Achleshwar Mahadev Mount Abu : पहाड़ों के बीच एक ऐसा शिव मन्दिर जहां होती है शिव के अंगूठे की पूजा, जानिए अचलेश्वर महादेव मंदिर का रहस्य
राजस्थान के धौलपुर में ऊंची पहाड़ियों और घने जंगलों में हज़ार वर्ष पुराना एक ऐसा रहस्यमयी शिव मंदिर है. यहां भगवान शिव के अंगूठे की पूजा की जाती है. सावन के दिनों में भक्तों का यहां पर तांता लगा रहता है.कुँआरे,लड़के और लड़कियां यहां पूजन करें तो मनचाहा जीवन साथी भी मिलता है.यहां चढ़ाया हुआ जल पाताल लोक में जाता है.
हाईलाइट्स
- राजस्थान के धौलपुर स्थित माउंट आबू पर्वत पर रहस्यमयी शिव मंदिर
- यहां शिव जी के अंगूठे की होती है पूजा,चढ़ाया हुआ जल जाता है पाताल लोक
- यहां दर्शन करने से मन्नतें होती हैं पूर्ण, मान्यता है अंगूठे पर टिका है ये पहाड़
Achaleshwar Mahadev Temple in Rajasthan : युगांतर प्रवाह की टीम आपको सावन के अवसर पर देश के प्रसिद्ध और रहस्यमयी शिव मंदिरों के पौराणिक महत्व के बारे में बता रहा है. आज हम बात करेंगे राजस्थान के धौलपुर स्थित माउंट आबू पर्वत पर स्थित अचलेश्वर महादेव मंदिर की. जानेंगे मन्दिर के पौराणिक महत्व और मान्यता के बारे में. यहां भगवान शंकर के अंगूठे की पूजा का विशेष महत्व है. तो चलिए धौलपुर स्थित अचलेश्वर महादेव मंदिर के पौराणिक महत्व और क्या है इसकी मान्यता आपको बताते हैं..
हज़ार वर्ष प्राचीन अचलेश्वर महादेव मंदिर के दर्शन का महत्व
राजस्थान के धौलपुर से 11 किलोमीटर दूर अचलगढ़ की पहाड़ियों के पास एक रहस्यमयी शिव मंदिर है. जिसे अचलेश्वर महादेव के नाम से जानते हैं. यह मंदिर हज़ार वर्ष पुराना बताया जाता है. हालांकि पहले मंदिर बीच घने जंगलों और पहाड़ पर होने की वजह से लोग कम पहुंच पाते थे.लेकिन जैसे-जैसे आधुनिकता बढ़ती गई मंदिर में भक्तों की भीड़ भी बढ़ती गई.इस रहस्यमयी शिव मंदिर के पीछे बहुत सी कथाएं प्रचलित हैं. मंदिर की मान्यता यह है कि जो भी कुंवारे लड़के और लड़कियां विवाह की इच्छा लेकर यहां दर्शन करने आते हैं उन्हें मनचाहा जीवनसाथी प्राप्त होता है.
गर्भ गृह में शिवजी के अंगूठे की पूजा का महत्व
मंदिर के अंदर गर्भ गृह में शिवलिंग पाताल खंड के रूप में विद्यमान है.हालांकि यहां कोई शिवलिंग नहीं दिखाई देगा.यहां उभरा हुआ एक अंगूठे का निशान है. यह अंगूठा स्वयंभू शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है. ऐसी मान्यता है कि यह अंगूठा भगवान शिव शंकर का ही है.मान्यता है कि इस अंगूठे ने ही पूरे माउंट आबू पर्वत को सहारा दे रखा है. यदि यह अंगूठे का निशान गायब हो जाये तो यह पहाड़ नष्ट हो जाएगा.
जैसे वाराणसी के काशी का महत्व यहां इसे उपकाशी कहा जाता है
स्कन्दपुराण में भी इस मंदिर का जिक्र है जैसे वाराणसी में काशी का महत्व है. वैसे ही माउंट आबू में इसे उपकाशी कहते हैं.यहां जो ब्रह्मखाई पातालखण्ड में अंगूठे के निशान उभरा हुआ है.यहां भक्त जल से अभिषेक करते हैं.इस दौरान जो भी जल चढ़ाया जाता है, वो खाई में कभी नहीं भरता. ऐसा कहा जाता है वह जल सीधे पाताल में जाता है.जो आजतक रहस्य बना हुआ है.मंदिर में पंचधातुओं से बनी नंदी की मूर्ति भी स्थापित है.
एक कथा भी है प्रचलित
एक कथा के मुताबिक अर्बुद पर्वत पर शिव जी की नन्दी गाय भी थी. जब नंदी वर्धन प्रलय के दौरान हिलने लगा उस वक्त हिमालय में भगवान शिव तपस्या में लीन थे.पर्वत पर आए प्रलय के साथ नंदी गाय को भी बचाना था,फिर तपस्या में भगवान शिव के विघ्न पड़ता हुआ दिखा.तब भगवान शिव हिमालय से ही अंगूठे को फैलाया और अर्बुद पर्वत को सीधा कर दिया, इस तरह नंदी गाय को बचाया गया और अंगूठा पर्वत में स्थिर हो गया.भगवान शिव के अंगूठे के पैर के निशान आज भी मौजूद हैं.