धनाथ का प्राचीन मंदिर
राजा ययाति से जुड़ा है मन्दिर का इतिहास, 100 यज्ञ के दौरान कौए ने डाली थी हवन कुंड में हड्डी
द्वितीय काशी कहा जाने लगा, भक्तों की अपार भीड़ बाबा के दर्शन को उमड़ती है
Baba Siddhnath on the banks of the Ganges : मोक्षदायिनी माँ गंगा की अविरल और निर्मल धारा में आस्था की डुबकी लगाने के बाद भक्त बाबा सिद्धनाथ को जलाभिषेक कर विधि विधान से पूजन करते हैं,सावन के दिनों में शिव मन्दिर में भक्तों की अपार भीड़ उमड़ रही है.राजा ययाति से जुड़ा यह मंदिर अपने आप में अलग रहस्य छिपा कर रखा है..युगान्तर प्रवाह आपको सावन के हर दिन प्रसिद्ध शिव मंदिरों के दर्शन कराने के साथ ही उनके इतिहास के बारे में बता रहा है .आज चलिए कानपुर के गंगा किनारे स्थित बाबा सिद्धनाथ के धाम और जानेंगे इस मंदिर का पौराणिक रहस्य..

कानपुर के कोतवाल बाबा सिद्धनाथ : फोटो मंदिर
कहा जाता है बाबा सिद्धनाथ को कोतवाल
श्रावण मास भगवान शंकर को सबसे ज्यादा प्रिय है. भोले के भक्त शिवालयों में हर-हर महादेव के उद्घोष के साथ दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं .सावन के दिनों में विशेष पूजन अर्चन करने से भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं. जिससे भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. आज हम बात कर रहे हैं कानपुर के जाजमऊ स्थित गंगा किनारे स्थित प्राचीन बाबा सिद्धनाथ मंदिर के बारे में ,मंदिर के इतिहास की अगर बात करें तो इस मंदिर की अपनी एक अलग ही मान्यता है. बाबा सिद्धनाथ को जाजमऊ के कोतवाल के रूप में पूजा जाता है.
गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल है ये मंदिर
जाजमऊ क्षेत्र चमड़ा उद्योग के लिए प्रसिद्ध है. इस क्षेत्र में मुस्लिम और हिंदुओं की संख्या बराबर है. हमेशा यहां पर गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल दिखती है क्योंकि जाजमऊ के कोतवाल बाबा सिद्धनाथ सभी की रक्षा करते हैं.
त्रेतायुग का ये मंदिर कई रहस्य समेटे
मोक्षदायिनी मां गंगा के पावन तट पर स्थित बाबा सिद्धनाथ का यह मंदिर त्रेतायुग का बताया जाता है. यहां गंगा किनारे एक टीला हुआ करता था और यह टीला राजा ययाति का बताया जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार एक गाय एक निर्जन स्थान पर अपना सारा दूध छोड़ आती थी. चरवाहा यह देख दंग रह जाता था कि आखिर दूध जाता कहां है.राजा ने अपने सेना भेजकर यह जानना चाहा कि गाय आखिर दूध कहां पर छोड़ रही है.निर्जन स्थान पर जाकर देखा तो गाय एक पत्थर पर अपना सारा दूध छोड़ रही थी तभी राजा के मन में आया कि इसकी खुदाई कराई जाए.
कौए ने डाल दी हवन कुंड में हड्डी
खुदाई कराते ही एक शिवलिंग निकला.ऐसा कहा जाता है कि स्वप्न में राजा को भगवान ने कहा था कि यज्ञ करवाएं. राजा ने विधि विधान से यज्ञ कराना शुरू किया लेकिन 99 यज्ञ पूरे हो चुके थे जैसे ही सौवां यज्ञ शुरू होने जा रहा था, तभी एक कौए ने हवनकुंड में हड्डी डाल दी जिसके बाद यह स्थान द्वितीय काशी के नाम से जाना जाने लगा.
बाबा पर बेलपत्र और जलाभिषेक करने से होती है मनोकामना पूर्ण
धीरे-धीरे मंदिर का जीर्णोद्धार होता चला गया.आज बाबा सिद्धनाथ मंदिर को जाजमऊ के कोतवाल के रूप में पूजा जाता है. श्रावण मास में परिसर में भंडारे का भी आयोजन होता है. यहां पर स्थापित शिवलिंग की गहराई नापने के लिए दो बार खुदाई भी हो चुकी है लेकिन शिवलिंग के अंतिम छोर का पता नहीं चल सका है. यहां पर देश के कोने कोने से भक्त गंगा में आस्था की डुबकी लगाने के बाद बाबा के दर्शन के लिए आते हैं. बाबा को बेलपत्र अर्पित और जल से अभिषेक करते है जिससे बाबा प्रसन्न होते हैं और उनकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
ये भी पढ़ें- Rahul Gandhi Defamation Case : राहुल गांधी का राजनीतिक भविष्य अंधेरे में !