यूपी:भाजपा सरकार में हुए दंगों पर आख़िर क्यों झूठ बोल रहे हैं योगी.?
पिछले दो वर्षों में प्रदेस में एक भी दंगा नहीं हुआ ऐसा दावा है यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ का, जो पूरी तरह से ग़लत व भ्रामक है..पढ़े युगान्तर प्रवाह की एक रिपोर्ट।
लखनऊ: मार्च 2019 में योगी सरकार को प्रदेश की सत्ता में काबिज़ हुए पूरे दो साल हो गए। सरकार के दो बरस पूरे होने के अवसर पर मंगलवार को लखनऊ में योगी ने बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सरकार की दो साल की उपलब्धियों के बारे में बताया साथ ही प्रमुखता के साथ यह बात कही की हमारी सरकार बनने के बाद प्रदेश में एक भी दंगा नहीं हुआ है।इसके पूर्व भी योगी ने अपने ट्वीटर अकाउंट से दो साल में एक भी दंगा न होने की बात कही थी। उन्होंने पूर्व की सपा ,बसपा सरकारों पर हमला बोलते हुए कहा कि हमारी सरकार बनने के पहले उत्तर प्रदेश दंगो का प्रदेश हुआ करता था।
योगी के दंगे वाले दावे पर विपक्षियों ने जमकर सवाल उठाए। ये तो रही विपक्षियों की बात पर योगी के दावे को खुद केंद्र द्वारा दिए गए सरकारी आंकड़े ग़लत साबित करते हैं।
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री हंसराज गंगाराम अहीर ने दिसम्बर 2018 में लोकसभा में बोलते हुए कहा था कि 2017 में पूरे भारत में कुल सांप्रदायिक हिंसा की कुल 822 घटनाएँ हुईं थी और इनमें से उत्तर प्रदेश में 195 घटनाएँ हुई थीं। इस हिसाब से 2017 में भारत में हुई कुल सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं में से 23 फ़ीसदी घटनाएँ अकेले उत्तर प्रदेश में हुई हैं। दंगों में उत्तर प्रदेश में 44 लोगों की मौत हुई थी और 542 लोग घायल हुए थे।इन सरकारी आंकड़ों के अलावा भी प्रदेश में कई ऐसे साम्प्रदायिक व जातीय दंगे हुए हैं जो योगी के दावे को पूरी तरह झूठा साबित करते हैं।
आखिर कब और कहां हुए दंगें...
योगी आदित्यनाथ मार्च 2017 में मुख्यमंत्री बने और मई में सहारनपुर के शब्बीरपुर में दो समुदायों के बीच जातीय हिंसा हुई थी। इसमें दो समुदायों के बीच जमकर हिंसा हुई और कई लोग घायल हुए थे। इस घटना में दलितों के घरों में आग लगा दी गई थी और इसे लेकर ख़ासा हंगामा हुआ था। इसके बाद इसी इलाक़े के चंद्रशेखर आज़ाद रावण ने इस मामले को जोर-शोर से उठाया था और भीम आर्मी बनाई थी।
जनवरी 2018 में कासगंज में गणतंत्र दिवस के मौक़े पर दो समुदायों में बवाल हुआ था। इस दौरान दोनों ओर से ईंट-पत्थर चले थे और फ़ायरिंग हुई थी। इस घटना में गोली लगने से एक युवक चंदन गुप्ता की मौत हो गई थी और कासगंज शहर में कई दिन तक तनाव का माहौल रहा था।
अगस्त में मेरठ के उल्देपुर गाँव में कांवड़ यात्रा के दौरान हुए विवाद में दो समुदायों में जमकर जातीय संघर्ष हुआ था, जिसमें कई लोग घायल हो गए थे और इलाक़े में लंबे समय तक तनाव रहा था। दिसंबर 2018 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में गोकशी के नाम पर हुई हिंसा में एक पुलिस इंसपेक्टर सुबोध कुमार सिंह और एक स्थानीय युवक की मौत हो गई थी। इस घटना को लेकर ख़ासा बवाल हो गया था। हद तो तब हो गई थी जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस घटना को महज दुर्घटना बताया था। दिसंबर 2018 में ही ग़ाज़ीपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली के बाद हिंसा हुई थी और इसमें एक पुलिस वाले की मौत हो गई थी।