
Mallikarjuna Jyotirlinga : सावन स्पेशल-आंध्रप्रदेश में है द्वितीय ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन ! शिव परिवार से जुड़ा है पौराणिक महत्व, जानिए क्यों कहा जाता है दक्षिण का कैलाश
आंध्रप्रदेश के कृष्णा जिले में श्रीशैल पर्वत पर द्वितीय ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन है.मन्दिर में एक साथ ज्यादा भक्त दर्शन नहीं कर सकते हैं.इसलिए भक्तों को लाइन में ही इंतजार करना पड़ता है. कहा जाता है इस मंदिर में शिव-पार्वती विराजते हैं.सच्चे मन से दर्शन करने वाले भक्तों की भोलेनाथ अवश्य पूर्ण करते हैं.

हाईलाइट्स
- आंध्रप्रदेश में है द्वितीय ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन , इस शिव मंदिर का है पौराणिक मान्यता
- सावन के दिनों में विशेष महत्व ,श्री शैलम पर्वत पर है स्थित
- शिव परिवार से जुड़ी है मान्यता, शिव जी और पार्वती जी विराजते हैं
Mallikarjuna Jyotirlinga is in Andhra Pradesh : युगांतर प्रवाह लगातार आपतक देश के प्रसिद्ध शिव मंदिरों के दर्शन व उनके रहस्य और पौराणिक इतिहास को बता रहा है.आज हम बात करेंगे 12 ज्योतिर्लिंगों में से द्वितीय ज्योतिर्लिंग की जिन्हें मल्लिकार्जुन कहा जाता है.द्वितीय ज्योतिर्लिंग का अपना अलग महत्व और इतिहास है.यहां भगवान शंकर और माता पार्वती एक साथ विराजते हैं. जानिए इसका पौराणिक महत्व और कैसे हुई इसकी स्थापना.

सावन मास भोलेनाथ को अत्यंत प्रिय है.इन दिनों शंकर जी की विधि विधान से पूजन करने से शिव शंकर प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों पर कृपा करते हैं. 12 ज्योतिर्लिंगों का अपना अलग ही महत्व है.इनमें से एक द्वितीय मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग है. इस ज्योतिर्लिंग की कथा शिव परिवार से ही जुड़ी है. मल्लिकार्जुन के दर्शन के लिए आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले जाना होगा. मार्ग में सुंदर पहाड़ और झरनों का अद्भुत मनोरम आपका मन मोह लेगा फिर श्री शैल पर्वत पर भोलेनाथ विराजमान हैं.नीचे कृष्णा नदी भी है.
शिव परिवार से जुड़ा है द्वितीय ज्योतिर्लिंग का महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार यह कथा प्रचलित है. भगवान शिव-पार्वती के पुत्र भगवान गणेश और कार्तिकेय जी दोनों विवाह करना चाहते थे.गणेश जी कार्तिकेय से पहले विवाह बंधन में बंधना चाहते थे. इसके लिए शिव जी और माता पार्वती ने दोनों के समक्ष प्रस्ताव रखा. जो पृथ्वी की पूरी परिक्रमा करेगा उसका विवाह पहले होगा. जिसके बाद कार्तिकेय जी तो पृथ्वी की परिक्रमा करने निकल गए. गणेश जी नहीं गए.गणपति की बुद्धि तीव्र और कुशल थी.उन्होंने अपने माता-पिता यानी शिव-पार्वती के ही 7 चक्कर लगाकर परिक्रमा कर ली. क्योंकि उन्होंने अपने माता-पिता को ही पृथ्वी समान मान लिया था.
कार्तिकेय इस बात से हुए थे नाराज शिवजी और पार्वती गए थे मनाने
भगवान शिव-पार्वती दोनों ही अपने पुत्र की इस कुशल नीति से अत्यंत प्रसन्न हुए.जिसके बाद गणेश जी का विवाह सिद्धि और बुद्धि से कर दिया गया.ये दोनों विश्वरूप प्रजापति की पुत्रियां थीं.इनसे दो पुत्र क्षेम और लाभ हुए.जब गणेश के विवाह की बात कार्तिकेय को पता चली तो वह नाराज होकर क्रोंच पर्वत पर चले गए.माता पार्वती और शिव शंकर उन्हें मनाने के लिए पहुंचे .उनके आगमन की सूचना पर वे वहां से निकल गए.जिसके बाद वहां भोलेनाथ वहाँ ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गए. और माता पार्वती भी वहीं विराजमान हो गईं .तबसे इसे मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग कहा जाने लगा.
भगवान शिव और पार्वती माता रहती हैं विराजमान
मल्लिकार्जुन का अर्थ ही पार्वती और शिव है.मल्लिका मतलब पार्वती माता, और अर्जुन मतलब शिव शंकर. ऐसा बताया जाता है हर पूर्णिमा और अमावस्या का यहां विशेष महत्व होता है. इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती यहां आते हैं.सावन के दिनों में भारी भीड़ भक्तों की उमड़ती है.इस मंदिर को दक्षिण का कैलाश भी कहा जाता है. यहां दर्शन करने आए भक्तों की भोलेनाथ मनोकामना अवश्य पूर्ण करते हैं.
श्रीशैल पर्वत का विशेष महत्व
इस मंदिर में तमिल संतों ने स्तुतियां गाई हैं स्कंदपुराण में श्री शेलम का वर्णन आया है..शैल पर्वत के पूजन का भी विशेष महत्व है.सावन के दिनों में भारी भक्तों की भीड़ उमड़ती है गर्भ गृह छोटा होने के कारण अंदर लाइन से ही भक्त दर्शन के लिए जा सकते हैं. यहां पीछे सीढ़ियों पर आदि शक्ति शक्तिपीठ भ्रमरम्बा माता का मंदिर है.कहते हैं सती माता की ग्रीवा ,गला या गर्दन यहां गिरी थी. यहां माता को लक्ष्मी के रूप में पूजा जाता है.
कैसे जाएं मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने के लिए ट्रेन व फ्लाइट की सुविधा उपलब्ध है.आप अपने वाहन से भी मल्लिकार्जुन जा सकते हैं. फ्लाइट के लिए सेवा दिल्ली, मुंबई ,बैंगलोर, अहमदाबाद और लखनऊ व छोटे एयरपोर्ट से भी कनेक्टिंग फ्लाइट राजीव गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट के लिए है. राजीव गांधी एयरपोर्ट से मल्लिकार्जुन मंदिर की दूरी करीब 200 किलोमीटर है.यहां से आपको टैक्सी लेनी पड़ेगी.यदि आप ट्रेन से सफर करना चाहते हैं तो आपको मारकापुर रेलवे स्टेशन उतरना होगा.यहां से मन्दिर की दूरी 84 किलोमीटर है.आसपास रुकने व ठहरने की उत्तम व्यवस्था है.