Janmashtami 2023 Kheera: श्रीकृष्ण जन्माष्टमी में क्यों काटा जाता है खीरा? इसके बिना अधूरी होती है पूजा ! जानिए इसका पौराणिक महत्व
- By युगान्तर प्रवाह संवाददाता
- Published 05 Sep 2023 05:27 PM
- Updated 22 Sep 2023 12:07 AM
Janmashtami 2023 Kheera: श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व धूमधाम से 6 व 7 सितंबर को मनाया जाएगा. हर वर्ष भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जन्माष्टमी मनाई जाती है. आधी रात 12 बजे कान्हा का जन्म हुआ था. हिन्दू धर्म मे जन्माष्टमी पर्व का विशेष महत्व है, लड्डू गोपाल के जन्म के बाद विधि विधान से पूजन और भोग लगाना चाहिए. जन्माष्टमी पर डंठल वाले खीरे का विशेष महत्व है. बिना खीरे के पूजा अधूरी मानी जाती है.
हाइलाइट्स
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व धूमधाम से मनाने की तैयारी में जुटा देश
6 व 7 सितंबर को मनाई जाएगी जन्माष्टमी, खीरे का पूजन में विशेष महत्व
बिना डंठल वाले खीरे के पूजन अधूरी, खीरे का महत्व बहुत बड़ा, गर्भवती स्त्री को प्रसाद के रुप में दे खी
Special importance of cucumber on Janmashtami : श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पर्व की तैयारी में पूरा देश जुटा हुआ है. घर-घर में श्री कृष्ण जन्मोत्सव की तैयारी शुरू हो गई है. कान्हा के बाल स्वरूप लड्डू गोपाल का रात्रि 12 बजे जन्म होगा. ऎसे में भगवान के लिए विशेष भोग तैयार किये जाते हैं. एक चीज़ जिसके बिना जन्माष्टमी पूजन अधूरा माना जाता है, वह क्या है आइये आपको इस विशेष चीज़ के बारे में बताते है.
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी में खीरे को अवश्य करें शामिल
'नन्द के घर आनन्द भयो जय कन्हैया लाल की, हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की' पूरा देश श्री कृष्ण जन्मोत्सव यानी जन्माष्टमी पर्व की तैयारी में जुट गया है. 6 सितंबर को श्री कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जा रही है. ऐसे में हिंदू धार्मिक ग्रंथ के अनुसार श्री कृष्ण जन्मोत्सव के समय विशेष प्रकार के भोग भगवान के लिए बनाए जाते हैं. जैसे पंजीरी, पंचामृत और खीर इसके अलावा भी एक चीज ऐसी है जिसके बिना श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पूजन अधूरा माना जाता है वह खीरा है.
डंठल वाले खीरे का है महत्व,नाल छेदन कहते हैं
हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार खीरे का जन्माष्टमी में विशेष महत्व है. खास तौर पर डंठल वाला खीरा इस पूजन में प्रयोग किया जाता है. इस खीरे को गर्भनाल की तरह ही माना जाता है. जिस तरह से माता के गर्भाशय से बच्चे को निकाल कर गर्भनाल से अलग किया जाता है. ठीक उसी तरह डंठल वाले खीरे को डंठल से अलग कर दिया जाता है. जिसे नाल छेदन भी कहते हैं.
गर्भनाल की तरह खीरे की डंठल को काटकर अलग किया जाता है
कुछ इस तरह से समझे जिस तरह से एक बच्चे का जन्म माँ की कोख से होता है. जन्म के समय माता के गर्भाशय से बच्चे को निकाल कर उसके गर्भनाल को काटकर अलग कर दिया जाता है. इस तरह जन्माष्टमी के दिन लड्डू गोपाल का जन्म खीरे से होता है. इस दिन कृष्ण भक्त कृष्ण जी के बाल रूप लड्डू गोपाल के पास बनाए गए भोग के साथ खीरा रखते हैं और रात्रि 12 बजे जन्म के समय खीरे की डण्ठल को सिक्के से काटकर अलग कर दिया जाता है. फिर श्रीकृष्ण का जन्म होता है. भक्त शंखनाद कर भगवान श्रीकृष्ण का जन्म महोत्सव मनाते हैं. और विधि विधान से पूजन करते हैं.
लड्डू गोपाल को लगाए भोग, भगवान को लगाए गए खीरे का भोग दें गर्भवती महिलाओं को
लड्डू गोपाल को पंजीरी ,पंचामृत और खीर के अलावा श्री कृष्ण को खीरे का भोग भी जरूर लगाना चाहिए. खीरा के भोग से मुरली मनोहर प्रसन्न होते हैं , और अपने भक्तों के सारे दुखों का निवारण करते हैं. अन्य प्रसाद के साथ कटे हुए खीरे को प्रसाद के रूप में बांट दिया जाना चाहिए और यदि उसे गर्भवती महिला को खिलाया जाए तो कहा जाता है कि श्री कृष्ण के जैसे ही संतान पैदा होती है.