Jatoli Shiv Temple : हिमाचल के सोलन में है एशिया का सबसे ऊंचा शिव मन्दिर,पत्थरों से निकलती है डमरू जैसी आवाज
हिमाचल प्रदेश के सोलन में एशिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर है दक्षिण द्रविड़ शैली में बने इस अनूठे मंदिर का अलग ही महत्व है.यह मंदिर जटोली शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है.यहां ऐसी मान्यता है कि यहां मंदिर परिसर में पत्थरों को थपथपाने पर डमरु की आवाज निकलती है. पर्यटक स्थल होने के चलते यहां पर भक्तों का तांता लगा रहता है.
हाईलाइट्स
- हिमाचल प्रदेश के सोलन में एशिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर
- जटोली शिव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध,यहां परिसर में देवी देवताओं की लगी है बहुत सारी मूर्तिया
- 111 फुट ऊंचा है शिव मंदिर, पत्थरो को थपथपाने पर डमरू बजने की आती है आवाज
Himachal's Solan has the tallest Shiva temple : हमारे देश में कई ऐसे रहस्यमयी शिव मंदिर है,जो अपने आप में अनूठे हैं. चमत्कारी है. ज्यादातर शिव मंदिर ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों के बीच में स्थित है.ऐसा शिव मंदिर हिमाचल प्रदेश के सोलन में भी है और कहा जाता है कि, यह मंदिर एशिया का सबसे ऊंचा मंदिर है.चलिए इस शिव मंदिर के बारे में बताते है कि यह मंदिर कब बना, कितने साल में बना और इसका पौराणिक महत्व क्या है..
111 फुट ऊंचा शिव मंदिर यहां भक्तों का लगा रहता है तांता
हिमाचल प्रदेश जहां पर्वतों की विशेष श्रृंखलाएं हैं.इस प्रदेश को पर्यटक स्थल के रूप में जाना जाता है. प्रकृति ,हरा, भरा वातावरण,झरने यहां की खूबसूरती देखने बनती है.यहां एक शिव मंदिर है जो अपने आप में अनूठा है. यह मंदिर सोलन में है,जिसे एशिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर भी कहते हैं.इसकी ऊंचाई करीब 111 फुट है.पर्यटक स्थल होने के चलते यहां आमदिनों के साथ सावन मास में भक्तों का तांता लगा रहता है.ऐसा भी कहा जाता है कि भोलेनाथ ने यहां कुछ दिन बिताए थे.
मन्दिर परिसर के पत्थरों को थपथपाने पर डमरू जैसी आती है आवाज
इस ऊंचे शिव मंदिर की खूबसूरती देखते ही बनती है. मंदिर परिसर में हर जगह देवी देवताओं की मूर्ति स्थापित है.दक्षिण-द्रविण शैली जैसा इस मंदिर का आकार है. स्फटिक मणि रूप में शिवलिंग भी है. मंदिर के ऊपरी छोर पर 11 फुट ऊंचा सोने का कलश भी लगा हुआ है.यह एक ऐसा रहस्य है कहा जाता है कि मंदिर परिसर के पत्थरों को थपथपाने पर डमरू जैसी आवाज निकलती है. जो आज तक रहस्य बनी हुई है.
स्वामी कृष्णानन्द परमहंस महाराज आये तब रखी गयी नींव 39 वर्ष में हुआ तैयार
ऐसा बताया जाता है कि यहां 1950 में स्वामी कृष्णानंद परमहंस महाराज आए थे. उन्होंने यहाँ शिवजी की तपस्या की थी.यहां जल की कमी कभी नहीं रहती.सन 1974 में इस मंदिर की नींव रखी गई थी. महाराज जी ने 1983 में समाधि ले ली थी. लेकिन मंदिर निर्माण का कार्य बराबर चलता रहा और तकरीबन 39 साल में मंदिर निर्माण का कार्य पूरा हुआ.
ऐसे पहुंचे जटोली शिव मंदिर
मंदिर के पट सुबह 6 बजे से शाम 7 बजे तक ख़ुलते हैं.नजदीकी रेलवे स्टेशन मंदिर से तकरीबन 68 किलोमीटर की दूरी पर चंडीगढ़ रेलवे स्टेशन है,जो हवाई यात्रा कर यहां पहुँचना चाहते हैं वे लोग
जटोली शिव मंदिर से लगभग 83.4 किलोमीटर की दूरी पर चंडीगढ़ इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर उतर सकते है.यहां से टैक्सी ले सकते हैं.