Ayodhya Ram Mandir: राम मंदिर के लिए 40 सालों से ऐसा संकल्प ! जानिए कौन हैं मौनी बाबा और मौनी माता जिनका प्रण होगा पूरा
Ram Mandir Mauni Baba Mauni Mata
अयोध्या (Ayodhya) में भव्य श्री राम मंदिर (Lord Ram Mandir) का निर्माण कार्य चल रहा है. 22 जनवरी के दिन राम लला की प्राण-प्रतिष्ठा (Life Consecration) कार्यक्रम का सभी को इंतजार है. ऐसे में देश भर के लाखों लोगों ने मंदिर निर्माण में अपनी सहभागिता दिखाई है, जिनमें से कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने वर्षों पहले मन ही मन मंदिर निर्माण का संकल्प ले लिया और तपस्या भी करते आ रहे है. ऐसे ही मौनी बाबा के रूप में बुंदेलखंड में मशहूर दतिया के संत जिन्होंने चार दशक पहले से मौन धारण कर लिया इसी तरह झारखंड के धनबाद की रहने वाली 85 वर्षीय सरस्वती देवी जिन्होंने राम मंदिर निर्माण के संकल्प को लेकर तीन दशक से मौन व्रत (Fasting Of Silence) रखा हुआ है अब वह भी 22 जनवरी के दिन अपना मौन व्रत तोड़ेंगी.
राम मंदिर निर्माण को लेकर चार दशक पहले लिया संकल्प हो रहा पूरा
अयोध्या (Ayodhya) का राम मंदिर जिनकी आस्था लाखों-करोड़ों हिंदुस्तानियों से जुड़ी हुई है. यह वही राम मंदिर है जिसके 500 सालों के संघर्ष में न जाने कितने लोगों ने बलिदान (Sacrifice) दिया है, तो उनमें से कुछ ऐसे भी हैं जो मन ही मन इस मंदिर के निर्माण को लेकर वर्षों पहले ही ऐसा संकल्प ले चुके थे, लेकिन अब वह समय आ चुका है जब उनका लिया हुआ संकल्प पूरा होने जा रहा है.
यह संकल्प राम लला (Ram Lala) की प्राण प्रतिष्ठा (Life Consecration) के दिन पूरा होगा. आईए जानते हैं ऐसे ही मध्य प्रदेश के दतिया (Datia) के मौनी बाबा (Mouni Baba) जिन्होंने चार दशको से मौन व्रत (Fasting Of Silence) रखा हुआ है, तो वही बिहार की रहने वाली 85 वर्षीय सरस्वती देवी (Saraswati Devi) जिन्हें सब मौनी माता (Mauni Mata) के नाम से सम्बोधित करते हैं. जिन्होंने तीन दशकों से कुछ ना बोलकर मन ही मन राम का नाम लेकर मंदिर निर्माण की प्रतीक्षा करती रही अब उनका भी संकल्प पूरा होने वाला है.
कौन हैं मौनी बाबा जिन्होंने 40 वर्ष से रखा मौन व्रत?
दतिया (Datia) के संत (Saint) ने 1980 में यह संकल्प लिया था कि जब तक राम मंदिर नहीं बन जाता (Ram Mandir Construction) तब तक वह अन्न ग्रहण नहीं करेंगे, पिछले 44 सालों से वह फल खाकर ही गुजारा कर रहे हैं, यही नहीं साल 1984 में उन्होंने राम मंदिर बनने के लिए पैरों में चप्पल (Slippers) भी पहनना छोड़ दिया था और मौन धारण (Fasting Of Silence) कर लिया था.
हालांकि मौन धारण किए हुए उन्हें 40 साल हो गए हैं, अब राम मंदिर बन रहा है और प्राण प्रतिष्ठा भी होने जा रही है, ऐसे में संत ने अयोध्या में अपना व्रत तोड़ने की इच्छा जाहिर की है, लेकिन उन्हें एक बात का अफसोस यह भी है कि अभी तक राम मंदिर की ओर से उन्हें निमंत्रण नहीं भेजा गया है जिस वजह से वह काफी निराश भी है.
संघर्षो से भरा रहा उनका संकल्प
हालांकि उनके इस संकल्प को 44 साल पूरे हो चुके हैं. इस दौरान उन्हें कई समस्याओं का भी सामना करना पड़ा. मतलब उन्हें किसी से कुछ कहना होता था तो वह अपनी बात को एक स्लेट (Slate) पर लिखकर कहते थे, लेकिन उन्हें यह विश्वास (Faith) जरूर था कि एक दिन ऐसा आएगा जब अयोध्या में रामलला विराजमान होंगे.
इसी उम्मीद के साथ उनका मनोबल पहले से भी ज्यादा बढ़ता रहा और आज वह सपना साकार होता दिखाई दे रहा है, लेकिन जब उन्हें निमंत्रण नहीं मिला तो उन्होंने जिले के अधिकारियों के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम ज्ञापन के माध्यम से अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने का निश्चय भी किया है और उनका विश्वास है कि प्रधानमंत्री तक यह बात पहुंचने पर उन्हें जरूर निमंत्रण दिया जाएगा.
झारखंड की मौनी माता ने 30 साल पहले लिया था संकल्प
मोनी बाबा की तरह ही झारखंड की 85 वर्षीय एक बुजुर्ग महिला सरस्वती देवी भी है जिन्होंने राम मंदिर निर्माण को लेकर मौन धारण किया था, पिछले 30 सालों से उन्होंने किसी से भी कुछ नहीं बोला लेकिन उन्होंने आज से 30 साल पहले यह निश्चय जरूर किया था कि यदि उनके जीते जी अयोध्या में रामलला विराजमान हो गए तो वह अयोध्या मंदिर में पहुंचकर अपना मौन व्रत तोड़ेंगे बिहार के धनबाद में रहने वाली सरस्वती देवी को उनके इस त्याग और तप से प्रभावित होकर मंदिर कमेटी की ओर से उन्हें प्राण प्रतिष्ठा के दिन का आमंत्रण भी सौंपा गया है.
पति की मौत के बाद श्रीराम के नाम समर्पित किया अपना जीवन
साल 1986 में उनके पति देवकीनंदन अग्रवाल की मौत के बाद उन्होंने अपना सारा जीवन भगवान श्री राम को समर्पित कर दिया और अपने जीवन का अधिकांश समय तीर्थ यात्राओं भगवान की पूजा पाठ में ही बिताया. इसी बीच उन्होंने मौन धारण भी कर लिया भगवान के प्रति उनकी इस श्रद्धा को देखते हुए आसपास के लोगों ने उन्हें मौनी देवी के नाम से संबोधन शुरू कर दिया जो उन्हें काफी पसंद भी आता है. अब तो आलम यह है कि दूर-दूर से लोग उनके दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं किसी से भी संवाद करने के लिए वह भी अपनी बात को लिखकर ही करती है.
हालांकि ऐसा करने में काफी समस्या भी होती थी, लेकिन इस क्रिया को करते हुए उन्हें 30 साल हो चुके हैं तो उन्हें अब यह काफी अच्छा भी लगता है सच में भगवान के प्रति उनकी इस आस्था को देखकर यह कहना गलत नहीं होगा हमारा देश आस्था का प्रतीक है, संतों और महापुरुषों का देश है. जहां ऐसे भी दिव्य आत्माएं होती हैं.