Rambhadracharya Biography In Hindi: बचपन से नेत्रहीन होने के बावजूद 22 भाषाओं का ज्ञान व 80 ग्रंथों की रचना करने वाले जगद्गुरु श्री रामभद्राचार्य कौन हैं? प्रधानमंत्री से लेकर बागेश्वर सरकार मानते हैं गुरु
रामभद्राचार्य ज्ञानपीठ पुरस्कार
हिन्दू धर्म में साधू, सन्यासी व महात्माओं का बड़ा महत्व है. हमारे सनातन धर्म में बड़े तेजस्वी साधु-संत रहे हैं. रामानंद संप्रजाय के चार प्रमुख जगद्गुरुओं में से एक जगद्गुरु श्री रामभद्राचार्य (Shri Rambhadracharya) हैं. जो बचपन से नेत्रहीन (Blind) होने के बावजूद उन्हें 22 भाषाओं का ज्ञान व 80 ग्रन्थों की रचना कर चुके हैं. प्रभू राम के अनन्य भक्त व आध्यात्मिक गुरु श्री रामभद्राचार्य के नाम कई बड़े सम्मान दर्ज हैं. हाल ही में उनका नाम ज्ञानपीठ अवार्ड (Gyanpith Award) के लिए नामित हुआ है.
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अपार ज्ञान व शक्तियों का भंडार
हमारे देश में कई ऐसे प्रसिद्ध संत रहे हैं. जिनमें अपार ज्ञान व शक्तियों का भंडार रहा है. संतों के सत्संग व वाणी हमारा मार्गदर्शन जीवन में करती हैं. आज हम आपको एक ऐसे संत के बारे में बताने जा रहे हैं जो अपने आप में विद्वान के साथ ही कथाकार, नाटककार, दार्शनिक, बहुभाषाविद हैं. यही नहीं नेत्रहीन होने के बावजूद 22 भाषाओं का ज्ञान 80 ग्रथों की रचयिता की है. चलिये आपको बताएंगे कि ये संत कौन हैं.
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित होंगे जगतगुरू रामभद्राचार्य
केंद्र सरकार की ओर से ज्ञानपीठ पुरस्कार का एलान कर दिया गया है इस बार संस्कृत भाषा के लिए उत्कर्ष योगदान देने वाले कथावाचक जगदगुरु स्वामी रामभद्राचार्य को इस औधे से सम्मानित किया जाएगा. बड़े बुजुर्गों का ऐसा कहना है कि जब ऊपर वाला किसी व्यक्ति से कुछ छीन लेता है तो इसके बदले वह उसे ऐसी अनोखी चीज दे देता है जो उसे दुनिया के बाकी लोगों से बिल्कुल अलग कर देती है.
कथावाचक जगदगुरु स्वामी रामभद्राचार्य भी दुनिया के बाकी लोगों से अलग हैं क्योंकि वह जन्म से ही नेत्रहीन है. उनकी यह कमी कभी उनके आड़े नहीं आई वह चित्रकूट में तुलसी पीठ के संस्थापक होने के साथ-साथ कई भाषाओं का ज्ञान व 100 से ज्यादा किताबें भी लिखी है उनके पास आज जो भी ज्ञान का भंडार है उन्होंने वह सब सुनकर ही प्राप्त किया है अयोध्या राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद संघर्ष में उनका अहम रोल रहा है.
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कौन हैं श्री रामभद्राचार्य?
जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य का जन्म साल 1950 को जौनपुर में हुआ था. माता शची देवी और पिता पण्डित राजदेव मिश्र के घर जन्मे रामभद्राचार्य आज एक बहुत बड़ा नाम है. वे आध्यात्मिक गुरु हैं, कथाकार है, रामकथाएं खड़े हैं. दो महीने की उम्र में ही उनके नेत्रहीन होने की पुष्टि हो गयी थी. बावजूद उन पर ईश्वर की ऐसी कृपा रही कि उन्होंने मात्र 4 साल की उम्र से ही उनके अंदर एक अलग प्रतिभा दिखाई देने लगी. जब वे 4 वर्ष के थे तभी से कविताओं का उन्हें बोध हो गया था. 8 साल की उम्र में रामकथा व भागवत करने लगे थे.
अध्यात्म के प्रति उनके इस अहम योगदान और अद्धभुत रचनाओं के लिए भारत सरकार की ओर से उन्हें साल 2015 में पद्मविभूषण से भी सम्मानित किया गया है. यही नही वह चित्रकूट में विकलांग विश्विद्यालय के संस्थापक भी है उन्होंने हिंदी और संस्कृत में 4 महाकाव्य भी लिख चुके है. जगद्गुरु पढ़-लिख नहीं सकते हैं और न ही ब्रेल लिपि का प्रयोग करते हैं. केवल सुनकर ही वे सीखते हैं और बोलकर अपनी रचनाएं लिखवाते हैं. नेत्रहीन होने के बावजूद भी उन्हें 22 भाषाओं का ज्ञान प्राप्त है और उन्होंने 80 ग्रंथों की रचना की है.
इन बातों को लेकर बने रहे चर्चाओ में
उन्होंने तुलसीदास द्वारा रचित हनुमान चालीसा की कुछ चौपाइयों में कुछ त्रुटियां बताई है तभी से वह सुर्खियों में बने हुए है यही नही सालो से विवादित रही रामजन्म भूमि को लेकर उन्होंने कोर्ट में वैदिक प्रमाण के तौर पर अथर्ववेद के 10वे कांड के 31वे अनुवाक के दूसरे मन्त्र के रूप में वैदिक प्रमाण दिया था जब उनके शिष्य बागेश्वर धाम के पीठाधीश पण्डित धीरेन्द्र शास्त्री के चमत्कारों को लेकर विवादों में फंसते हुए नजर आए थे, उस समय भी उन्होंने गुरु के तौर पर अपने शिष्य के लिए दीवार बनकर खड़े रहे थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उन्हें गुरु मानते हैं. श्री राम भद्राचार्य राम कथाएं कहते हैं.
जगद्गुरु की उपाधि मिली है
राम भद्राचार्य जी को जगद्गुरु की उपाधि मिली हुई है. इसके साथ ही धर्म चक्रवर्ती, महामहोपाध्याय, श्री चित्रकूट तुलसी पीठाधीश्वर, बात की जाए सम्मान की तो उन्हें वर्ष 2015 में पद्म विभूषण, 2017 में देवभूमि पुरुषकार, साहित्य अकादमी अवॉर्ड, बदरायण अवॉर्ड, राजशेखर सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है. अब ज्ञानपीठ अवार्ड के लिए उनके नाम की घोषणा हुई है.