Adhik Maas 2023 : भगवान श्री हरि को प्रिय है ये Purushottam Mass ! जानिए इसके पीछे का पौराणिक महत्व और Malmas की विशेषता
- By युगान्तर प्रवाह संवाददाता
- Published 03 Jul 2023 11:59 AM
- Updated 24 Sep 2023 08:42 AM
AdhikMass 2023: अधिकमास को मलमास (Malmas) और पुरुषोत्तम मास (Purushottam Mass) भी कहा जाता है.अधिकमास भगवान श्री हरि को प्रिय है.पौराणिक मान्यताओं के अनुसार प्रचलित कथाएं भी अधिकमास को लेकर समाहित हैं.इस वर्ष अधिकमास की शुरुआत सावन के बीच से ही हो रही है.यह मास 18 जुलाई से शुरू होकर 16 अगस्त को समाप्त हो जाएंगे.
हाइलाइट्स
अधिकमास इस बार सावन के बीच से ही शुरू होंगे, 18 जुलाई से शुरू होना है अधिकमास
भगवान विष्णु को प्रिय है ये अधिकमास,पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है
59 दिनों के होंगे सावन, अधिमास में करें पूजन ,व्रत
Adhikamas Purushottam Mass Malmas 2023 : अधिकमास भी सावन (Sawan 2023) के बीच में ही शुरू होने जा रहा है. हर तीन साल में एक बार साल का अतिरिक्त माह होता है. जिसे अधिकमास (Adhik Mass) कहा जाता है. क्या है इस अधिकमास की विशेषता और क्यों आता है यह मास. अधिकमास को मलमास (Malmas) और पुरुषोत्तम मास (Purushottam Mass) भी क्यों कहा जाता है तरह-तरह के प्रश्न आप सभी के मन में अवश्य आ रहे होंगे..
सावन के बीच में ही शुरू होंगे अधिकमास
अधिकमास इस बार 18 जुलाई से प्रारम्भ होने जा रहा है.अधिकमास समय की जो स्थिति है अनुकूल बनाने के लिए आता है.इस मास में हालांकि वैवाहिक कार्यक्रम, मुंडन संस्कार नहीं होते हैं. जबकि पूजन,पाठ और योग साधना और व्रत के लिए यह मास बड़ा खास होता है.
अतिरिक्त माह किसी भी माह से जुड़ सकता है
पंचांग के अनुसार सूर्य 365 दिन, जबकि चंद्र वर्ष में 354 दिन होते हैं. देखा जाए तो दोनों के बीच 11 का अंतर होता है और 3 साल में एक बार अधिक मास आने से इसका अंतर 33 हो जाता है .जो अतिरिक्त माह का रूप लेता है.यह 33 किसी भी माह से जुड़ सकता है फिर वह अधिक मास बन जाता है.अधिकमास भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है.
भगवान विष्णु को प्यारा है अधिकमास
अधिकमास इसबार सावन मास के बीच में ही पड़ने जा रहा है. तभी सावन इस बार 59 दिनों के होंगे. अधिक मास को हम सभी मलमास और पुरुषोत्तम मास के नाम से भी जानते हैं. अधिक मास ,मलमास, पुरुषोत्तम मास की पीछे की क्या कथा है इसका जिक्र भी हम करते हैं. भगवान अधिक मास नहीं चाहते थे क्योंकि शुभ कार्य वर्जित थे फिर क्षीर सागर में विराजमान विष्णु जी ने अधिकमास को अपनाया. वहीं इस अधिक मास का आधार राक्षस हिरण्यकश्यप से भी जुड़ा है.
दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने मांगा अमरता का वरदान
अधिकमास को मलमास और पुरुषोत्तम मास की कहा जाता है. दरअसल यह मास भगवान श्री हरि को काफी प्रिय है, इसके पीछे भी एक पौराणिक कथा है ..एक बार राक्षस राज हिरण्यकश्यप ब्रह्मा जी से मन चाहा वरदान के लिए घोर तपस्या कर रहा था.हिरण्यकश्यप की भावपूर्ण और कठिन तपस्या से ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए और प्रकट हुए.हिरण्यकश्यप ने हाथ जोड़कर ब्रह्मा जी को नमन किया और उनसे अमर होने का वरदान मांगा. ब्रह्ना जी ने सोचा कि यह वरदान थोड़ा असंभव है और कुछ मांग लो.
भगवान ने लिया नरसिंह अवतार
हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मा जी से दूसरा वरदान मांगा कि,है ब्रह्ना जी ऐसा वरदान दें जिससे संसार का कोई भी मानव, पशु, देवता या असुर मार न सके. मृत्यु भी एक बार कांप जाए .हिरण्यकश्यप चाहता था न दिन का समय हो और ना रात को. ना ही उसे कोई अस्त्र और ना किसी शस्त्र से. उसे न घर में मारा जाए और न ही घर से बाहर. ब्रह्मा जी ने उसे ऐसा ही वरदान देकर तथास्तु कहकर अदृश्य हो गए.
वरदान पाकर हिरण्यकश्यप स्वयं को भगवान के समान मानने लगा .उसका पुत्र प्रह्लाद जो भगवान विष्णु का हमेशा ध्यान करता रहता था.हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को भी कई बार नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया और कहता रहा कि भगवान विष्णु को पूजना छोड़ दे.मैं ही सबका भगवान हूँ.. कहते हैं जब बुद्धि भ्रष्ट होती है तो अंत का समय नज़दीक होता है. तब भगवान विष्णु अधिकमास के दिनों में नरसिंह अवतार का रूप लेकर खम्भे से प्रकट हुए और शाम के समय देहरी के नीचे अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप का सीना चीर कर उसे मृत्यु के द्वार भेज दिया.
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