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Jatashankar Mahadev Temple : घने जंगल-पहाड़ियों व गिरते सुदंर झरने के बीच स्थित है जटाशंकर धाम, औषधीय गुणों से संपन्न कुंड के जल का विशेष महत्व

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बुंदेलखंड का केदारनाथ मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में है. यहां बिजावर तहसील से 15 किलोमीटर दूर स्थित घने जंगलों व पहाड़ियों के बीच सुंदर झरने के बीच जटाशंकर महादेव का प्रसिद्ध मंदिर है. इस मंदिर में तीन कुंड है जिनके स्नान मात्र से ही कुष्ठ और चर्म रोग दूर हो जाते हैं.

हाइलाइट्स

मध्यप्रदेश छतरपुर जिले के जटाशंकर महादेव मंदिर का पौराणिक महत्व

सुंदर वन,झरने और पहाड़ो के बीच जटाशंकर महादेव का अद्भुत नज़ारा
कुंड के जल का है विशेष महत्व,स्नान करने से कुष्ठ और चर्म रोग होते हैं दूर

Jatashankar Mahadev Temple Chhatarpur : हमारे देश में बहुत ही रहस्यमयी ,चमत्कारी और दिव्य, प्राचीन शिव मंदिर हैं.जिनकी अलग मान्यताएं हैं. हर एक मन्दिर का अपना अलग महत्व और इतिहास है.एमपी के छतरपुर जिले का यह शिव मंदिर बहुत ही अलग है.आम दिनों के साथ ही श्रावण मास में भक्तों का हुजूम उमड़ता है.यहां की मान्यता ऐसी है,कि इस सुंदर जगह पर बाबा के दर्शन करने की इच्छा जरूर होगी. क्योंकि इस जगह का वातावरण,हरे-भरे पर्वतों और झरने के बीच यह मंदिर अलग मनोरम छठा बिखेरता है.

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जटाशंकर महादेव को बुंदेलखंड का केदारनाथ कहा जाता है 

मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के बिजावर तहसील से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर विशाल घने जंगलों व ऊंची पहाड़ियों और प्राकृतिक मनोरम सुंदर वातावरण और अविरल झरनों की धारा के बीच जटाशंकर महादेव का मंदिर है.इस मंदिर को बुंदेलखंड का केदारनाथ भी कहा जाता है. यहां आम दिनों के साथ ही सावन मास में पर्यटक और भक्तों का ताँता लगा रहता है. इस मंदिर परिसर में प्रवेश करने से पहले ही विशाल शिव जी की प्रतिमा आकर्षण का केंद्र है.उसके ठीक नीचे छोटे-छोटे मन्दिर भी है.

औषधीय गुणों से भरपूर है कुंड की खासियत, यहां स्नान जरूर करें

मन्दिर परिसर के अंदर पहुंचते हुए कई सीढ़ियों से होकर गुजरना पड़ता है तब जाकर मन्दिर तक पहुंचते हैं.मन्दिर के अंदर झरना भी है जो आकर्षण का केन्द्र है.यहां गोमुख से निकले हुए जल से शिवलिंग का अभिषेक होता रहता है. यहां तीन कुंड है. जिसका जल औषधीय गुणों से भरपूर है.यह पवित्र जल मौसम के हिसाब से ठंडा गर्म होता है. इन कुंडों के जल से स्नान करना नहीं भूलते, यहां स्नान करने से चर्म और कुष्ठ रोग दूर हो जाते हैं.इस जल का लोग सेवन भी करते हैं और अपने घर पर भी ले जाते है.स्नान के बाद जटाशंकर महादेव के दर्शन के लिए जाते हैं.इसके पीछे कथा भी प्रचलित है.

14 वीं शताब्दी के राजा विवस्तु से जुड़ी कथा

मन्दिर की स्थापना 14 वीं शताब्दी के राजा विवस्तु से जुड़ी हुई है. राजा को स्वप्न में शिव जी ने दर्शन देकर इस स्थान का जिक्र किया था.राजा ने सुबह तत्काल ही सैनिकों को भेजकर उस जगह को काफी ढूंढ़ा और आखिरकार इसी स्थान पर शिवलिंग निकले.जिसके बाद शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा करवाकर विधि विधान से पूजन किया गया.उनके मंत्री को इसी परिसर में कुंड के पास हवन में बिठाया गया क्योंकि उनके कुष्ठ रोग था ,और लेप लगाया गया और जल छिड़का गया.कुछ देर बाद उनका यह रोग गायब हो गया.

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खतरनाक डाकू कैसे बना शिवभक्त

वहीं एक कथा यह भी है, कि यहां एक खतरनाक डाकू मूरत सिंह हुआ करता था.अपराध जगत में बड़ा नाम था मूरत सिंह.आतंक का पर्याय बन चुका था. अचानक उसे सफेद दाग की बीमारी हो गई.एक दिन वह प्यास के मारे कुंड के समक्ष पहुंचा और जल पीकर अपनी प्यास बुझाई.जैसे ही उसने जल पिया की उसके सफेद दाग ठीक होने लगे.वह समझ गया यह शिव जी का ही चमत्कार है.तबसे उस डाकू का ह्रदय परिर्वतन हुआ और वह शिव जी की आराधना में लग गया.

ऐसे पहुंचे जटाशंकर महादेव

जटाशंकर महादेव मन्दिर पहुंचने के लिए आप अगर यूपी से हैं,तो आपको महोबा से छतरपुर का रास्ता पकड़ना होगा.छतरपुर एमपी में आता है.महोबा से छतरपुर की दूरी करीब 65 किलोमीटर है.भोपाल से ये मन्दिर 330 किलोमीटर पड़ेगा.भोपाल से ट्रेन या बस और निजी साधन से भी जा सकते हैं.जो फ्लॉइट से जाना चाहते हैं वे खजुराहो उतर सकते हैं.यहां से जटाशंकर की दूरी 75 किलोमीटर रह जाती है.

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