Prithvi Nath Temple Gonda : सावन स्पेशल-गदाधारी भीम से जुड़ा है इस पृथ्वीनाथ मंदिर का इतिहास,जानिए इसके पीछे का रहस्य

Sawan 2023 Prithvinath Temple: सावन का पवित्र मास शुरू हो चुका है. हर-हर महादेव के जयकारों से शिवालय गूंज उठे है.प्रसिद्ध नदियों से कांवड़िये जल लेकर देश के प्रसिद्ध शिव मंदिरों में पहुंच रहे हैं. उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में एक ऐसा शिव मंदिर जिसे एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग कहा जाता है.पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसका इतिहास महाभारत काल से जुड़ा बताया जाता है.

Prithvi Nath Temple Gonda : सावन स्पेशल-गदाधारी भीम से जुड़ा है इस पृथ्वीनाथ मंदिर का इतिहास,जानिए इसके पीछे का रहस्य
गोंडा जिले में है एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग,पृथ्वीनाथ मन्दिर

हाईलाइट्स

  • गोंडा के खरगूपुर में पृथ्वीनाथ मन्दिर का पौराणिक इतिहास,अद्धभुत वास्तुकला से बना ये मंदिर
  • एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग कहा जाता है , महाभारत काल से जुड़ा है शिवलिंग का इतिहास
  • करीब 5 हज़ार वर्ष पुराना है मन्दिर, सावन और शिवरात्रि में उमड़ती है भक्तों की भीड़

History of Prithvinath Temple In Gonda : आज हम बात करने जा रहे हैं एक ऐसे प्रसिद्ध शिवमन्दिर की जिसका एक अलग महत्व है. आपने इतना ऊंचा शिवलिंग शायद ही कहीं देखा हो. जिसपर जलाभिषेक करने के लिए चाहे जितना लम्बा व्यक्ति हो उसे जल चढ़ाने के लिए अपनी पैरों की एड़ी उठानी ही पड़ेगी. तभी तो इस शिवलिंग को एशिया का सबसे ऊंचा शिवलिंग कहा जाता है. तो चलिए आपको सावन मास में इस प्रसिद्ध शिव जी के मन्दिर से जुड़े कुछ पौराणिक रहस्यों को बताते हैं..

हर-हर महादेव के जयकारों से गूंज रहे शिवालय

सावन का महीना शुरु हो चुका है. भोलेनाथ के भक्त देश के कोने-कोने में हर-हर महादेव के जयकारों के साथ भोलेनाथ के दर्शन के लिए शिव मंदिरों में पहुंचने लगे हैं. हमारे देश में ऐसे कई प्रसिद्ध शिव मंदिर है जो चमत्कारिक हैं. जिनकी एक अपनी अलग मान्यता है .

एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग

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उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में स्थित खरगूपुर एक जगह है .जहाँ एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग है और ये शिव मंदिर वास्तुकला का भी एक अद्भुत नमूना है.इस शिव मंदिर को पृथ्वीनाथ मन्दिर के नाम से जाना जाता है. यह मंदिर करीब 5 हज़ार वर्ष पुराना बताया जाता है.यह 7 खंडों का शिवलिंग कहा जाता है जो 15 फुट ऊपर दिखता है और 64 फुट जमीन के नीचे है.

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गदाधारी भीम से जुड़ा है इतिहास

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पृथ्वीनाथ मंदिर का महाभारत काल के द्वापर युग से इतिहास जुड़ा है, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा बताया जाता है, महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान पांडू पुत्र भीम ने बकासुर का वध किया था. ऐसा बताया जाता है कि भीम के ऊपर ब्रह्महत्या का दोष लगा था, जिसे दूर करने के लिए भीम ने शिवलिंग की स्थापना की थी. समय निकलता गया और शिवलिंग भी जमीन में समा गया था.

यहां रहने वाले पृथ्वी सिंह को आया स्वप्न

ऐसा कहा जाता है कि खरगूपुर के रहने वाले पृथ्वी सिंह को मकान निर्माण कराने का ख्याल आया तभी एक रात स्वप्न में उसे जमीन के अंदर शिवलिंग होने का एहसास हुआ.अगले ही दिन उन्होंने खुदाई करवाई तो विशाल शिवलिंग निकला जिसके बाद पृथ्वी सिंह ने शिवलिंग की विधि विधान से पूजा अर्चना कर यहां पर शिवलिंग को स्थापित कर दिया तब से इस शिव मंदिर को पृथ्वीनाथ मंदिर कहा जाने लगा.

दूर-दूर से आते हैं यहां भक्त

गोंडा जिले से जुड़े अयोध्या समेत करीब एक दर्जन जिले और नेपाल पास होने के कारण भारी तादाद में श्रदालुओं की भीड़ पृथ्वीनाथ मन्दिर में उमड़ती है.मान्यता है सच्चे मन से जो भक्त शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं.उनके सभी कष्टों का निवारण भोलेनाथ करते हैं. सावन और शिवरात्रि के दिनों में यहां पर भक्तों का सैलाब चारों ओर दिखाई देता है.यहां रुकने के लिए धर्मशालाएं भी हैं.

7 खंडों का है शिवलिंग

सात खंडों का शिवलिंग एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग कहा जाता है. जो 15 फुट ऊपर दिखता है और 64 फुट जमीन के नीचे है. शिवलिंग पर जलाभिषेक करने के लिए चाहे कितना भी लंबा व्यक्ति हो वह अपनी एड़ी उठाकर ही जलाभिषेक कर सकता है.ऐसी है इस शिव मंदिर की मान्यता.

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