फतेहपुर:कांटो भरी है सुखदेव की राह..अपनी पार्टी का प्रत्याशी न पाकर भारी संख्या में सपाई सचान के लिए कांग्रेसी बने.!
जैसे जैसे ज़िले में वोटिंग का दिन नज़दीक आ रहा है वैसे वैसे चुनावी समीकरणों में परिवर्तन भी तेज़ी के साथ हो रहा है..गठबंधन के प्रत्याशी सुखदेव वर्मा की राह बदले हुए चुनावी समीकरणों में बेहद ही कठिन हो गई है..पढ़े इसी विषय पर युगान्तर प्रवाह की एक रिपोर्ट।
फतेहपुर: पांचवें चरण वाली लोकसभा सीट फतेहपुर में दिन प्रतिदिन बदल रहे सियासी समीकरणों से तीनों प्रमुख दलों के प्रत्याशियों की नींदे उड़ी हुई हैं। 23 मई को ऊंट किस करवट बैठेगा इसको लेकर भी सभी की निगाहें मौजूदा सियासी हालातों पर आकर टिक गई हैं।
सपा बसपा रालोद गठबंधन के बसपा कोटे से उम्मीदवार पूर्व विधायक सुखदेव प्रसाद वर्मा की बात करें तो उनके पास सपा बसपा का कोर वोट बैंक ही उनको लड़ाई में बनाए हुए था परन्तु मौजूदा कांग्रेस प्रत्याशी राकेश सचान का सपा से टिकट न मिलने के चलते कई सपाइयों का पार्टी से नाराज़ होकर सचान के लिए कांग्रेसी हो जाना सुखदेव बाबू की चिंता का अब प्रमुख कारण बन चुका है।
आपको बता दे कि स्थानीय स्तर पर सपा के कई नेता राकेश सचान को गठबंधन का उम्मीदवार न बनाए जाने से शीर्ष नेतृत्व से ख़ासा नाराज़ हो गए हैं। और राकेश सचान के कांग्रेस से टिकट पाने के बाद कांग्रेसी हो गए हैं। सचान के लिए कांग्रेसी हुए नेताओ में कई नेता यादव व कुर्मी बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं ऐसे में सपा के कोर वोट बैंक का ही खिसक जाना गठबंधन के उम्मीदवार सुखदेव वर्मा के लिए खतरे की घंटी बताई जा रही है।
सपा कार्यकर्ताओं की सुखदेव के चुनाव से दूरी बढ़ा सकती है गठबंधन की मुश्किलें...
शीर्ष नेतृत्व में भले ही सपा बसपा का गठबंधन हो गया हो पर फतेहपुर लोकसभा सीट पर दोनों पार्टियों के जमीनी कार्यकर्ताओं की आपस में ट्यूनिंग कोई बहुत अच्छी नहीं कही जा रही है।बसपा कोटे से उम्मीदवार घोषित होने के बाद सपा के कई नेताओं ने तो पार्टी तक छोड़ दी और कांग्रेस प्रत्याशी सचान के साथ कांग्रेसी खेमे में जा मिले तो वहीं दूसरी ओर कुछ सपाई बसपा प्रत्याशी के चुनाव से दूरी बना घर में बैठ गए हैं। सूत्रों की माने तो गठबंधन उम्मीदवार सुखदेव वर्मा सपाइयों को कोई भाव ही नहीं दे रहे हैं और न ही अपने चुनाव की किसी भी प्रकार की जिम्मेदारी जिससे सपा कार्यकर्ता अपने को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं और इसी के चलते वह खुद को चुनाव से अलग कर घर मे बैठे हुए चुनाव परिणामों का इंतजार कर रहे हैं।
कुर्मी वोटरों के सामने भी असमंजस की स्थिति...
ज़िले में कुर्मी वोट काफ़ी बड़ी तादात में है पर कुर्मी मतदाताओं के बीच अब असमंजस की स्थिति बन गई है वैसे तो राकेश सचान को ज़िले में कुर्मियों का बड़ा नेता माना जाता रहा है। पर गठबंधन से भी सजातीय प्रत्याशी आ जाने से वोटरों के बीच संशय की स्थिति बनी हुई है।इसके अलावा सत्ता पक्ष के दो विधायक भी इसी जाति के होने के चलते कुर्मी वोटरों में तगड़े बिखराव से इंकार नहीं किया जा सकता है।
सुखदेव को खुद की पूरे ज़िले में पहचान कराना भी बना सिरदर्द...
दो बार बिंदकी विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे बसपा प्रत्याशी सुखदेव वर्मा का सारा वक़्त अपनी विधानसभा के इर्द गिर्द ही बीता है।ऐसे में जब उनको गठबंधन ने बसपा कोटे से लोकसभा का उम्मीदवार बना दिया तो खुद की पूरे ज़िले में पहचान करा पाना भी सुखदेव के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है।
अब जबकि वोटिंग के लिए एक सप्ताह से भी कम का समय बचा है और अभी भी लोकसभा क्षेत्र के कई हिस्सों में लोग गठबंधन के उम्मीदवार को सामने से नहीं पहचानते हैं केवल उनका नाम ही सुना है।ऐसे में लोग कितना गठबंधन के उम्मीदवार के लिए समर्थन करते हैं ये तो आने वाले वक्त में ही पता चल पाएगा।
अब बड़ा सवाल यह है कि क्या गठबंधन उम्मीदवार सुखदेव प्रसाद वर्मा इन बचे हुए दिनों में बिगड़े हुए सियासी समीकरणों को दुरुस्त कर पाते हैं या नहीं.? क्योंकि मौजूदा हालातों को देखकर इतना तो कहा ही जा सकता है कि सुखदेव बाबू की राह किसी भी तरह से आसान नहीं दिख रही है..!