Tapkeshwar Mahadev Temple : इस प्राचीन गुफा में प्रकृति करती है शिवलिंग का जलाभिषेक,गुरु द्रोणाचार्य ने यहां की थी शिव जी की तपस्या
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में प्राचीन शिव मन्दिर का रहस्यमयी इतिहास बड़ा ही अनोखा है.इस मंदिर को टपकेश्वर मन्दिर के नाम से जानते हैं.मान्यता है यहां पहाड़ों में थन के आकार की एक जगह से निरन्तर जल की धारा सीधा शिवलिंग पर गिरती रहती है.इस जगह को गुरु द्रोणाचार्य की तपोस्थली भी कहा जाता है.सावन मास में भक्तों का तांता लगा रहता है.

हाईलाइट्स
- देहरादून में प्राचीन रहस्यमयी शिव मंदिर का अनोखा महत्व,गुफा के अंदर है शिवलिंग
- यहां पहाड़ से जल की धारा निकलती है ,शिवलिंग का जलाभिषेक करती है प्रकृति
- गुरु द्रोणाचार्य ने यहां की थी शिवजी की तपस्या,सावन मास में यहां देश-विदेश से भक्तों का लगा रहता है
mysterious Shivling in the ancient cave in Dehradun : उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है.उत्तराखंड के कण-कण में शिव ही शिव बसे हुए हैं. इस पवित्र देवभूमि देहरादून शहर में एक प्राचीन पांडव कालीन शिव मंदिर भी है. जो तमसा नदी किनारे एक प्राकृतिक गुफा के अंदर स्थित है. इसे गुरु द्रोणाचार्य की तपोस्थली भी कहा जाता है. इस मंदिर के रहस्य को लेकर आज भी लोग हैरान हैं. श्रावण मास हो या शिवरात्रि यहां भक्तों की भीड़ बराबर बनी रहती है. दूरदराज से भक्त भोलेनाथ के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं और जल से अभिषेक कर घर की सुख समृद्धि की कामना करते हैं.आज ऐसे ही रहस्यमयी शिव मंदिर के पौराणिक महत्व के बारे में आप सभी को बताते हैं..
प्रकृति खुद करती है शिव का जलाभिषेक
गुरु द्रोणाचार्य की तपोस्थली भी है यहां,शिवजी ने धनुर्विद्या की दी थी द्रोण को शिक्षा
यहां पर गुरु द्रोण ने कठोर तपस्या कर शिव के दर्शन पाए थे. ऐसा कहा जाता है कि शिव जी ने ही गुरु द्रोण को धनुर्विद्या की शिक्षा दी थी.देहरादून को द्रोण नगरी भी कहा जाता है.यहीं गुरु द्रोण के पुत्र अश्वत्थामा का जन्म हुआ था. अश्वत्थामा की मां से दूध की पूर्ति नहीं हो रही थी, तभी शिव जी ने पहाड़ में गाय के थन के आकार की आकृति बना दी.प्राचीन काल से इस आकृति से दूध की धारा बहने लगी. यह दूध की धारा शिवलिंग पर गिरती थी. तब इस जगह को दूधेश्वर कहा जाता था.
समय बदला नाम पड़ गया टपकेश्वर महादेव
समय बदलता गया और पहाड़ों से निकलने वाली दूध की धारा जल में परिवर्तित हो गई. जिसके बाद इस मंदिर का नाम टपकेश्वर पड़ गया. आज यह टपकेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है. शिवरात्रि के दिन 10 दिनों का मेला भी लगता है. भक्त देश-विदेश से आकर भोलेनाथ के शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं.ऐसा कहा जाता है कि यहां शिवलिंग पर एक लोटा जल चढ़ाने से ही बाबा प्रसन्न हो जाते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं.