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Lakhimpur Kheri Frog Temple: देश के इस इकलौते मन्दिर में मेंढक की होती है पूजा ! पीठ पर विराजमान है शिवजी, जानिए पौराणिक महत्व

हमारा देश कई रहस्यों से घिरा हुआ है.यहां कई ऐसे चमत्कारी और अनोखे प्राचीन शिव मंदिर हैं जिनकी अद्धभुत मान्यता है.लखीमपुर के ओयल कस्बे में मण्डूक तंत्र पर आधारित मेढक मन्दिर है,कहा जाता है कि यहां मेढक की पूजा होती है.यह देश का इकलौता मन्दिर है जहां मेंढक की पूजा होती है.यहां मेढक की पीठ पर शिवजी विराजमान रहते हैं,शिवलिंग का रंग तीन बार दिन में बदलता है.यहां सावन ,शिवरात्रि में भक्तों की अपार भीड़ उमड़ती है.

Lakhimpur Kheri Frog Temple: देश के इस इकलौते मन्दिर में मेंढक की होती है पूजा ! पीठ पर विराजमान है शिवजी, जानिए पौराणिक महत्व
लखमीपुर में देश का इकलौता मेंढक मन्दिर, फ़ोटो साभार गूगल
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हाईलाइट्स

  • देश का इकलौता प्राचीन मेंढक मन्दिर,राजा बख्त सिंह ने मन्दिर का कराया था निर्माण
  • मण्डूक तंत्र पर आधारित है मन्दिर,मेढक के ऊपर विराजमान है शिवजी
  • नर्मदेश्वर शिव मंदिर कहा जाता है,दिन में तीन दफा बदलता है शिवलिंग का रंग

The country's only frog temple in Lakhimpur : देश में कई प्राचीन और रहस्यमयी शिव मंदिर का अलग ही महत्व है.श्रावण मास में  भक्तों की भीड़ शिवमंदिरों में उमड़ी हुई है. भक्त महादेव के जयकारों के साथ भोले के दर्शन को पहुंच रहे हैं.आज लखीमपुर के एक ऐसे अनोखे मंदिर के पौराणिक महत्व के बारे में बताएंगे,जिसकी मान्यता बड़ी अलग है और एक विशेष जीव से जुड़ी हुई है.

मेंढक की पीठ पर विराजे हैं शिवजी,दर्शन का विशेष महत्व

लखीमपुर के ओयल कस्बे में प्राचीन शिव मंदिर है,यह मन्दिर मेंढक मन्दिर के नाम से जाना जाता है.इस मंदिर में मेंढक की पूजा होती है.बाहर से ही

मंदिर की अद्भुत नक्काशी राजस्थानी स्थापत्य कला के साथ तांत्रिक मण्डूक तंत्र पर बना है.इस मंदिर को यदि बाहर से गौर से देखें तो आगे विशाल मेंढक की आकृति है,जिसकी पीठ पर पूरा शिव मंदिर विराजमान है.कह सकते हैं कि शिवजी मेंढक की पीठ पर विराजे हैं.मन्दिर के अंदर तांत्रिक देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं.

शिवलिंग दिन में तीन बार बदलता है रंग

इस मंदिर में जो शिवलिंग है वह दिन में तीन बार रंग बदलता है.खड़ी नन्दी की मूर्ति है जो आपको कहीं भी देखने को नहीं मिलेगी.दूर दूर से भक्त इस अनोखे मन्दिर के दर्शन के लिए पहुंचते हैं. इसे नर्मदेश्वर शिवलिंग कहा जाता है.इस मंदिर में अघोरी और तांत्रिक भी पूजा करते हैं.मेढक की भी पूजा की जाती है.यह मंदिर देश का इकलौता मेंढक मन्दिर है.यहाँ चाहमान वंश के राजा बख्त सिंह ने इस अद्भुत मंदिर का निर्माण कराया था. मंदिर की वास्तु परिकल्पना एक तांत्रिक ने की थी. 

शादीशुदा जोड़ों को दर्शन का मिलता है लाभ

यह मेंढक मन्दिर पूरे देश में विख्यात है.सावन के दिनों में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है,विशेष पर्व जैसे शिवरात्रि और दीपावली के दिन दर्शन का भी विशेष महत्व है.शिवरात्रि में दूर दराज से भक्तों का हुजूम उमड़ता है. ऐसी मान्यता भी है क्योंकि मेंढक को अच्छी किस्मत और प्रजनन का प्रतीक माना गया है.शादी शुदा जोड़ों को दर्शन का विशेष लाभ प्राप्त होता है.

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